रविवार, 30 नवंबर 2014

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

अमृत

अमृत 

मैंने धीरे से आँखे खोली, एम्बुलेंस शहर के एक बड़े हार्ट हास्पिटल की ओर जा रही थी। मेरी बगल में भारद्वाज जी, गौतम और सूरज बैठे थे। मुझे देखकर सूरज ने मेरा हाथ थपथपाया और कहा, “ईश्वर अंकल, आप चिंता न करे, मैंने हास्पिटल में डाक्टर्स से बात कर ली है, मेरा ही एक दोस्त वहाँ पर हार्ट सर्जन है, सब ठीक हो जायेंगा। “गौतम और भारद्वाज जी ने एक साथ कहा, “हाँ सब ठीक हो जायेंगा। “मैंने भी धीरे से सर हिलाकर हाँ का इशारा किया। मुझे यकीन था कि अब सब ठीक हो जायेंगा।
मैंने फिर आँखे बंद कर ली और बीते बरसो की यात्रा पर चल पड़ा। यादो ने मेरे मन को घेर लिया।
कुछ बरस पहले
कार का हार्न बजा। किसी ने ड्राइविंग सीट से मुंह निकाल कर आवाज लगाई, “अरे चैकीदार, दरवाजा खोलना। “
मैंने आराम से उठकर दरवाजा खोला। एक कार भीतर आकर सीधे पार्किंग में जाकर रुकी। मैं धीरे धीरे चलता हुआ उनकी ओर बढा। कार में से एक युवक और युवती निकले और पीछे की सीट से एक बूढी माता। युवक कुछ बोलता, इसके पहले ही मैंने कहा, “अमृत वृ(ाश्रम में आपका स्वागत है, आफिस उस तरफ है। “
मैंने गहरी नजरों से तीनो को देखा। ये एक आम नजारा था इस वृ(ाश्रम के लिए। कोई अपना ही अपनों को छोडने यहाँ आता था। सभी चुप थे पर लड़के के चेहरे पर उदासी भरी चुप्पी थी। लड़की के चेहरे पर गुस्से से भरी चुप्पी थी और बूढी अम्मा के चेहरे पर एक खालीपन की चुप्पी थी। मैं इस चुप्पी को पहचानता था। ये दुनिया की सबसे भयानक चुप्पी होती है। खालीपन का अहसास, सब कुछ होते हुए भी डरावना होता है और अंततः यही अहसास इंसान को मार देता है।
तीनों धीरे धीरे मेरे संग आफिस की ओर चल दिए। मैं बूढी अम्मा को देख रहा था। वो करीब करीब मेरी ही उम्र कीथी। बहुत थकी हुई लग रही थी, उसके हाथ कांप रहे थे। उससे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था। अचानक चलते चलते वो लडखडाई तो मैंने उसे झट से सहारा दिया और उसे अपनी लाठी दे दी। लड़के ने खामोशी से मेरी ओर देखा। मैंने बूढी अम्मा को सांत्वना दी। “ठीक है अम्मा। धीरे चलिए, कोई बात नहीं। बस आपका नया घर थोड़ी दूर ही है। ”मेरे ये शब्द सुनकर सब रुक से गए। युवती के चेहरे का गुस्सा कुछ और तेज हुआ। लड़के के चेहरे पर कुछ और उदासी फैली और बूढी माँ के आँखों से आंसू छलक पडे। युवती गुर्राकर बोली, “तुम्हे ज्यादा बोलना आता है क्या? चैकीदार हो, चैकीदारही रहो”। मैंने ऐसे दुनियादार लोग बहुत देखे थे और वैसे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं इन जमीनी बातो से बहुत ऊपर आ चुका था। मैंने कहा, “बीबीजी, मैंने कोई गलत बात तो नहीं कही, अब इनका घर तो यही है। ”युवती गुस्से से चिल्लाई, “हमें मत समझाओ कि क्या है और क्या नहीं। “युवक ने उसे शांत रहने को कहा। बूढी अम्मा के चेहरे पर आंसू अब बहती लकीर बन गए थे।
ये शोर सुनकर आफिस से भारद्वाज और शान्ति दीदी बाहर आये।उन्होंने पुछा, “क्या बात है ईश्वर किस बात का शोर है? ”मैंने ठहर कर कहा”जी, कोई बात नहीं,बस ये आये है। बूढी अम्मा को लेकर।“ युवती फिर भड़क कर बोली, “तुम जैसे छोटे लोगो के मुंह नहीं लगना चाहिए।“ भारद्वाज जी सारा मामला समझ गए। उन्होंने शांत स्वर में कहा, मैडम जी, यहाँ कोई छोटा नहीं है और न ही कोई बड़ा। ये एक घर है, जहाँ सभी एक समान रहते है। और मुझे बड़ी खुशी होती अगर ऐसा ही घर समाज के हर हिस्से में भी रहता!
