शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

परीक्षाओं के लिए सफलता की कुंजी

हिमालयी राज्य संदर्भ कोश
परीक्षाओं के लिए सफलता की कुंजी

सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र या कराकोरम से लेकर अरुणाचल की पटकाइ पहाड़ियों तक की लगभग 2400 किमी लम्बी यह पर्वतमाला विलक्षण विविधताओं से भरपूर है। इस उच्च भूभाग में जितनी भौगोलिक विधिताएं हैं उतनी ही जैविक और सांस्कृतिक विविधताएं भी हैं। वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने हिमालयी राज्य संदर्भ कोश शीर्षक की अपनी पुस्तक में इन्हीं विविधताओं की जानकारियां जुटा कर परोसने का प्रयास किया है। हालांकि हिमालय से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, तिब्बत जुड़े हुये हैं, लेकिन इस पुस्तक में केवल भारतीय हिमालय की गोद में बसे 12 राज्यों के बारे में सामान्य जानकारियां उपलब्ध कराई गयी हैं, जोकि विभिन्न श्रेणियों की सरकारी सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में काफी काम की हो सकती हैं। इस हिमालयी बिरादरी के सात सदस्य राज्य सेवन सिस्टर्स या सात बहनों के नाम से भी पुकारे जाते हैं। भौगोलिक दृष्टि से जम्मू. कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और सिक्कम सहित हिमालय पुत्रियों की संख्या ग्यारह है। देखा जाय तो पश्चिम बंगाल का दार्जिंलिंग वाला हिस्सा भी हिमालय का अंग होने के कारण इस बिरादरी की संख्या ग्यारह की जगह बारह हो जाती है। उम्मीद की जा सकती है कि इस पुस्तक से संघ लोक सेवा आयोग और राज्यों के लोक सेवा आयोगों तथा अन्य संस्थानों द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में लाखों युवा लाभान्ति होंगे और उनका भविष्य संवरेगा। पर्वतराज हिमालय आकार में जितना विराट है अपनी विशेषताओं के कारण उतना ही अद्भुत भी है। अगर हिमालय न होता तो दुनियां और खास कर एशिया का राजनीतिक भूगोल न जाने क्या क्या होता, एशिया का )तुचक्र और उसमें घूमने वाला मौसम क्या होता, किस तरह की जनसांख्यकी होती और किस तरह के शासनतंत्रों में बंधे कितने देश होते, विश्व विजय के जुनून में दुनिया के आक्रान्ता भारत को किस कदर रौंदते, इसके बगैर न गंगा होती, न सिन्धु होती और ना ही ब्रह्मपुत्र जैसी महानदियां होतीं। अगर ये नदियां ही न होती तो संसार की महानतम् संस्कृतियों में से एक सिन्धु घाटी की सभ्यता भी न होती। दरअसल हिमालय न केवल एशिया के मौसम का नियंत्रक बल्कि एक जल स्तम्भ भी है। यह रत्नों की खान भी है तो गंगा के मैदान की आर्थिकी को जीवन देने वाली उपजाऊ मिट्टी का श्रोत भी है। लेखक के अनुसार ये प्रमाणिक जानकारियों विभिन्न राज्य सरकारों के वैब पोर्टलों और सरकारी प्रकाशनों, जनगणना रिपोर्ट, इतिहास की पुस्तकों एवं कुछ उपलब्ध प्राचीन ग्रन्थों के इधर उधर छपे अंशों आदि से जुटाई गयी हैं और ऐसे ही दूसरे श्रोतों से उनकी पुष्टि की गयी है। लेखक का 36 सालों से अधिक समय का पत्रकारिता का लम्बा अनुभव भी इन जानकारियों के संकलन और उनकी प्रमाणिकता में सहायक रहा है। ग्रामीण पत्रकारिता, और उत्तराखण्ड की जनजातियों का इतिहास के बाद वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की 192 पृष्ठों वाली यह तीसरी पुस्तक है जिसे विन्सर पब्लिशिंग कंपनी ने प्रकाशित किया है।                                                                                                                                                                          समीक्षक-बीना बेंजवाल

चमत्कारः आपदा और बचाव पर आधारित कहानियों का संग्रह

उत्तराखण्ड और देश के विभिन्न भागों में लगातार आ रही आपदा ने हमारी विकास की सोच पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है। आपदाएँ मनुष्य के वश में नहीं होती किन्तु प्रबन्धन के अंतर्गत किए उपायों द्वारा इसके प्रभावों को कम अवश्य किया जा सकता है। जानमाल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। आपदाओं से सम्बन्धित अवधारणाओं तथा आपदाओं से पहले ,आपदाओं के समय और आपदाओं के बाद बरती जाने वाली सावधानियों और उपायों को कहानियों के माध्यम से समझाने का सार्थक प्रयास किया है डा. नन्द किशोर हटवाल ने अपनी पुस्तक श्चमत्कार श् में। इस पुस्तक में बादलों का गरजना,आग लगना,आपदा से पहले संवेदनशील गाँवों को सुरक्षित स्थानो पर विस्थापित करना,भूकम्प,बस-मोटर दुर्घटना,वन्य जीव संरक्षण,सर्पदंश,वर्षा एवं भूस्खलन,प्राथमिक चिकित्सा एवं आपातकालीन सहायता तथा हिमस्खलन की अवधारणाओं और बचाव के तरीकों को समझाया गया है। उत्तराखण्ड में आपदा का जो कहर बरपा है उसका एक कारण नदियों के किनारे किया गया अनियोजित भवन निर्माण भी है। नदी एक निशिचित अंतराल के बाद अपना रास्ता बदलती है। अतयनदियों के किनारे किया भवन निर्माण खतरे से खाली नहीं है। साथ ही नदी के बगड़ में बसे गाँवों का समय रहते सुरक्षित स्थानो पर विस्थापन जरूरी है। इसी तथ्य की ओर जीत कहानी में लेखक ने पाठकों का ध्यान खींचा है। पुस्तक में १0 कहानियों को समाहित किया गया है। इन कहानियों को इस तरीके से बना गया है कि पढ़ते-पढ़ते आपदाओं से जुड़े मिथक ,वैज्ञानिक अवधारणाएँ और किये जाने योग्य उपाय स्वत स्पष्ट हो जातें हैं। यों तो बाजार में आपदाओं पर जानकारी देने वाली सैकड़ों पुस्तकें हैं किन्तु आपदा पर आधारित विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से यह पुस्तक अलग है। कहानियों में प्रयुक्त भाषा सरल,विषयानुकूल और भावानुकूल है। कहीं -कहीं गढ़वाली शब्दों का किया प्रयोग भी विषयानुकूल हैं। पुस्तक बालमनोविज्ञान के अनुरूप चित्र आधारित है। चित्रांकन लेखक ने स्वयं किया है। बिन्सर प्रकाशन देहरादून द्वारा बाल श्रृंखला के अंतर्गत प्रकाशित १६२ पेज वाली इस पुस्तक का मूल्य है ६५ रुपए। पुस्तक का गेटअप आकर्षक और मुद्रण स्पष्ट है। पुस्तक का चमत्कार नाम सार्थक है। पुस्तक आपदाओं के बचाव के लिए कोई टोटके या दैवीय चमत्कार नहीं सुझाती अपितु सन्देश देती है कि आपदाओं को जानने और कुछ तरीकों को अपनाने से बचाव रूपी चमत्कार किया जा सकता है। पुस्तक बच्चों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। समीक्षक-डा. उमेश चमोला। 

सरकारी नजूल भूमि पर अवैध निर्माण

सरकारी नजूल भूमि पर अवैध निर्माण
बेशकिमती नजूल भूखण्ड एवं सरकारी सम्पत्ति
रूड़की के सिविल लाईन्स क्षेत्र में सरकारी भूमि पर सैकड़ो जगर हो रहा है अवैध निर्माण
बहुमंजिले आवासीय और व्यावसायिक परिसरों को हो रहा है निर्माण
बिना भवन मानचित्र स्वीकृत कराए और बिना विकास शुल्क जमा कराये हो रहा है अवैध निर्माण

उत्तराखंड में सरकारी भूमि पर कब्जे और अवैध निर्माण आम बात हो गई है। सरकारी भूमि को खूर्द-बूर्द करने के कई मामले सामने आये लेकिन इस दिशा में न तो सरकार और न ही स्थानीय प्रशासन ने आज दिन तक कोई विशेष प्रयास किए। इसी का परिणाम है कि सरकार भूमि पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण लगातार जारी है। जनपद हरिद्वार के रूड़की नगर के सिविल लाईन्स क्षेत्र में पूरी जमीन नजूल है जो राजस्व अभिलेखों में रूड़की अन्दर हदूद मौजे की खतौनी में वर्ग 15, उपवर्ग-2 में दर्ज है और यह भूमि वर्तमान समय में नगर निगम रूड़की के पास है। इसके बाद भी कुछ नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से इसे खुर्द-बूर्द किया जा रहा है। एडवोकेट और पूर्व सभासद बृजेश त्यागी ने इस मामले को उठाते हुए मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मामले की जानकारी दी है। श्री त्यागी ने इसके लिए सूचना के अधिकारी के तहत जानकारी मागी। जानकारी के अनुसार रूड़की सिविल लाईन्स की समस्त भूमि नगर निगम के नाम से है। यहां यह उल्लेख भी करना चाहेंगे कि नगर निगम का वार्षिक सत्यापन जिलाधिकारी द्वारा किया जाता है, लेकिन इस मामले में नगर निगम उक्त नजूल रजिस्टर को जो जीर्ण-शीर्ण व फटे हाल में है को वार्षिक सत्यापन के समय डीएम से इसका सत्यापन भी नहीं करवाते हैं। इससे इस मामले में नगर निगम की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है। मामले में एक अन्य तथ्य भी सूचना के अधिकार के तहत सामने आया कि अवैध कब्जेदारों को चिन्हित करने के उद्देश्य से तहसील रूड़की प्रशासन और नगर पालिका रूड़की ने शासन के निर्देश पर वर्ष 1992-1993 में एक संयुंक्त सर्वे कराया। सर्वे की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि रूड़की में नजूल भूमियों/प्लांटों की संख्या उस समय 1466 थी जिसमें से 38 प्लाट चार दीवारी से घिरे खाली पड़े थे, जिसका क्षेत्रफल 55181.95 वर्गमीटर था। रिपोर्ट के अनुसार शेष 1428 नजूल प्लाटों पर अवैध निर्माण द्वारा अनाधिकृत व्यक्तियों का कब्जा था, जिनके नाम उक्त रिपोर्ट में अंकित है। इन 1428 नजूल भूखंडों पर अनाधिकृत कब्जों में 127696.46 वर्गमीटर भूमि पर व्यावसायिक कब्जे तथा 537851.33 वर्गमीटर भूमि पर आवासीय कब्जे मौके पर पाये गए। रिपोर्ट के अनुसार समस्त 1466 खाली प्लाट भूमि, आवासीय एवं व्यावसायिक निर्माण द्वारा अवैध कब्जों में कुल मिलाकर 720729.74 वर्गमीटर नजूल भूमि स्थित है। वर्तमान सर्किल रेट से उपरोक्त व्यावसायिक व आवासीय नजूल भूमियों की कुल कीमत 1002.94.68.162 रूपये ;एक हजार दो करोड़ चैरानवें लाख अडसठ हजार एक सौ बासठ रूपयेद्ध होती है। वही अगर वर्तमान बाजार मूल्य 35000 रूपये प्रति वर्गमीटर के हिसाब से इसका वर्तमान बाजार मूल्य 2765 करोड़ के आस-पास है।
विजेंद्र सिंह