युवती कसमसा कर चुप हो गयी। युवक ने सभी को भीतर चलने को कहा। जाते जाते बूढी अम्मा ने मुझे पलटकर देखा। मैंने उसे आँखों ही आँखों में एक अपनत्व भरी सांत्वना दी !
आफिस में मैंने बूढी माता के लिए कुर्सी लाकर रख दी। मैं उन सभी को और इस फानी दुनिया के खत्म होते रिश्तो को देखते हुए खुद दरवाजे के पास खड़ा रहा। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद युवक धीरे से बोला, भारद्वाज जी, आपसे कल बात हुई थी, मैं अमित हूँ, ये मेरी माँ है। इनके बारे में आपसे बात कीथी। इतना बोलने के बाद वो चुप हो गया। वो असहज सा था। उसका गला रुक रुक जाता था। मैंने अपने लम्बे जीवन में ये सब बहुत देखा था। मैंने युवती की ओर देखा। वो अभी भी गुस्से में ही थी। बूढी अम्मा अपने बेटे की ओर देख रही थी,इस आशा में कि अब जो होने वाला है, वो नहीं होंगा और वो फिर वापस चल देंगे। लेकिन मैं जानता था, ये नहीं होने वाला था।
मैंने चुपचाप अलमारी से रजिस्टर और रसीद बुक निकाल कर भारद्वाज जी के सामने रख दिया। भारद्वाज जी ने अमित को वृ(ाश्रम के खर्चे के बारे में बताया। अमित ने चुपचाप अपने पर्स से रुपये निकाल कर दे दिये और जरुरी कागजात पर दस्तखत कर दिए।
बूढी अम्मा की आँखों से आंसू बहे जा रहे थे वो अब भी अपने बेटे को देखी जा रही थी। भारद्वाज जी ने धीरे से कहा, अब सब ठीक है जी। ये सुनते ही युवती उठकर खड़ी हो गयी चलने के लिए। बूढी अम्मा ने अपने आंसू पोंछ दिए और युवती से कहा, बहु, अमित का ख्याल रखना। युवती ने कोई जवाब नहीं दिया और बाहर की ओर चल दी। युवक बैठा रहा चुपचाप। फिर उसकी आँखों में से भी आंसू टपक पडे। बूढी अम्मा ने कहा, जाने दे बेटा। सब ठीक है। यहाँ ये सब मेरा ख्याल रखेंगे। तू अपना ख्याल रखना, समय पर खाना खा लिया करना। युवक, बूढी औरत के पैरों पर गिर पड़ा और रोने लगा, माँ मुझे माफ कर दे।
माँ बेचारी क्या करती। वो तो है ही ममता की मूरत। उसने उसे उठाया और कहा, अमित, कोई बात नहीं, चलो अपना घर बार संभालो, मेरा क्या है, आज हूँ, कल नहीं। तू जा। हाँ, अब कभी मुझसे मिलने मत आना। युवक अवाक सा चुप खड़ा रहा। ये खामोशी विदाई की थी। ये खामोशी रिश्तो के टूटने की थी। ये खामोशी य इंसान की इंसानियत के मरने की भी थी। इतने में दो आवाजे एक साथ आई। उस युवती की, जो बाहर से चिल्ला रही थी, अब चलो भी, यहीं नहीं रहना है मुझे और दूसरी आवाज शान्ति की थी, जिसने बूढी अम्मा को सहारा देकर अन्दर चलने के लिए कहा था।
युवक चुपचाप हार और बेचारगी को अपने चेहरे पर लिए बाहर की ओर चल दिया। बाहर जाते हुए उसने मुझे कुछ रुपये देने चाहे और कहा, चैकीदार भैय्या, माँ का ख्याल रखना मैंने उसके पैसे वापस लौटाते हुए कहा, माँ का ख्याल तो हम रख लेंगे अमित बाबू। आप सोचो, आपका माँ जैसा ख्याल अब कौन रखेंगा। और यहाँ पैसे नहीं प्यार का सौदा होता है। युवक खामोशी से मुझे देखता रह गया।