शुभ समृ(ि की अभीप्सा पूर्ति का त्यौहार है, दीपावली

शुभ समृ(ि की अभीप्सा पूर्ति का त्यौहार है, दीपावली

बड़ी दिव्या दीपावली होगी इस वर्ष की। ईष मास की १ गते अर्थात शरद सम्पात अर्थात ठीक आश्विन संक्रान्ति के दिन अर्थात २३ सितम्बर २0१४, मंगलवार को इस संवत की दीपावली का त्यौहार बनता है। इसी दिन ठीक ८ बजे सूर्य की तुलार्क संज्ञक संक्रान्ति भी हो रही है। अस्तु, यह एक दिव्य संयोग है कि ठीक शरद सम्पात के दिन दीपावली का भी त्यौहार होगा।
चैत्र शुक्लपक्षारम्भ में ये दीपावली का त्यौहार होता है। शुक्लादि मास गणना क्रम में यह दिन आश्विन अमावश की रात्रि का किन्तु कृकृष्णादि के मास क्रम में कार्तिक की अमावस की रात्रि का होता है। निशीथ  व्यापिनी अमावश्या वाली रात्रि वाली तिथि ही दीपावली का त्यौहार होता है। मित्रो! वेद और पुराणों के अनुसार सम्पात युक्त इस दीपावली का माहात्म्य उजागर करने के उद्देश्य से कुछ विशेष कहने का मन है। ध्यान पूर्वक समझ कर कृतार्थ कीजियेगा।
शिव महापुराण में भगवान शिव का एक लोकोपकारी कथन इस प्रकार है -
तस्माद् दश गुण गेयं रवि संक्रमणे बुधाः। विषुवे तद् दशगुणमने तद् दशस्मृतम्।।
तात्पर्य है कि आम दिनों में पुण्य कार्य, यज्ञ, दान उपासनादि का जो लाभ होता है वही कार्य जब संक्रांति के दिन अर्थात् सामान्य संक्रांति ;क्रांतिवृत्त के समविभाजित द्वादश खण्डों में सूर्य जब वर्तमान से अगले खण्ड, जिसे कि राशि कहकर व्यक्त किया जाता है, में जाता है तो वह दिन संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।द्ध में किया जाता है तो उसका फल डेढ गुणा अधिक होता है। वही कार्य जब संपात या विषुव ;यहाँ विषुव शब्द पर सभी लोग खास ध्यान दें क्योंकि विषुव शब्द से हट जाएंगे तो वैसाखी का अर्थ १४ अप्रैल की निरर्थक तिथि से भी जोड़ा जा सकेगा। लोग ऐसा न समझें अर्थात किसी को भी भ्रम न रह जाये, यही व्यवस्था इस श्लोक में विषुव या अयन शब्द से है।द्ध यहाँ कहा गया है कि सामान्य संक्रांति से भी विषुव और पुनः विषुव संक्रांतियों ;वसंत और शरद सम्पात की दो संक्रांतियांद्ध से भी श्ष्अयन संक्रांतियां ;दक्षिण और उत्तर अयन की दो संक्रांतियांद्धअधिक पुण्य प्रदायी होती हैं। शायद इसी लिए उत्तरायण या मकर संक्रान्ति सनातन वैदिक धर्मियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। मैं स्वयं इस एक त्यौहार को बहुत खासतौर पर मनाता हूँ। मोटे तौर पर आप ये समझ लें कि सामान्य दिन की एक आहुति का मतलब एक ही आहुति किन्तु संक्रांति के दिन की इसी एक आहुति का मतलब, सम्पात वाली संक्रांति के दिन की एक आहुति का मतलब और अयन संक्रांति के दिन की इसी एक आहुति का मतलब १000 आहुतियों के बराबर हुवा।
अब अगर आप पञ्चाङ्ग को नहीं जानते हैं तो-
आप इतनी प्रभावी सन्धि बेलाओं ;संक्रांति स्वयं में एक सन्धि बेला होती है और ’’’’वेद में इन सभी संधि बेलाओंद्ध प्रातः, सायं, पूर्णिमा, अमावस, मास संक्रांति, )तु संक्रान्ति ;जिस दिन )तु बदलती है द्ध अयन संक्रांति। जिस दिन अयन बदलता है और अंततः वर्ष अर्थात संवत की सन्धि जिस दिन नव संवत्सर शुरू होता है को नहीं जान पाएंगे और अगर आप पंचांग के बारे में गलत जानकारी रखते है या आजकल उपलब्ध तमाम गलत ;सत्य से भटके हुएद्ध पंचांगों पर चलते है तो इन दोनों ही स्तिथियों में आपको इन महत्वपूर्ण संधिबेलाओं की जानकारी भी या तो गलत होगी या होगी ही नहीं। इस से क्या हुआ? हुवा ये कि आप अपने पुण्य के बहुत बड़े कदम से, एक बार के लिए नहीं, हमेशा हमेशा के लिए वंचित रह जाते हैं। क्या ऐसा होना चाहिए? भाइयो और बहिनो ! हमारे नित्य कर्मों में संध्या का सर्वोपरि महत्व है। जिस तरह श्र(ा की कार्मिक अभिव्यक्ति को श्रा( कहते हैं उसी तरह सन्धि की लिए जो कार्य हम करते हैं उसको सन्ध्या कहते हैं। संधि बेला को जानना चाहिए और संध्या को करना चाहिए।
आप सभी को इस महा पुण्य काल के महापर्व की मैं अग्रिम शुभ कामनाएं देता हूँ। स्मरण रखें कि श्री सूक्त के मन्त्रों से सविधि यज्ञ पूर्वक इस त्यौहार को सश्र(ा मनौती प्रदान करनी है। वैदिक पंचांग के अनुसार यही दिन वास्तविक दीपावली का दिन है। यथा सामर्थ्य शु( सरसों के तेल से या घृत से दीप प्रज्ज्वलित करें। मैंने स्वयं इस दिन पर विशु( स्वदेशी अर्थात दीपक-प्रकाश व्यवस्था की ही जगमगाहट से अपना घर प्रकाशित रखने का निश्चय किया है।
विधाता ने जो ज्ञान मुझे दिया है उसका सदुपयोग करते हुए मैंने बड़े परिश्रम और लगाव से आप के और अपने भले के लिए या अनुस्मारक ;रिमाइंडरद्ध लेख आप ही को अर्पित किया है। अब हम स्वयं अपना भला चाहते हैं या नहीं ये तो हम पर ही निर्भर करता है।
संपादक
श्री मोहनकृति आर्ष तिथि पत्रक

आत्महत्या


नाटक



आत्महत्या

मुख्य कलाकार : 
कांस्टेबल रामसिंह
सब इंस्पेक्टर काम्बले
सूबेदार मेजर रावत
डिप्टी कमांडेंट सिंह
कमांडेंट देवेन्द्र
सेकंड इन कमांडेंट यादव
डॉक्टर कृष्णकुमार –साय्कोलोजिस्ट

प्रारम्भ
स्टेज पर पर्दा उठना
 सीन एक :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : ऑफिस का कोरिडोर 
 स्टेज पर कांस्टेबल रामसिंह आता है और अपने एक साथी से जोश में हँसते हुए कहता है  “ अहा अब मुझे छुट्ठी मिल गयी है , अब घर जाऊँगा और माँ की गोद में चैन के कुछ दिन  बिताऊंगा “ और वो दोनों दुसरे दरवाजे से चले जाते है !
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन दो  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : ऑफिस का कोरिडोर 

स्टेज पर सूबेदार मेजर रावत आता है और अपने एक दोस्त से कहता है , “ अहा अब मुझे छुट्ठी मिल गयी है , कितने महीने हो गए है , मैंने अपनी प्यारी सी बीबी की सूरत नहीं देखि है. इस बार तो मैं चांदनी को सरप्राइज दूंगा, उसे तो बताया ही नहीं कि मैं आनेवाला  हूँ  “  दोस्त हँसता है “ हां यार तेरी तो नयी नयी शादी जो हुई है ... हा हा ..”और वो दोनों हँसते हुए दुसरे दरवाजे से चले जाते है !
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन तीन  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : ऑफिस का कोरिडोर 

स्टेज पर सब इंस्पेक्टर काम्बले  आता है और अपने आप से उदास और ख़ुशी दोनों के स्वर में कहता है  “अब मुझे छुट्ठी मिल गयी है , यहाँ से मुक्ति तो मिली , इस डिप्टी कमांडेंट ने तो जीना हराम किया हुआ है. कुछ दिन अपने घर में दोस्तों और भाईयो के साथ रहकर ज़िन्दगी के मजे लूँगा “

और वो दुसरे दरवाजे से जाने लगता है , तभी दुसरे दरवाजे से डिप्टी कमांडेंट सिंह आता है और उससे कहता है , “ क्या रे सुना है , अपने घर जा रहा है ,”

उसे देखकर काम्बले उसे सेल्यूट करता है और सावदान की मुद्रा में खड़ा हो जाता है और कहता है , “जी श्रीमान “

सिंह उसके कंधे पर हाथ मारकर बोलता है, “ अबे तो यहाँ कौन रहेंगा ? कौन हमारा ख्याल रखेंगा ? तू साले नीच जाती का आदमी ,  हम ठाकुरों को सीखायेंगा कि लड़ाई कैसे करना और क्या करना है ?”