युवक- युवती कार की ओर चल दिये, बूढी अम्मा शान्ति दीदी के साथ भीतर की ओर चल दी। भारद्वाज जी मुझे देखते हुए अलमारी की ओर चल दिए और मैं फिर से अपनी जगह गेट पर चल दिया।
मेरे लिए ये कहानी लगभग हर महीने की थी। जब कोई न कोई किसी न किसी अपने को यहाँ छोड़ जाता है। हाँ आज की गाथा थोड़ी अलग सी थी। लड़का जिन्दगी के पेशोपेश में था, पर कायर था, खैर मैंने मन ही मन गिनती की, अब यहाँ २६ लोग हो गए थे। ये वो बूढ़े थे, जिनमें से किसी का कोई नहीं था, इसीलिए वो यहाँ थे और किसी का हर कोई होते हुए भी यहाँ था। कोई गरीब था, कोई अमीर था, पर एक बात सबमे एक समान थी,वो ये कि सबके सब इस जगह पर अकेले ही बन कर आये। और यहाँ आकर एक दुसरे से मानसिक और भावनात्मक रूप से जुड़ गए। यहाँ की बात कुछ और है। यहाँ सबको एक अपनापन मिलता है। घर से अलग होकर भी यहाँ घर जैसा प्रेम और अपनत्व मिलता है।
बहुत बरस पहले
इस जगह का नाम अमृत वृ(ाश्रम था। और मेरा नाम ईश्वर। पता नहीं मेरी माँ ने क्या सोच कर मेरा नाम इतना अच्छा रखा था। जब मैं बीस बरस का था, तब मैं अपनी माँ के साथ अपना गाँव छोड़कर यहाँ आया था, तब ये एक छोटा सा हास्पिटल था। डाक्टर अमृतलाल नामक सज्जन इस जगह के मालिक थे। इस हास्पिटल में माँ का इलाज होने लगा और फिर मुझे भी कहीं नौकरी चाहिए थी सो मैं इस हास्पिटल का वार्ड बाय ़ चैकीदाऱ सारे बचे हुए काम करने वालाबन गया था। माँ का बहुत इलाज हुआ, उसे टी बी थीपर वो बच नहीं सकी। करीब एक साल के बाद वो चल बसी। अब मेरा इस दुनिया में कोई नहीं था, सो मैं यही का होकर रह गया। धीरे धीरे अमृतलाल जी का मैं विश्वसनीय बन गया। हास्पिटल बड़ा होने लगा, लोग आने लगे। अमृतलाल जी का यहाँ कोई न था जो यहाँ रह सके। एक अकेला बेटा गौतम था जो कि डाक्टर बनने की चाह में चंडीगढ़ में एम.बी.बी.एस. कर रहा था। ये उसका आखरी साल था। अमृतलाल जी चाहते थे कि वो यहीं इसी जनता हास्पिटल में आकर काम करे। लेकिन उसके इरादे कुछ और थे, वो आगे की पढाई के लिए लन्दन जाना चाहता था और इसी बात पर अक्सर दोनों पिता पुत्र में तेज बातचीत हो जाती थी।