काम्बले कुछ धीमे स्वर में अपने गुस्से को दबाते हुए कहता है “ साब , मुझे देरी हो रही है , जाने दीजिये “
सिंह “ ठीक है जा , आना तो तुझे यही है . तब देखता हूँ “

काम्बले सर झुका कर दरवाजे से चला जाता है
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन चार  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : ऑफिस का एक कोना

स्टेज पर कमान्डेंट देवेन्द्र और सेकंड इन कमान्डेंट यादव बैठे है . दोनों के बीच में मेज लगी हुई है  और दोनों दोस्त ड्रिंक्स ले रहे है  .
देवेन्द्र “ यार यादव , मैंने तो बहुत से जवानो और ऑफिसर्स की छुट्टियां मंजूर की है . सब अपने घर जाए और खुशियाँ लेकर आये , बस यही दुआ है “
यादव  “ हां देवेन्द्र , सच कहा , मैं तो इन आत्महत्याओं से दुखी हो गया हूँ “
देवेन्द्र “ मैं उम्मीद करता हूँ की जल्दी ही हम इन बातो को रोक सकेंगे ”
देवेन्द्र “ मैंने एक सायाकोलोजिस्ट को बुलाया है , वो आने के बाद हमारे कैम्प पर सबकी एक वर्कशॉप लेंगे , इससे बहुत से फायदे होने की संभावना है ,  शायद जवानो ने छाया हुआ डिप्रेशन ख़त्म हो जाए “
यादव “ अमीन  मेरे भाई “
देवेन्द्र “ अमीन “
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन पांच   :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : गाँव के एक घर का सेट .

एक चारपाई और दो तीन मुढे . चारपाई पर रामसिंह की माँ बैठी हुई है . एक मुढे पर उसकी बीबी बैठी है और दुसरे पर खुद राम सिंह .
माँ “ भाई राम , तू तो अपनी जोरू को ले जा अपने साथ  ये रोज रोज के झगडे हमें नहीं चाहिए , कभी किसी बात पर लढाई , तो कभी किसी बात पर झगडा , नहीं बेटा नहीं चाहिए बुढापे में ये दुःख “
बीबी , “हमें कौनसा यहाँ रहना है , रोज का तकाजा , रोज के ताने , जैसे यदि आपने ब्याह कर नहीं लाया होता तो मैं कुंवारी ही बैठी रह जाती . अरे कोई कितना सहेंग , हमारे भी दुख है  . लेकिन रोज की लड़ाई , देखो जी , या तो चौका अलग कर लो , हमें अलग घर ले दो , नहीं तो मैं अपने घर चली”

रामसिंह “ अरे चुप हो जाओ तुम दोनों , जब से आया  हूँ , यही सब सुन रहा हूँ . दो दिन की शान्ति नहीं मिली मुझसे . मैं वह काम करूँ या तुम दोनों के झगडे सुलझाऊ !”

तीनो मिलकर बहुत सी बाते एक साथ करने और आपस में लड़ना शुरू कर देते है .
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन छह  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक कमरे का सेट

घर में एक पर्दा लगा हुआ है . बाहर दरवाजे पर रावत खड़ा है और खुद से कह रहा है, “ आज मैं चांदनी  को ऐसा सरप्राइज दूंगा कि वो याद रखेंगी  “

सूबेदार रावत चुपचाप अपने घर में घुसता है और एकदम से चिल्लाता है “ आय लव यू चांदनी “ मैं आ गया “ ऐसा कहते हुए वो भीतर घुसता है तो देखता है कि उसकी पत्नी चांदनी उसके दोस्त रवि  के साथ बैठी है . रावत को देखकर दोनों घबरा जाते है . और रवि जाने लगता है . रावत को पहले तो कुछ समझ नहीं आता है और फिर वो समझ जाता है कि उसकी पत्नी चांदनी ने उसे धोखा दिया है .

वो आँखों में आंसू लिए पूछता है , “ क्यों चांदनी , क्यों , ऐसा किया . मेरे प्रेम में क्या कमी रह गयी . देखो , इस बार मैंने पूरे २० दिन की छुट्टी लेकर आया था , लेकिन तुमने मुझे धोखा देकर अच्छा नहीं किया . वो भी मेरे सबसे अच्छे दोस्त रवि के साथ ! धिक्कार है तुम पर . “

चांदनी , “ सुनो मुझे माफ़ कर दो जी , अब ऐसी गलती नहीं होंगी जी “

लेकिन रावत घर से निकल जाता है . और चांदनी रोती हुई बैठी रह जाती है .
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]


सीन सात  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक होटल का सेट

काम्बले अपने दोस्त मोहन के साथ बैठा हुआ है और चाय पीते हुए उससे अपनी बात कह रहा है .  यार मोहन , मेरी पोस्टिंग इस जगह में हो क्या गयी , मेरी ज़िन्दगी नरक बनी हुई है . एक डिप्टी  कमान्डेंट सिंह मुझे रोज तंग करता है , रोज मुझे नीचा दिखाता है , सिर्फ इसलिए कि मैं  दलित हूँ और मैंने एक ट्राइबल कैंप ट्रेनिंग के दौरान गुरिल्ला फाइट सीखा हुआ है और वो मैं सभी को सीखना चाहता हूँ , बस ईसिस बात पर हमेशा मुझे नीचा दिखाता है , कभी कभी सबके सामने ही लताड़ देता है.

मोहन “ उसकी शिकायत तो करो . “
काम्बले , “नहीं यार शिकायत करने से मुझ पर ही गाज गिरेंगी , उसका ओहदा मुझसे बड़ा है . मैं ही कुछ करता हूँ “
दोनों दोस्त चुपचाप चाय पीते है
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन आठ   :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक कमरे का सेट

स्टेज पर राम सिंह चुपचाप बैठा हुआ है और अपने आप से बाते कर रहा है . “ये क्या ज़िन्दगी है. जिनके लिए कमाता हूँ वही आपस में इतना लड़ते है . बाज आया ऐसी ज़िन्दगी से . मैं कल ही कैम्प में लौट जाता हूँ !”
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन नौ  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक कमरे का सेट

स्टेज पर रावत पागलो की तरह ड्रिंक्स ले रहा है और अपने आप से बाते कर रहा है “ मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है . आखिर मेरा कसूर क्या है . मैं उसे कितना प्यार करता था अब क्या जीना .. मैं कल ही कैम्प में लौट जाता हूँ !”
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]


सीन दस :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक कमरे का सेट

स्टेज पर काम्बले अपने दोस्त से कहता है  “मैं इस मामले को वहां जाकर सुलझाता हूँ . मैं कल ही कैम्प में लौट जाता हूँ !”
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]


सीन ग्यारह  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक कमरे का सेट

स्टेज पर रामसिंह अपनी वर्दी में चुपचाप बैठा है और फिर अचानक ही सर हिलाते हुए अपनी रायफल से खुद को शूट कर देता है !
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन बारह  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : एक कमरे का सेट

स्टेज पर रावत पागलो की तरह पी रहा है और फिर अपनी रिवाल्वर निकाल कर खुद को शूट कर देता है .
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]


सीन तेरह  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान :ऑफिस का सेट 

स्टेज पर काम्बले को सिंह डांट रहा है, और दोनों में तेज झगडा होता है . काम्बले, सिंह की वर्दी के होल्स्टर से रिवाल्वर निकाल कर खुद को शूट कर देता है
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन चौदह  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : ऑफिस का कोना 

ऑफिस की मेज पर देवेन्द्र और यादव दोनों बैठे हुए है . चुपचाप ड्रिंक्स ले रहे है .
देवेन्द्र “ मुझे समझ में नहीं आता है कि मैं क्या करू , कितना कोशिश करता हूँ ,कि जवानो का मोरल डाउन नहीं हो , लेकिन ये हो जाता है और ये देखो , एक नहीं तीन तीन आत्महत्याए . ऊपर से इन्क्वारी के ऑर्डर्स अलग से .

यादव “ कल वो साय्कोलोजिस्ट आ रहा है .उसी को कहेंगे कि इन जवानो को कुछ समझाए “
[ स्टेज पर लाइट बुझता है ]

सीन पंद्रह  :
[ स्टेज पर लाइट जलता है ]
स्थान : मैदान का सेट

स्टेज पर कुछ कुर्सियां है और एक माईक है जिस के पास डॉक्टर का चोला पहने डॉ. कृष्णकुमार खड़े है . पास के कुर्सियों में देवेन्द्र, यादव और कुछ और ऑफिसर बैठे हुए है .

डॉ. कृष्णकुमार कहते है ,” आप सभी जवानो को मेरा सलाम . मैं दिल से आपके शौर्य की हौसला-आफजाई करता हूँ और ये बात मैं मानता हूँ कि आप सभी यदि हमारे बॉर्डर्स पर नहीं होते तो आज हम चैन की नींद नहीं सो पा रहे होते . सलाम आपको .
लेकिन आज मैं एक बात कहने आया हूँ और ये बात हम सभी को बहुत चिंतित कर रही है . वो बात है . आपके साथियो के द्वारा आत्महत्या कर लेना . देखिये एक डॉक्टर के होने के नातेमैं आप सभी से ये कहना चाहूँगा कि ये प्रवर्ती बहुत खतरनाक है . आत्महत्या कर लेने से कोई भी समस्या का हल नहीं होता . मैं मानता हूँ कि पारिवारिक , सामाजिक और यहाँ तक की अपने सीनियर्स के द्वारा प्रताड़ना पाना और कष्टदायक हालात में रहना बहुत दुखदायी है लेकिन मेरी मानिए , आत्महत्या करना कोई भी समाधान नहीं है . आपकी आत्महत्या से आपकी कहानी ख़त्म हो जायेंगी , लेकिन जो परिवार आप पर निर्भर है , उसका क्या . उन के बारे जरा सोचिये और इस तरह के नेगेटिव ख्यालो से बचिए . अपने ऑफिसर्स से बात करिए और अपने प्रोब्लेम्स का समाधान लीजिये . लेकिन आत्महत्या न करे. यही मेरी आपसे विनंती है क्योंकि देश को और आपके परिवार को आपकी जरुरत है .
आईये अपने अकेलेपन को दूर करिए . मैं आपको ये कहना चाहूँगा कि अलग अलग एक्टिविटी में भाग लीजिये , अपने साथियो के साथ खूब सारी बाते करिए , ,परिवार और दोस्तों के साथ खूब बाते करिए , शराबा तथा अन्य ड्रग्स से दूर रहिये . रेगुलरली योग तथा दुसरे कसरते करे . दौड़े , मैडिटेशन करे . और अपने आप को किसी क्रिएटिव कार्य में लगाए . और हां गाना बजाना न भूले. संगीत जीवन के डिप्रेशन का सबसे बड़ा हल है . अब तक पिछले दस सालो में करीब ३०० से ज्यादा जवानो ने आत्महत्या की है . आप उस राह पर न चले यही मेरी आप सभी से प्रार्थना है . आप सभी का दिल से धन्यवाद ! याद रखिये आत्महत्या करना , अपने आप के प्रति और और अपने परिवार के प्रति  और अपने भगवान के प्रति पाप है . जीवन सुन्दर है . इसे भरपूर जिए . यही मेरी मंगलकामना है आप सभी के लिए . एक बार और से आप सभी को प्रणाम और धन्यवाद .
विजय कुमार सप्पत्ति

VIJAY KUMAR SAPPATTI,  
FLAT NO.402, FIFTH FLOOR, PRAMILA RESIDENCY;
HOUSE NO. 36-110/402, DEFENCE COLONY,
SAINIKPURI POST,  
SECUNDERABAD- 500 094 [TELANGANA ]



शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

बिना नाखून का शेर

बिना नाखून का शेर बना खुफिया विभाग

उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद से लगातार मिल रही आतंकी धमकियांे के बावजूद भी सरकारांे ने लाखों लोगों की जानमाल की सुरक्षा व्यवस्था को भगवान भरोसे रख छोड़ा है। उत्तराखण्ड प्रदेश में जहां एक ओर जल विद्युत परियोजनायें, रक्षा आदि सामरिक महत्व से जुड़े उपक्रम जैसे अति संवेदनशील क्षेत्र है वहीं ऐसे भी धार्मिक-पर्यटक स्थल है जहां प्रतिदिन हजारांे-लाखों लोगों का आवागमन होता है। इसके इतर नागरिकों की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले सरकारी खुफिया तंत्रों के इंतजामात को लेकर सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। अभी हाल ही में आतंकी संगठन अलकायदा द्वारा राज्य को दी गई एक धमकी के बाद जहां पूरे प्रदेश में अलर्ट जारी तो कर दिया गया लेकिन आतंकियों की गतिविधियां और उसके मंसूबों की भनक तक खुफिया तंत्र और पुलिस को नहीं लगी। 19 सितम्बर को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में सिमी ;आतंकवादी संगठनद्ध के छहः आतंकी किराये के एक घर में रह रहे थे। अचानक उस घर में हुए विस्फोट और इस घटना से भयभीत लोगों ने इसकी जानकारी पुलिस को दी। पुलिस जांच के बाद पता चला कि ये आतंकवादी काफी समय से उसी मकान में रहकर बडे़ पैमाने पर विस्फोटक सामग्री प्रयुक्त कर बम बना रहे थे। इस घटना के बाद से फरार हुए छहः आतंकवादी 20 सितम्बर को स्वीफ्ट डिजायर कार में नजीबाबाद होते हुए कोटद्वार की ओर रवाना हुए। जाफरा के समीप पुलिस चैकिंग के दौरान कार में सवार आतंकवादी जाफरा के निकट कार छोड़ जंगल की ओर भाग निकले। 22 सितम्बर को कोटद्वार पहंुची एटीएस मेरठ की टीम ने खुलासा किया कि फरार हुए सभी आतंकवादी सिमी संगठन से जुड़े हंै। आतंकवादियों की कोटद्वार में आमद का अंदेशा होने पर स्थानीय पुलिस और खुफिया विभाग में हडकंप मच गया।
 आनन-फानन में यूपी पुलिस के साथ स्थानीय पुलिस ने पीएसी की मदद से लैंसडौन वन प्रभाग, सनेह, भाबर के जंगलों में डंडांे के सहारे काम्बिंग शुरू कर दी। आतंकवादियों के लैंसडौन वन प्रभाग के जंगल में छिपे होने की घटना से वन महकमे के भी पसीने छूट गये। पहले ही वन विभाग के लिये सिरदर्द बने बावरिया, कत्था और भीमा गिरोह के बाद आतंकवादियों के जंगल में पनाह लेने की घटना ने वन विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियांे की परेशानियांे को और बढ़ा दिया है। सिमी के आतंकवादियों के कोटद्वार में होने की सूचना के बाद उत्तर प्रदेश मेरठ की एटीएस व उत्तराखण्ड की खुफिया टीम ने कोटद्वार में डेरा डालकर संवेदनशील और अतिसंवेदनशील में काम्बिंग की लेकिन अभी तक खुफिया विभाग और पुलिस के हाथ कोई ठोस सुबूत नहीं लगे। अलबत्ता पुलिस ने कार्यवाही के नाम पर इन इनामी आतंकवादियों की पहचान सार्वजनिक कर इन्हें पकडवाने की जन अपील जारी की। वर्ष 2004-05 में कोटद्वार के एक दुग्ध व्यवसाय से एक आतंकवादी के तार जुड़े पाये गये थे। आतंकवादी द्वारा एक विवाह समारोह में शिरकत होने के बाद वापस जाने के बाद मीडिया में इस बात का खुलासा होने के बाद खुफिया विभाग को घटना का पता चला। वर्ष 2010-11 में काफी समय से लकडी पडाव क्षेत्र में रह रहे अपराधियों द्वारा लकड़ी पडाव में एक दपंत्ति के दोहरा हत्याकांड को अंजाम देने के बाद पुलिस जांच में यूपी क्षेत्र में आपराधिक रिकार्ड दर्ज होने की बात सामने आई हो या फिर वर्ष 2012 में हरिद्वार में आयोजित कंुभ मेला में आतंकवादियों द्वारा मिली धमकी, हरिद्वार रेलवे स्टेशन को बम से उडाये जाने की धमकी। हर बार ऐसे मामले में प्रदेश के खुफिया विभाग के पास संसाधनों के अभाव और पुलिस विभाग की कार्यशैली के चलते उनके हाथ खाली ही रहे हैं।जिला पौड़ी के संवेदनशीलता की बात करें तो उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़े कोटद्वार पौड़ी गढवाल के अंतर्गत सैन्य क्षेत्र, रक्षा उपक्रम, प्रसिद्व धार्मिक स्थल, आरक्षित वन क्षेत्र, रामगंगा कालागढ बांध, रेलवे स्टेशन, व अति संवदेनशील क्षेत्र। रेलवे सेवा के जरिये यहां प्रतिदिन विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में लोग कोटद्वार पहंुचते हैं। अन्य प्रांतों के कई लोग यहां व्यापार और मजदूरी करने के नाम पर लकड़ी पडाव, काशीरामपुर, आमपडाव, जशोधरपुर भाबर में काफी समय से रह रहे हैं, लेकिन उच्चाधिकारियों के आदेशों के बाद भी पुलिस और संबंधित विभाग ने उनका आज तक सत्यापन नहीं हो सका। जिला पौड़ी के कोटद्वार क्षेत्र के खुफिया तंत्र की बात की जाये तो सूचना क्रांति के इस दौर में खुफिया विभाग आज भी अपने कार्यालय भवन, बेसिक टेलीफोन, वायरलैंस, टीवी, कम्प्यूटर, फैक्स, इंटरनेट और वाहन जैसी बुनियादी जरूरतों से जूझ रहा है। इतना ही नहीं जहां एक ओर सरकार और उसके मंत्रियों पर क्षेत्र भ्रमण और जनता की समस्याओं को दूर करने के नाम पर भरपूर सुविधायें दिये जाने के साथ पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर पूरे प्रदेश की सुरक्षा का जिम्मा उठाये खुफिया तंत्र की बुनियादी जरूरतों की ओर ध्यान तक नहीं दिया जाता।
इतने महत्वपूर्ण खुफिया विभाग की हालत बिना नाखून के उस शेर की तरह है जिसके पास जिम्मेदारी, पद, कर्तव्य, अधिकार रूपी रूतबा तो है लेकिन अपने कर्तव्यों की पूर्ति करने के लिये मूलभूत सुविधायें तक नहीं है। कोटद्वार के सिद्वबली मंदिर, बीईएल, रेलवे स्टेशन और झंडाचैक पहले ही आतंकवादियों की निगाहों में है ऐसे में राजाजी नेशनल पार्क और जिम कार्बेट नेशनल पार्क के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग कोटद्वार, कालागढ़ डैम और गढ़वाल राइफल लैंसडौन सैन्य क्षेत्र जैसे अति-संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। एहतियात के तौर पर भले ही कुछ जगह सीसीटीवी कैमरे लगाये जा चुके हो लेकिन संवेदनशील जगहों में अभी भी चैकिंग और सत्यापन कार्य तीव्र गति से होता नहीं दिखाई दे रहा है। बहरहाल आतंकवादियों की गतिविधियों ने पूरे उत्तराखण्ड समेत उत्तर प्रदेश की पुलिस को हिला कर रख दिया है। आतंकवादियों द्वारा कोटद्वार में पनाह लेने की संभावना के चलते यहां की खुफिया विभाग और पुलिस के लिये आतंकवादी एक बड़ी चुनौती बने हुए है। पुलिस अधीक्षक अजय जोशी का कहना है कि आतंकवादियों की कोटद्वार में छिपे होने की आशंका के चलते पुलिस को रेलवे स्टेशन, कौड़िया, सनेह आदि सीमा से लगे चैक पोस्ट पर सघन चैकिंग अभियान चलाये जाने के कडे निर्देश दिये जा चुके हैं साथ ही बाहरी प्रांतों से कोटद्वार की सीमा में प्रवेश करने वाले संदिग्धों पर भी नजर रखी जा         रही है।