हास्पिटल बढ़ रहा था, सस्ता हास्पिटल होने की वजह से बहुत से गरीब यहाँ आते थे। अमृतलाल जी की पुस्तैनी संपत्ति से ये हास्पिटल चल रहा था। मैं हास्पिटल का हर काम कर लेता था। सब मुझे पसंद भी करते थे। मैं मेहनती था और माँ के गुजरने के बाद हर किसी की सेवा करता था। और सभी इसी सेवाभाव से खुश थे। अमृतलाल जी मेरा ख्याल रखते थे। मैं उन्ही के साथ उन्ही के घर पर रहता था। एक दिन उनके मित्र भारद्वाज जी उनसे मिलने आये। दोनों बहुत सालों के बाद मिले थे। मैंने उनके लिए खाना बनाया। खाने के दौरान भारद्वाज जी ने अमृतलाल जी से कहा कि उनकी बहु उनसे ठीक बर्ताव नहीं करती है और वो बहुत दुखी हैं। अमृतलाल ने बिना सोचे कहा कि वो यही आकर रहे और उनके साथ इस हास्पिटल की देखभाल करे। भारद्वाज को जैसे मन चाहा वरदान मिल गया। वो यही रह गए। अमृत जी का घर बड़ा सा था, मैं उन के लिए खाना बनाता, घर का रखरखाव करता और वहीं रहता। दोपहर में हास्पिटल के छोटे बड़े काम करता। बस जिन्दगी कट रही थी। ये हास्पिटल एक बहुत बड़े परिवार का अहसास दिलाते रहता था।
मेरे मन में कभी शादी करने का ख्याल भी नही आया। काम इतना रहता था कि किन्हीं और बातोंके लिए समय ही नहीं मिल पाता था। इतने सारे लोगो की सेवा में मुझे बहुत खुशी मिलती,बदले में मुझे आशीर्वाद और प्रेम ही मिलता। सब ने मुझे हमेशा अपना ही समझा।
समय बीतने के साथ भारद्वाज जी ने उस हास्पिटल के पिछले हिस्से में एक वृ(ाश्रम खोला। जहाँ उन बूढ़े व्यक्तियों को रहने की व्यवस्था की गयी थी, जिनका सब कुछ होकर भी, कहीं कोई नहीं था, कहीं कुछ नहीं था। मैंने धीरे धीरे ये हिस्सा संभालना सीख लिया। मेरे विनम्र और दयालु स्वभाव की वजह से सब मुझे अपना ही मानने लगे।
एक दिन भारद्वाज का लड़का आया अपनी पत्नी के साथ, जायदाद मांगने के लिए। खूब हंगामा हुआ, भारद्वाज जी ने गुस्से में सारी जायदाद इस वृ(ाश्रम के नाम लिख दीऔर उसी वक्त से अपने बेटे,बहु से रिश्ता तोड़ लिया। मैं अवाक था। मैंने अक्सर यहाँ एक घर को टूटते और दुसरे घर को बनते देखा है।
हम तीनो मैं, अमृतलाल जी और भारद्वाज जी दीन दुखियों की सेवा में ही अपना सारा सुख ढूंढते थे। फिर वो दिन भी आ ही गया जो मुझे कभी पसंद नहीं था। अपनी पढाई पूरी करके अमृतलाल जी का लड़का लन्दन जाने की तैयारी के साथ आया और अमृतलाल जी को अपना फैसला सुना दिया। अमृतलाल जी ने कहा, ठीक है पढाई पूरी करके वापस आ जाओ ‘और ये हास्पिटल संभालो, लड़के ने मना कर दिया। लड़के ने खुले रूप से कहा कि वो इन गरीबों के लिए नहीं बना है और न ही वो कभी यहाँ आना चाहेगा। उसने पिताजी से कहा, या तो वो उसके साथ चले या यहीं रहें। अमृतलाल जी अवाक रह गए। उन्होंने कहा, ये मेरा घर है, ये सभी मेरे अपने लोग, मैं इन्हें छोड़कर कहाँ जाऊं, मैं ही इन सबका सहारा हूँ। लड़के ने कहा आप ने इन सब का ठेका नहीं लिया हुआ है। मैं आपका अपना बेटा हूँ, आपका खून हूँ, आपको मेरा साथ देना चाहिए। अमृतलाल जी ने कहा, डाक्टर तू बना है, लेकिन सेवाभाव मन में नहीं आया है। लड़के ने