आखिर कबार तलक लुट्येला पहाड़

मानव जनित आपदाओं का गढ़ बना रूद्रप्रयाग जिला 

पिछले साल आई आपदा से हमें बहुत कुछ सीखना होगा। विज्ञान पर गर्व करते हम कब तक अपने प्राकृतिक वैदिक ज्ञान की अवहेलना करते रहेंगे। प्रकृति को पूजने वाले मनखी ने प्रकृति पर ही अपने अधिकतर प्रयोग किये है। इनकी सफलता तो पिछले साल की आपदा बता चुकी है जो मातृ एक झलक थी। अतिसंवेदनशील रूद्रप्रयाग केदारघाटी जो कि भूकम्पीय दृष्टि से अतिसंवेदनशील जोन पाॅच में आती है आज मानव जनित आपदाओं का गढ़ बनती जा रही है।
कितनी बिस्मयकारी बात है कि वाडिया जैसे संस्थान हमारी देवभूमि के ही हिस्से में है, जिसका संदर्भ भूगर्भीय क्षमता में हो रही जाॅच पडताल के अलावा भारत की संस्कृतिक सामाजिक संपदा के संरक्षण से है। पर क्यों इस घाटी की माटी के लिए सूबे की स्थानीय सरकारें संवेदनशील नहीं दिख रही है। केदारघाटी की संपदा जल जंगल जमीन को व्यवसाय मानने और बनाने की बजाय तीर्थ स्थल, रिच बायोडइवर्सिटी, गौ गंगा भूमि, सास्कृतिक भूमि, साहित्यिक भूमि, डाडी काठी दर्शन भूमि के रुप में ही विकसित किया जाना चाहिए। ये मानक हमें बार बार बताता है कि ये बेल्ट अत्यधिक संवेदनशील है, बसके साथ प्राकृतिक छेड़छाड़ तो दूर सड़कों का अत्यधिक निर्माण तक इन पहाड़ों के साथ छलावा है पर आश्चर्य होता है ऐसी संवेदी बेल्ट में मन्दाकिनी नदी में पचासों छोटी-बड़ी परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय सेे कैसे सहर्ष स्वीकृति दी जाती है? बाॅधों के नाम पर निरंतर जारी विस्फोट से पहाड़ तो हिले ही साथ ही एक बहुत जरुरी पहलू को डिस्टर्व कर गये हम! यहां का वन्य जीवन? घेन्दुडी चकुली कफु हिलाॅस, बाज बुराॅश खर्शू मोरु  समेत ये डाॅडी काॅठी हिमालय की भी संरक्षक है। पानी की पर्याप्त के कारण ही हरे भरे बाॅज बुराॅश के जंगलों से लकदक दिखती है ये डाडी काठी, इसीलिए यहाॅ का वन्यजीवन ऊपरी क्षेत्रों में अत्यन्त धनी है विस्फोटकों की आवाजे इनके लिए बहुत बड़ा खतरा बनती है। आपको पता होगा कि पशु पक्षी भूकम्पीय तरंगों के प्रति काफी संवेदी होते है। ये इन तरंगों के आने से पूर्व ये अजीब हरकतें करते है, पर यहाॅ तो बेफ्रिक होकर वन्यजीवन की अनदेखी की जा रही है। कुलैं चीड पाइनस राॅक्सबर्घाई जैसे पेड़ांे की स्पीसीज ने तो बाॅज बुराश जैसे चैड़े सदाबहार वनों के आस्तित्व पर ही खतरा खड़ा कर दिया। मेरे हिसाब से तपते पहाड़, पिघलते ग्लेशियर, सिमटते बुस्याते धारे पन्ध्यारे जैसी समस्याएॅ सबसे ज्यादा चीड जैसे पेड़ ने भी पैदा की है। ऐसे में आदमी ने हर और से पहाड़ों को ठगा है। लूटा है इसकी अमूल्य संपदा को, अपने पहाड मसूरी कैम्पटी की ही बरत करें तो बाॅज-बुराॅश के सदाबहार जंगलों का एरिया शायद कहीं न कही कम होता जा रहा है विकाश के आगे पर्यदन यात्रा व्यवसाय होटलों की बढ़ती तादात गाडियों का शोरगुल हार्न धुआ परदूषण के कारण आज चहचहाते पक्षी चकुली ध्येन्दुडी कफ्फू -हिलाॅस  घुघती जैसे पक्षियो के कलरव सुनना यहाॅ भी दूभर होता नजर आ रहा है। अब तो मसूरी कैम्पटी तले पंखे कूलर फ्रिज की खूब आवश्यकता महसूस की जाती है ये हमारा विकास नहीं दगडयों ये पहाड़ों के लुटने का सबब भर है यहाॅ अंग्रेजों के समय का किया विकाश मैप पारिस्थित समावेशी था। पर आज शायद हम अपने मन पहाडों का नाचना पनके संसाधनों का जी भर उपभोग करना ही जानते है। इसके लिए हम अपना कर्तब्य भूल चुके है जो कि नितान्त आवश्यकीय पहलू था उत्तराखण्ड को बनाने का। अब घूम फिर कर सवाल यही उटता हैं कि आखिर कब तक लुटते रहेंगे पहाड़ और हम पहाड़ी।
बिखरते पहाडी,
टूटते पहाड़
विकास के आगे
सिमटते पहाड़,
बण जंगल सब कुछ लुटाते पहाड़
पर तब भी आत्मीयता के मयालेपन से
ओत-पोत है ये पहाड़।        
कितना कुछ सिखाते ये पहाड़।
पहले गिराते फिर संभलकर चलना सिखाते ये पहाड़,
हमें तो प्यारे है ये पहाड़,
हमें तो प्यारे है ये पहाड़।  
अश्विनी गौड लक्की                                                                      
लेखक  श्री गुरु राम राॅय पब्लिक स्कूल  कैम्पटी मसूरी में कार्यरत  ;विज्ञान शिक्षकद्ध हैं। 

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

रेगिस्तान में हरियाली ही हरियाली

इजराइलः रेगिस्तान में हरियाली ही हरियाली

कृषि कार्य महज खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं है, इसका राष्ट्रीय योगदान काफी ज्यादा है। ताजा कृषि उत्पादों, दु्ग्ध और अंडा उत्पादन के क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने की हमारी क्षमता का महत्व इसके आर्थिक मूल्य से ज्यादा है। इजराइल की कुल भूमि का आधा हिस्सा रेगिस्तान है और इसका विकास करना, रहने योग्य बनना और बसने के लिए लोगों को आकर्षित करना देश का मुख राष्ट्रीय लक्ष्य है।इजराइल एक छोटा सा देश है, जो रेगिस्तान से सटा है। यहां की आबादी करीब 70 लाख है। इसका सकल घरेलू उत्पाद 120 अरब अमेरिकी डालर के आसपास है यानी प्रति व्यक्ति जीडीपी 25,000 अमेरिकी डालर। इस्राइल की कुल भूमि का क्षेत्रफल 21,000 वर्ग किलोमीटर है। इसमें सिर्फ4,40,000 हेक्टेयर यानी 20 फीसदी भूमि ही खेती लायक है। 

इजराइली अर्थव्यवस्था का मूल और शुरुआती आधार खेती और खाद्य पदार्थों का उत्पादन रहा है। 1948 में जब इस्राइल की राष्ट्र के रूप में स्थापना हुई तो निर्यात किए जाने वाले मुख्य उत्पाद नींबू जाति के फल थे, जो जाफा लेबल के तहत बाहर भेजे जाते थे। इस तरह शुरुआत सामूहिक आर्थिक व्यवस्था से हुई, जो कृषि उत्पादों और पारंपरिक उत्पादों पर आधारित थी। अब इसमें बदलाव आया है, जहां खुला बाजार है और विभिन्न प्रकार के निर्मित उत्पादों की विश्व भर में बिक्री हमारे सामने है। यह सफलता बेहद कम समय में प्राप्त की गई है। इजराइल में कृषि, डेयरी व मांस उत्पादन के लिए अब आम पारंपरिक तरीकों की जगह ज्यादा आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है। यह खोजपरक शोध और विकास का नतीजा है, जो हमने अपने बूते पर किया है। जिन नए तरीकों का आविष्कार किया गया है उनमें सिंचाई की क्रांतिकारी तकनीक, भूमि को उपजाऊ बनाने, रेगिस्तान के उपयोग के लिये खारे पानी का इस्तेमाल बढ़ाना शामिल है। इजराइल का कृषिदृतकनीक उद्योग अपनी खोजपरक व्यवस्थाओं के गहन शोध और विकास के लिये जाना जाता है। देश में प्राकृतिक संसाधनों की कमी से निपटने की जरूरत के कारण ही आम तौर पर ऐसा हो पाता है। ये जरूरतें खास तौर से खेती योग्य भूमि और जल से संबंधित हैं।कृकृषि तकनीकों के लगातार आगे बढ़ने का कारण है शोधकर्ताओं, उसे विस्तार देने वाले एजेंटों, किसानों और कृषि पर आधारित उद्योगों के बीच करीबी सहयोग। ये मिलेदृजुले प्रयास कृषि के सभी क्षेत्रों में नई-नई सफलताओं और तरीकों को जन्म दे रहे हैं। इससे बाजारोन्मुखी कृषि व्यापार को मजबूती मिली है, जो अपनी कृषि तकनीक का निर्यात पूरे विश्व को कर रहा है। जिस देश में आधी से ज्यादा भूमि रेगिस्तान हो, वहां आधुनिक कृषि विधियां, व्यवस्थाएं और उत्पाद देखने को मिल रहे हैं। इजराइल में कृषि योग्य भूमि का आधा हिस्सा सिंचित है, लेकिन देश में कृषि योग्य भूमि में सिंचित क्षेत्र का यह अनुपात सबसे ज्यादा है। इस्राइल में विकसित कम्प्यूटर नियंत्रित ड्रिप्स सिंचाई प्रणाली बड़ी मात्रा में पानी बचाती है और सिंचाई के जरिये ही खाद की आपूर्ति संभव बनाती है। इजराइल ने ऐसी अत्याधुनिक ग्रीन हाउस तकनीकों का विकास किया है, जो खास तौर से गर्म मौसम वाले इलाकों के लिये हैं। इसका योग उन फसलों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिनकी ऊंची कीमत पर मांग है। ग्रीनहाउस सिस्टम में विशिष्ट प्लास्टिक फिल्म और हीटिंग, वेन्टिलेशन और कनातनुमा ढांचों की मदद सेे इस्राइल के किसानों को हर सीजन में 35 से 40 लाख गुलाब प्रति हेक्टेयर उगाने में मदद मिलती है। साथ ही औसतन प्रति हेक्टेयर 400 टन टमाटर भी इस तरीके से उगाया जाता है। खुले खेतों में होने वाले उत्पादन के मुकाबले यह मात्रा चार गुनी है। इजराइल के दुग्ध उत्पादन ने भी आधुनिक तकनीकों का विकास और इस्तेमाल किया है। इससे इस उद्योग में काफी बदलाव आया है। 1950 के मुकाबले अब दूध का उत्पादन ढाई गुना ज्यादा हो गया है। यानी तब डेयरी में प्रति गाय सालाना उत्पादन औसतन 4,000 किलो था, जो अब 11,000 किलो हो गया है। यूं तो कृषकों की संख्या में कमी आई है और सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान घटा है। वर्ष 2002 में यह योगदान महज 2फीसदी था। इसके बावजूद स्थानीय बाजारों में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए कृषि की भूमिका अब भी महत्वपूर्ण है। साल 2004 के आंकड़ों के मुताबिक, जो लोग कृषि कार्य में सीधे रोजगार पाते हैं, वे देश के कुल श्रम संसाधन का 2 फीसदी हैं। पचास के दशक की शुरुआत में एक कृषि कार्मिक 17 लोगों के अनाज की आपूर्ति करता था। जबकि वर्ष 2003 में एक पूर्णकालिककृकृषि कार्मिक 90 लोगों के लिये खाद्य की आपूर्ति कर रहा था। इजराइल की ज्यादातर कृषि सहकारी व्यवस्था पर आधारित है, जिसका विकास बीसवीं सदी के शुुरुआत में किया गया था। यहां के किबुत्ज एक बड़ी सामूहिक उत्पादन इकाई है। किबुत्ज के सदस्य संयुक्त रूप से उत्पादन के साधन अपनाते हैं। वे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी मिलदृजुल कर हिस्सा लेते हैं। फिलहाल किबुत्ज की आय का ज्यादातर हिस्सा उन औद्योगिक उद्यमों से आता है, जिनका स्वामित्व सामूहिक रूप से होता है। एक अन्य व्यवस्था है जिसका नाम है मोशाव। यह निजी पारिवारिक खेती पर आधारित है, जिनको कोआॅपरेटिव सोसाइटियों के रूप में संगठित किया गया है। दोनों प्रकार की व्यवस्थाओं में निवासियों को म्यूनिसिपल सेवाओं के पैकेज दिए गए हैं। तीसरी तरह की व्यवस्था मोशावा है। यह पूरी तरह से निजी तौर पर खेती करने वालों का गांव है। देश के कृषि उत्पाद में किबुत्ज ओर मोशाव का हिस्सा फिलहाल करीब 83 प्रतिशत है।
जल को राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है और उसका संरक्षण कानून द्वारा किया जाता है। जल आयोग हर साल प्रयोगकर्ताओं को जल का आवंटन करता है। जलापूर्ति का पूरी तरह से मापन किया जाता है और भुगतान भी खपत और जल की गुणवत्ता के हिसाब से किया जाता है। किसान पेयजल के लिये अलग मूल्य देते हैं, ताकि जल की बचत को बढ़ावा दिया जा सके। इजराइल की कृषि में पानी की कमी एक बड़ी बाधा है। कृषि योग्य भूमि में सिर्फ आधी ही सिंचित है, क्योंकि पानी की कमी है। इजराइल में उत्तर से दक्षिण 500 किलोमीटर की दूरी तक सालाना वर्षा 800 मिलीमीटर से 25 मिलीमीटर तक बारिश होती है। वर्षा )तु अक्टूबर से अप्रैल तक होती है, जबकि गर्मी के मौसम में कोई बारिश नहीं होती। प्रति हेक्टेयर पानी का सालाना इस्तेमाल औसतन 8,000 मीटर क्यूब से गिरकर 5,000 मीटर क्यूब रह गया है, जबकि पिछले 50 सालों में कृषि उत्पादन 12 गुना बढ़ा है। 2004 में यहां का कृषि उत्पादन 3.9 अरब अमेरिकी डालर मूल्य के बराबर था। 50 के दशक की शुरुआत से कृषि में शोध के लिए गहन प्रयास किए गए। यह देखा गया कि सतह पर सिंचाई के बजाय दबावीकृसिंचाई में जल का इस्तेमाल ज्यादा प्रभावी है। फिर सिंचाई उपकरण उद्योग की स्थापना हुई, जिसने तरहदृतरह की तकनीकें और उपकरण विकसित किए। जैसे ड्रिप इरिगेशन ;सरफेस और सब सरफेसद्ध, आॅटोमैटिक वाल्वस और कंट्रोलर्स, सिंचाई जल ले जाने वाले माध्यम और स्वचलित छनना, लो डिस्चार्ज स्प्रेयर्स और मिनी स्ंिक्लर्स, कम्पनसेटेड ड्रिपर्स और स्ंिकलर्स। इनमें फर्टिगेशन ;सिंचाई के साथ खाद का इस्तेमालद्ध आम है। खाद उत्पादकों ने अत्यंत घुलनशील और द्रव रूप वाले खाद का विकास किया है, जो इस तकनीक में काम आते हैं। सिंचाई का ज्यादातर नियंत्रण आॅटोमैटिक वाल्व और कम्प्यूटराइज्ड कंट्रोलर के हाथों में होता है। सिंचाई उद्योग के इस विकास को पूरे विश्व में प्रतिष्ठा हासिल है और इसका 80 फीसदी से ज्यादा उत्पाद निर्यात किया जाता है। इजराइल के किसान इस बात को भलीभांति जानते हैं कि जल अमूल्य है और एक सीमित संसाधन है। इसका संरक्षण करने के साथदृसाथ इसका सबसे प्रभावी और किफायती उपयोग किया जाना चाहिये। सिंचाई के ज्यादातर आधुनिक उपकरण सिंचाई पर नजर रखने और नियंत्रण रखने में मदद करते हैं, ताकि जल के इस्तेमाल की बेहतर क्षमता प्राप्त हो सके। देश भर में कृषि मौसम स्टेशनों का नेटवर्क है, जो मौसम के बारे में किसानों को तात्कालिक आंकड़े उपलब्ध कराते हैं। इन आंकड़ों के जरिये सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है। आज इजराइल की खेती काफी हद तक शोध और विकास पर आधारित है। आधुनिक कृषि के सामने कई चुनौतियां हैं। जैसे बाजार में तियोगिता, जल की घटती उपलब्धता और गुणवाा, पर्यावरण संबंधी चिंताएं, मानव श्रम की लागत और उपलब्धता। इसके लिए जरूरत है लगातार खोज और वैज्ञानिक समुदाय के बीच करीबी सहयोग की। इजराइल की कृषि कुछ खास चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे कृषि योग्य भूमि और जल की सीमित उपलब्धता, मानव श्रम की उंची लागत। ये चुनौतियां भी शोध और विकास की जरूरत को आगे बढ़ाती हैं। शोध और विकास के लिये वित्तीय आवंटन इजराइल में काफी ज्यादा है। इसमें हर साल 9 अरब अमेरिकी डालर निवेश किया जाता है। यह रकम कृषि के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का तीन फीसदी है। शोध प्रयासों के कारण इजराइली खेती पानी, भूमि और मानव श्रम के सक्षम इस्तेमाल का आदर्श नमूना बन गई है। इसके साथ ही रेकार्ड उत्पादन और उच्च गुणवाा के उत्पाद भी देखने को मिल रहे हैं। बायोटेक्नोलाजी जैसे उभरते क्षेत्र का पिछले बीस सालों में यहां अदभुत विकास हुआ है। इससे पारंपरिक तरीकों की बाधाओं को खत्म करने का भरोसा मिलता है। बायोटेक्नोलॉजी हमें नई तकनीक और सामग्री उपलब्ध करा रही है। कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय की कृषि विस्तार सेवा ने इजराइल में कृषिगत विकास के शुरुआती दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अंतर्गत गैरअनुभवी किसानों को प्रशिक्षण दिया गया, ताकि वे कृषि की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल सीमित संसाधनों के बीच अपनी क्षमता के अनुसार कर सकें। साल बीतते गए और कृषि का तेजी से विकास हुआ, क्योंकि शोध में मिली जरूरी सूचनाएं तेजी से खेतों और किसानों तक पहुंचीं। देश में इस दिशा में काम करने वाली टीमों की स्थापना की गई, जिन्होंने देश भर में कुशल और सक्षम शिक्षण दिया। बाजार में प्रतियोगिता का दौर होने के बावजूद कृषि के पेशेवर विकास में प्रशिक्षण की केंीय भूमिका रही। इससे गुणवाा वाले कृषि पैदावारों के उत्पादन को बढ़ावा मिला। देश के विभिन्न क्षेत्रों में जहां जो लाभ हासिल हैं, उनका दोहन करने की क्षमता बढ़ाई गई। इसका इस्तेमाल निर्यात करने और स्थानीय बाजार, दोनों के लिए किया गया। कृषि बाजारों में उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे उत्पाद जो कीटों, रोगाणुओं और कीटनाशकों से मुक्त हों। स्थानीय खाद्य पदार्थ उद्योग और इससे संबंधित संस्थाओं की मांग पर फसल कटाई के बाद के कामों के मामले में विकास हुआ है। इससे अलग जो विकास हुआ, वह इस उद्योग के भविष्य की जरूरतों का नतीजा है। फसल कटाई के बाद के कामों से जुड़ा शोध इस बात पर केंद्रित होता है कि ताजा, सूखे या संस्कृत खाद्य पदार्थों की हिफाजत, बचाव, उपचारण, संस्करण, भंडारण और परिवहन कैसे किया जाये। ताजा उत्पादों के मामलों में फसल कटाई के बाद के कामों से संबंधित शोध गतिविधियां एक खास दिशा में केंद्रित होती हैं। वह यह कि ताजे फलों, सब्जियों, फूलों और साजदृसज्जा वाले अन्य उत्पादों की उनके खेत से बाहर निकलने के बाद गुणवाा कैसे सुनिश्चित की जाए ताकि उनके निर्यात द्वारा बेहतर कमाई की जा सके।