कहा, सेवा करने के लिए मैंने पढाई नहीं की है। मैंने एक सुख भरे जीवन की कल्पना की है, जो कि यहाँ रहने से नहीं मिलेगा। आप मेरे साथचलिए। पर अमृतलाल जी नहीं माने। मैं चुप था। भारद्वाज जी भी चुप थे। अमृतलाल जी ने उसकी पढाई के लिए पैसों की व्यवस्था कर दी और चुपचाप सोने चले गए। लड़का दूसरे दिन चला गया अकेला ही बिना अपने पिता को साथ लिये। हमेशा के लिए।
अमृतलाल जी उसका पैसा भेजते रहे। वो पढ़ता रहा, उसने वही लन्दन में अपने साथ काम करने वाली डाक्टर लडकी से शादी कर ली और फिर बीतते समय के साथ, उसे एक बेटा भी पैदा हुआ, उसका नाम सूरज था, ये नाम अमृतलाल जी ने ही सुझाया था।
फिर वो दिन भी आ ही गया, जिसे मैं कभी भी याद भी नहीं करना चाहता।
उस दिन अमृतलाल जी का जन्मदिन था। उन्हें सुबह से ही सीने में दर्द था। उनका बेटा गौतम लन्दन से आया हुआ था और वो शाम को मिलने आने वाला था। अमृतलाल जी की उससे मिलने की बहुत इच्छा थी, क्योंकि उनका पोता सूरज भी साथ आया हुआ था।उन्होंने अब तक उसे नहीं देखा था। हॉस्पिटल में उस दिन कोई नहीं था। हम सब उनके कमरे में थे, मैंने और भारद्वाज जी ने उनके कमरे को सजाया। शाम को करीब एक वकील साहब आये। अमृतलाल जी, वकील साहब और भारद्वाज जी के साथ अपनी बैठक में चले गए। करीब एक घंटे बाद वो सब बाहर निकले। अमृतलाल जी के चेहरे पर परम संतोष था।
फिर वो इन्तजार करने लगे अपने बेटे, बहु और पोते का। मैंने सभी के लिए अच्छा सा खाना बनाया हुआ था और हाँ,उनके लिए केक भी ले कर आया था। हम सब इन्तजार ही कर रहे थे कि अचानक शहर में तेज बारिश होने लगी,बर्फ के ओले भी गिरे, और आंधी तूफान का माहौल हो गया। बिजली भी चली गयी, मैंने और भारद्वाज जी ने लालटेन जलाई। हम इन्तजार कर ही रहे थे कि उनका बेटा गौतम अपने परिवार के साथ आये लेकिन कुछ ही देर बाद उसका फोन आ गया कि वो इस आंधी तूफान मेंनहीं आ सकता। यह सुनकर अमृतलाल जी का चेहरा बुझ गया। उन्होंने हमें सो जाने को कहा।और वापस अपनी बैठक में जाकरदरवाजा अंदर से बंद कर लिया। हम दोनों चुपचाप थे। रात गहराती जा रही थी। मैंने भारद्वाज जी से कहा कि वो भी सो जाएं। उनके सोने के बहुत देरबाद रातकरीब दो बजे मैंने हिम्मत करकेअमृतलाल जी की बैठक में झांक कर देखा, वो चुपचाप बैठे थे। बार बार वो अपने फोन कीओर देख उठते थे कि शायद वो बजे और संदेशा आये कि उनका गौतम आ रहा है।लेकिन उसने न बजना था सोन बजा। के वैसे ही पड़ा रहा। खानाकिसी ने भी नहीं खाया।