मीडिया से जुड़े खोजी टाईप के भाई


साधो, जैसा कि नित्य-प्रत्य खबरों से आपको भी आभास हो रहा होगा कि छेड़खानी, छींटाकशी व दुष्कर्म आदि उ.प्र. का नैत्यिक लोकपर्व का रूप ले चुका है। मीडिया से जुडे खोजी टाईप के भाईयों के कारण स्थिति ऐसी बन गयी है कि अखबार हाथ में लगते ही सबसे पहले तलाश ऐसी खबरों की ही रहती है जिससे हमारी 21वीं सदी की इस महान परंपरा का निर्वाह होता रहे! अभी कल ही गोल्डी पा जी के पुत्तर विक्की ने कपूर साहब की सुकन्या को देखकर चांद के जमीन पर उतरने का रहस्योद्घाटन क्या किया उधर अखबार की सुर्खी बन गयी और जमा उठालिया लाला खूबी ने। दीपावली तक का मोमबत्ती का सारा कोटा निकाल लिया। रातो-रात मोहल्ले की महिलाओं का आज्ञाकारी विक्की,पतियों के कान भरने वाला विक्की सट्टे के नंबर बताना वाला विक्की...फंासी का पात्र हो गया। मोहल्ले में दो फाड हो गये, विक्की समर्थक व विक्की विरोधी।
हद तो तब हो गयी तब छेडखानी को लेकर हुई विचार गोष्ठी में मिसेज जोशी सुबह पड़ी। पूछने पर जानकारी मिली की पिछले पन्द्रह मिनट से पूज्यनीय भाउ जी उन्हें ही ताड रहे थे। भाउ जी से शिकायत की तो उनकी पुत्रबधू भडक गयी। कल ही तो पिताजी का मोतिया का आपरेशन हुआ है दिख तो रहा नहीं, ताड रहे है उस कलमुही को। थोडी देर बाद गोष्ठी अध्यक्ष स्वंय सुबकती मिसेज जोशी को कंधे का सहारा देते हुये घर छोड़ने क्या गये फिर अगले दिन गार्डन में अनुलोम-विलोम करते ही दृष्टिगोचर हुये। याद भी सुझाव आया कि क्यो न प्रत्येक घर के बाहर एक पुलिसकर्मी बिठा दिया जाये जो दस-पन्द्रह मिनट पश्चात घरों में तांक-झांक के अलावा अबलाओं की कुशल लेता रहे। मोहल्ले में सीसीटीवी कैमरों का सुझाव आया तो युवा वर्ग मरने-मारने पर उतारू हो गया। परमपूज्य धर्मपाल जी ने यह आग में पानी डाला-बच्चे तो ये सब करते ही रहते है तो क्या उन्हें फांसी पर चढवा दे। तभी हाजी सरताज कान में फुसफुसाये अरे मियां, दिल पर हाथ रखकर बताओ, हममे से किसने लडकियों का पीछा नहीं किया। मि.सरीन उबल पडे-अबे हम यहां छेडखानी का हल निकालने बैठे है या गडे मुर्दे उखाडने। जागरूकता की प्रचंड लहर उठते-उठते बिखर गयी। शाम को विचार मंथन से निकले अमृत को छकने के लिए दारोगा जी का फोन आया। लेकिन वही निल वटा सन्नाटा। फिर पता चला महिला पुलिसकर्मी ही जीन्स टी शर्ट में घूम रही है। मानो कप्तान सहाब ने ही कह दिया हो-हम भी कहां पीछे।लो भई छोडों इन्हें आ गयी चन्द्रमुखी। साधो पूर्ण तन्मयता के साथ उ.प्र.में छेडखानी का लोकपर्व मनाया जा रहा है। थाना, पुलिस, नेता, साधु-असाधु लडके-लडकियां, मोबाईल, नेट, वीडियो क्लिप, माल, कालिज मदरसे...कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतिदिन, प्रतिपल अपने उ.प्र. के इस लोकपर्व की छटा बनी रहे।
धर्मात्माआंे की दया
साधो शास्त्रों  में वर्णित  हैं कि शेषनाग के फन पर टिकी हुई है लेकिन अपना अभिमत है कि दुनिया ऐसे धर्मात्माआंे की दया पर टिकी हुई जो दिन रात सिर्फ मानव कल्याण मेें ही डुबे हुये है! यदि ऐसा नही है तो आप किसी भी पत्र पत्रिका में वर्गीकृत        विज्ञापन पर द्रष्टि कीजिये आपको लगेगा चचा मोदी ने तो चार छ महीने पहले अच्छे दिनों की आमद की बानगी छेड़ी लेकिन विज्ञापन पाठक सदैव अच्छे दिनो से लबालब रहे! आप इन विज्ञापन की एक बानगी देखिये 24 घंटे में लोन बिना कागजी कार्यवाही बिना गांरटर कोई पे स्लिप नही कहने का तात्पर्य यह कि इधर फोन करो छप्पर फाड के पैसा हाजिर! ऐसे धर्मात्माआंे के रहते महामना चावार्क के सत्यवचन है कर्ज लो और घी खाओ! इन्ही धर्मात्माओं की फेहरिस्त में शामिल कई धर्मात्मा ऐसे है जिनके दावेनुसार उनके काले इल्म को कोई काट नही सकता और दया दयावान की तरह पहले काम फिर पैसा !मक्ने ऐसे ही एक सिद्वपुरूष को फोन किया तो उधर से कोई गुर्राया धबरा मत मनोकमाना बता! मैने हिचकते हुये की दिया वो सोनाक्षी सिन्हा पर दिल आ गया है जी! उधर से आकशवाणी सी हुई  काम हो जायगा! दिनभर सोनाक्षी के साथ डिनर का ख्वाब संजोये जब शाम को द्वार पर दस्तक हुई तो मै बदहवाश सा भागा! दृश्य चैकाने वाला था द्वार पर थाने का दरोगा हथकडी में एक नशेडी बाबा को लिये खडा था मुझे बाद में पता चला कि बाबा का फोन र्सिवसलांस पर लगा हुआ था साधो बडी मुशिकल से ले देकर पीछा छुडाया और मौहल्ले में फजीहत अलग से हुई! साधे जिस शिक्षा को लेकर आज पेरेन्टस सूख रहे है उस शिक्षा को लेकर मैने कभी चिन्ता नही की! अकसर पिता जब भी मेरा रिपोर्ट कार्ड लेकर उत्तेजित होते! मै उनके सामने अखबार से काटकर एक कटिग रख देता हाई स्कूल फेल सीधे बी.ए.करें तत्पश्चात एम.ए. कर उस्मानिया विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.करें। हजारांे छात्र जाब पर! पिता संतुष्ट नही होते तो उन्हे प्रत्येक डिग्री पर लगा स्टार भी दिखा देता जिसका तात्पर्य होता परीक्षा का केन्द्र उनका सेन्टर ही होगा! ऐसे ऐसे धर्मात्माओ के रहते मैंने जीवन मंे कभी कोई चिन्ता नहीं की! यहां आलू की खेती से लेकर मशरूम तक बिना किसी प्रोसेसिंग के लोन इतने सस्ते प्लाट कि आप अपने बजट के एक प्लाट की कीमत पर चार प्लाट खरीद ले! अशिक्षितांे को 20-20 हजार की नौकरियां कैन्सर जैसी बीमारी का इलाज चंद घटांे मंे तो डायबिटीज व रक्तचाप की बीमारियां जड़ से समाप्त किडनी व पित्त की थैली की पत्थरियां कुछ दिनांे में हाथ से निकालने वाले इन धर्मात्माओं के कारण ही अवश्य ही एक दिवस ऐसा आयेगा जब एम्स वैम्स जैसे चिकित्सा शोध संस्थान बद हो जायंेगे व इन धर्मात्माओं को राजकीय सम्मान से भारत रत्न से नवाजा जायेगा! विज्ञापन की इस दुनिया मंे हर मर्ज का इलाज है यदि आपके सिर पर बाल नही है तो मात्र चंद घंटों में इम्पलांटेशन के जरिये आप केश परा बन सकते है! एक से एक शक्तिवद्र्वक अषौधियां सिरप तेल कैप्सूल और न जाने क्या-क्या कहने का तात्पर्य यह है कि आपकी सलमान टाईप जापानी देखकर पूरा मौहल्ला ही चैक पडे़! क्षेत्रीय विधायक विधानसभा में प्रश्न उठा दे कि आखिर भाउ इतना जोश लाते कहां से है? साधो सत्यवचन विज्ञापन का युग है जो बिकता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो बिकता नहीं! राहुल दिखे पर बिके नहीं तो मोदी बिके पर दिखे नही अंतोगत्वा अच्छे दिनांे की आमद संसद तक ही रह गयी! हालांकि धर्म के समस्त कार्य परदे के पीछे समस्त कार्य परदे के पीछे ही होते है यही कारण है कि ऐसे धर्मात्मा कभी सार्वजनिक नही हुये! गुमनामी की जिन्दगी जीते रहे! अखबार वालों को मजबूरन पीछा छुडाने के लिये पाठकों को अपना जोखिम पर विज्ञापन पर विश्वास करने के लिये विवश किया गया! लेकिन ऐसे धर्मात्मा ईश्वर की भांति ही बने रहे जिन्हंे सुना सब ने लेकिन देखा किसी ने भी नहीं! अभी कल ही कार्यस्थय से लौटकर बालकनी मे बैठा ही था कि धर्मपत्नी ने किसी अखबार की कटिंग सामने रखकर बौरायेपन से पूछा सुनो जी जरा देखकर पहचानना किसकी आंखे है जानू प्रथम पुरूस्कार स्विफट का है! साधों खून तो बेहद खौला लालची औरत न चाय न काफी वही रोज का किस्सा कभी आंखे पहचानो कभी चेहरे पहचानो कभी आमिर खान की पहली पिक्चर बताओ तो कभी राजा नटपरलाल मे इमरान हाशमी का किरदार बताओ! मैने टकासा जबाब दे दिया जब मैं बीस साल से तुझे ही नहीं पहचान पाया तो अब जब आंखों की बिनाई कमजोर हो गयी है तो किसकी ओखे व चेहरा पहचानू! क्यो मुझे नयी नयी टेन्शन देती है! वह फुफकारी व लहराती हुयी किचन मे प्रविष्ट  हो गयी और मैं सामने पार्क मे बैठे जोड़ांे को ताडने मे मशगूल हो गया।
मनोज पोखरियाल

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

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udaydinmaan: कभी था गुलजार अब है वीरान

udaydinmaan: कभी था गुलजार अब है वीरान: सरहद पार व्यापारः कभी था गुलजार अब है वीरान देश की सीमा पर अत्यंत संवेदनशील रणनीतिक क्षेत्र माना गया भारत-चीन सीमा का चमोली क्षेत्र तमाम...

कभी था गुलजार अब है वीरान

सरहद पार व्यापारः कभी था गुलजार अब है वीरान

देश की सीमा पर अत्यंत संवेदनशील रणनीतिक क्षेत्र माना गया भारत-चीन सीमा का चमोली क्षेत्र तमाम तरह की उपेक्षाओं के चलते आज पलायन की तरफ अग्रसर है। गांवों से शहर की तरफ आने वाली आबादी में पिछले पांच सालों में तीव्र वृ(ि हुई है। सीमा के गांव अचानक तेजी से खाली होने शुरू हुए हैं। अपने बेहतर भविष्य की तलाश में ये संक्रमण तेजी से फैल रहा है। राज्य बन्ने के बाद एक एक कर टूटते सपनों के साथ व विकास की जन विरोधी नीतियों के चलते ये बढ़ेगा ही।फिर शायद हाशिए तो रहेंगे पर हाशिए पर रहने वाले ना रहें। इस दर्रें पर व्यापार और भारत-चीन यु( के बाद पनपे हालात पर प्रेेम पंचोली का यह विशेष आलेख। संपादक

जोशीमठ नीति माना के दर्रों को जाने व जोड़ने का संधिस्थल होने से व्यापारिक मार्ग की वजह से व मुख्य पड़ाव तो था ही। मुख्य व्यापारिक मंडी भी था, जिससे यहाँ के भोटया समुदाय व खेती पर निर्भर अन्य लोगों में समृधि थी। बदरीनाथ यात्रा का पड़ाव होने से इसका और भी महत्व रहा होगा। किन्तु भारत चीन यु( के उपरान्त इस स्थिति में बदलाव आया। भोटिया समुदाय जो पूरी तरह इस वयापार पर निर्भर था उसके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। उसे मजबूरन खेती की तरफ रुख करना पडा। जोशीमठ के आस पास अधिकाँश जनजाति गांव आज भी इस झटके से नहीं उबरे। आज भी अधिकाँश भोटिया बहुल गांवों की स्थिती आदिम जमाने के गांवों जैसी है। लाता से ऊपर के गांवों में जाइए तो आप बाकी दुनिया के हिस्से ही नहीं रह जाते। १९९८ में भूकंप की त्रासदी के बाद बहुत से गांव जर्जर हो गए। उसके बाद की बरसातों की आपदा के चलते गांव बसावट लिहाज से असुरक्षित हो गए।
किसी ने कहा है जहां हम खड़े हैं देश वहीं से शुरू होता है। परन्तु मैं जहां रहता हूँ  वहाँ देश खत्म होता है और यह सिर्फ मुहावरे के तौर पर ही नहीं बल्कि सचमुच ही। जोशीमठ भारत के सीमा का आखिरी प्रखंड है। इसकी सीमा फिर तिब्बत या चीन से मिलती है और जिस तरह यह भौगोलिक तौर पर हाशिए पर यानी सीमान्त पर है उसी तरह विकास के पैमाने पर भी हाशिए पर ही है। कुछ समय पहले हम थैंग गांव के लोगों के साथ जोशीमठ के उपजिलाधिकारी से मिले। सवाल था कि पिछले पांच साल में थैंग मोटर मार्ग तीन किलोमीटर भी पूरा नहीं बन पाया है जबकि इसे २0११ में १0 किलोमीटर बन कर पूर्ण हो जाना था। इस सडक के लिए दी गयी राशि जबकि आधी से ज्यादा भुगतान की जा चुकी है, जो सडक बनी भी है उसका हाल ये कि पैदल चलना मुश्किल हो गया है। थैंग गांव जोशीमठ से २२ किलोमीटर की दूरी पर बसा गांव है। सडक से लगभग १0 किलोमीटर की दूरी है। वैसे जोशीमठ से चाहें तो थोडा नजरों पर जोर डालने पर दिखाई भी देता है परन्तु आजादी के इतने साल बाद भे सड़क नहीं। जिस सड़क के पूरा होने की बात लोग जोह रहे हैं, इस सडक के लिए सन २00५ में गांव के लोगों ने आंदोलन किया। आंदोलन के दौर में जब किसी तरह सुनवाई नहीं हुई तो लोगों ने सड़क पर जाम लगा दिया, जिस पर तत्कालीन उपजिलाधिकारी के आदेश पर पुलिस ने ग्रामीणों पर लाठीचार्ज कर दिया जिसमें कई महिलाएं व पुरुष घायल हुए। १७ ग्रामीणों पर मुकदमें हुए, आज भी लोग मुकदमों के फैसले के इन्तजार में हैं। लेकिन जिस के लिए ये सब झेला वो सड़क आज तक नहीं बनी, ऐसा ही गांव है-किमाना सडक से ८-९ किलोमीटर की पैदल खड़ी चढ़ाई वाली दूरी पर इसके बगल का गांव पल्ला,जखोला,ऐसे कई गांव हैं। १९६२ से पहले जबकि भारत चीन यु( नहीं हुआ था, जोशीमठ के रास्ते सीमापार व्यापार होता था। यहाँ से भोटिया ब्यापारी उन और अन्य सामान लेकर जाते और वहाँ से नमक लेकर आते। जोशीमठ नीति माना के दर्रों को जाने व जोड़ने का संधिस्थल होने से व्यापारिक मार्ग की वजह से व मुख्य पड़ाव तो था ही। मुख्य व्यापारिक मंडी भी था, जिससे यहाँ के भोटया समुदाय व खेती पर निर्भर अन्य लोगों में समृधि थी। बदरीनाथ यात्रा का पड़ाव होने से इसका और भी महत्व रहा होगा। किन्तु भारत चीन यु( के उपरान्त इस स्थिति में बदलाव आया। भोटिया समुदाय जो पूरी तरह इस वयापार पर निर्भर था उसके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। उसे मजबूरन खेती की तरफ रुख करना पडा। जोशीमठ के आस पास अधिकाँश जनजाति गांव आज भी इस झटके से नहीं उबरे। आज भी अधिकाँश भोटिया बहुल गांवों की स्थिती आदिम जमाने के गांवों जैसी है। लाता से ऊपर के गांवों में जाइए तो आप बाकी दुनिया के हिस्से ही नहीं रह जाते। १९९८ में भूकंप की त्रासदी के बाद बहुत से गांव जर्जर हो गए। उसके बाद की बरसातों की आपदा के चलते गांव बसावट लिहाज से असुरक्षित हो गए। लोगों के विस्थापन की मांग करने पर, सरकार द्वारा सर्वे करवाया गया। सन २00७ में प्रशासन द्वारा बनाई गयी सूची के अनुसार जोशीमठ प्रखंड के ३0 गांव विस्थापन की श्रेणी में रखे गए। १६ -१७ जून २0१३ की आपदा के बाद विस्थापित किये जाने वाले गांवों की संख्या बढ़कर ३६ हो गयी। जोशीमठ प्रखंड में कुल गांवों की संख्या ५२ ही है, जब ५२ में से ३६ गांव विस्थापन की श्रेणी में हों तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि भौगोलिक ,भूगर्भिक तौर पर इस क्षेत्र की क्या स्थिति है। प्रशासनिक व शासन की हील हवाली का ये हाल है कि जो गांव पिछले कई सालों से विस्थापन की मांग कर रहे हैं व बहुत दयनीय दशा में गांव में रह रहे हैं उनकी कोई सुनवाई नहीं है। इन्ही में एक गांव है गनाई, यहां के लोग पिछले कई वर्षों से विस्थापन की मांग कर रहे हैं। पिछले छ माह से लगातार आंदोलन के बावजूद कोई ठोस पहल इनके विस्थापन को लेकर नहीं हुई। गांव की हालत ये है कि ठोड़ी सी भी बरसात होने पर लोग जाग कर रात काटते हैं। गांव के एक हिस्से दाड्मी में कुछ लोग दो बार घर बना चुके है और दोनों बार उजाड गए। जब आंदोलन तेज हुआ तो स्थानीय विधायक राजेन्द्र भंडारी राहत के हेलीकाप्टर से गांव पहुँच गए और १५ दिन में विस्थापन कर देने की घोषणा कर आंदोलन बंद करने को कह कर हवा हो गए। तबसे चार माह हो जाने पर लोग फिर सड़क पर हैं। यही हाल बाकी के विस्थापित होने वाले गांवों का है। १६-१७ जून को पूरी तरह तबाह हो गए गांव भ्युडार के लोग भी लड़ हार कर थक गए। किन्तु उनके लिए विस्थापन हेतु भूमि का प्रबंध नहीं हुआ। आज वे उजाड गए गांव पुलना में ही किसी तरह गुजारा करने को मजबूर कर दिये गए हैं। सन २00१ में जोशीमठ के लोग विष्णुप्रयाग परियोजना, जिसे कि जयप्रकाश कंपनी बना रही थी का विरोध करने सडक पर उतरे। लोगों की मुख्या चिंता इस परियोजना की सुरंग बनाये जाने के लिए किये जा रहे विस्फोटन से क्षेत्र को पैदा हो रहे खतरे को लेकर थी। कुछ दिनों बाद नेतृत्वकारियों का कम्पनी से समझौता हो गया और विस्फोट अबाध जारी रहे। पूरा क्षेत्र हिलता रहा। आन्दोलन इसकी बाद भी हुए।वादे आश्वासन भी हुए पर .. ..परियोजना पूरी हो गयी। और कुछ समय बाद २00७ में इन विस्फोटों के परिणाम स्वरूप चाई गांव उजड़ गया। आज भी गाँव इन दरारों के खतरे में है। किन्तु इसके बाद सन २00४ में एक और परियोजना तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना का सर्वे यहाँ प्रारम्भ कर दिया गया। सर्वे की शुरुआत से ही जनता में इस परियोजना को लेकर आक्रोश था, जिस कारण इसका तभी से तीव्र विरोध होने लगा जिसकी वजह जोशीमठ की भूगर्भीय स्थिति को लेकर लोगों में आशंका थी। जिसको लेकर १९७६ में बनी सतीश चन्द्र मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट ने आगाह किया था। इसके बावजूद जोशीमठ के नीचे से सुरंग बनाया जाना जनता को गवारा ना था। लिहाजा जबर्दस्त आंदोलन हुआ। इस आंदोलन की वजह से परियोजना का उद्घाटन,जो कि जोशीमठ में होना था और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा किया जाना था। सारी तैयारियों के बावजूद निरस्त करना पडा।बाद में इस परियोजना का उद्घाटन परियोजना स्थल से ३00 किलोमीटर दूर देहरादून में किया गया और ये सिलसिला यहीं नहीं रुका, इसके बाद कई अन्य परियोजनाओं को स्वीकृति मिली। आज जोशीमठ प्रखंड में दर्जन भर परियोजनाएं या तो प्रस्तावित हैं अथवा कार्य कर रही हैं जिन सभी पर स्थानीय लोगों की स्वीकृति बस नाम भर को कागजी खानापूर्ति के बतौर ही ली गयी। इनमें से लगभग सभी पर जनता की आपत्तियां हैं आंदोलन हैं। शिक्षा और स्वस्थ्य के सवाल पर भी हाशिए पर ही है जोशीमठ। सुदूर गांवों की शिक्षा की हालत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि अधिकाँश वहन कर पाने वाले लोग बच्चों को जोशीमठ नगर में लाकर पढाते हैं और नगर की शिक्षा प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं के हवाले है। ५0 -६0 हजार की आबादी वाले जोशीमठ ब्लोक का एक मात्र प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जोशीमठ में है। जिसमें चिकित्सकों का अभाव है। एक भी सर्जन नहीं है। महिलाओं के लिए बना अस्पताल वीरान बाजार पडा है। जबकि यात्रा काल में सडक दुर्घटनाओं के लिए अत्यंत संवेदनशील ये क्षेत्र इसी अस्पताल के भरोसे है जो सामान्य दिनों में ही रेफेरिंग सेंटर की तरह काम करता है।