मैं वहीँ बैठक के बाहर बैठे बैठे सो गया। सुबह सुबह भारद्वाज जी ने मुझे उठाया। वो और अमृतलाल जी दोनों रोज सैर को जाते थे। रात बीत चुकी थी। आंधी तूफान भी ठहर गया था। मैंने दरवाजा ठकठकाया। दरवाज अन्दर से बंद था, कोई आवाज नहीं आई, हम दोनों आशंकित हो उठे और जोर जोर से दरवाजा ठोका। फिर नहीं खुला तो तोड़ दिया। वही हुआ जिसका डर था। अमृतलाल जी चल बसे थे। मैं और भारद्वाज जी रोने लगे। इतने में गौतम अपनी पत्नी और सूरजके साथ आ पहुंचा। उसे सब कुछ समझते हुए देर नहीं लगी। वो अचानक ही चुप हो गया। भारद्वाज जी ने कहा, गौतम तुम यही बैठो। इतने बड़े इंसान है, बहुत से लोग आयेंगे। बहुत सा काम करना होगा, हम सब इंतजाम करते है।
अंतिम संस्कार हुआ, सारे शहर से लोग आये। मुझे भी उस दिन पता चला कि अमृतलाल जी की इस शहर में कितनी इज्जत थी। गौतम चुपचाप बैठा रहा, बहु भी चुपचाप ही थी, हाँ पोता सूरज थोडा परेशान सा था, विचलित था। उसने दादा को पहले कभी नहीं देखा था और जब देखा तो इस अवस्था में देखा था। वो बार बार रो उठता था। गौतम चुपचाप इसलिए था कि उसने शहर के लोगों की भीड़ देखी थी और उसे समझ में आ गया था कि उसने क्या खो दिया है? मैं खुद हैरान सा था कि कितने सारे लोग उनसे प्रेम करते थे और कितनांे का रो रोकर बुरा हाल था।
रात को सारा कार्यक्रम निपटने के बाद, हम जब बैठे तो सिर्फ झींगुरो की आवाजे ही सुनाई दे रही थी। सभी बहुत चुपचाप थे। मैं था, भारद्वाज जी थे और गौतम था।बहु,सूरजके साथ सोने चली गयी थी, सूरज को हल्का सा बुखार आ गया था और वो मन से भी परेशान था। इतने में वकील साहब आये। वो अमृतलाल जी के पुराने मित्र थे। उन्होंने कहा, कल रात को शायद अमृत को आशंका हो गयी थी कि वो शायद ज्यादा दिन नहीं रहेगा। उसने अपनी वसीयत करवा ली थी। मैं उसे आप सब को बताना चाहता हूँ।
मैं उठकर खड़ा हो गया। वकील ने मुझे बैठने को कहा। वकील ने कहा जायदाद के तीन हिस्से हुए है। एक बड़ा हिस्सा इस हास्पिटल और वृ(ाश्रम को दिया गया है। दूसरा हिस्सा पोते सूरज के लिए दिया गया है और तीसरा हिस्सा चैकीदार ईश्वर के नाम है।
ये सुनकर मैं बहुत जोर से चैंका। मैंने कहा, साहब, कोई गलती हो गयी होगी, मुझे कोई पैसा रकम नहीं चाहिए। मैं तो यही रहूँगा। सब कुछ मेरा अब यही है। अमृत साहब मेरे पिता जैसे थे। उनके बाद अब मेरा कौन है कहकर मैं रोने लगा।
वकील ने समझाया, भाई जो उन्होंने कहा, वो मैंने किया, भारद्वाज भी थे वहां। पूछ लो।
मैंने कहा, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मेरा हिस्सा भी सूरज को ही दे दीजिये। वकीलने मेरा सर थपथपाया। मैं चुपचाप आंसू बहाने लगा।
गौतम चुपचाप उठकर खड़ा हो गया। उसने कहा, कल सुबह मिलते है, राख को नदी में बहाने जाना है
रात बहुत गहरी हो रही थी और मेरी आँखों में नींद नहीं थी। कल तक मैं कुछ भी नहीं था और आज इस जायदाद के एक हिस्से का मालिक। लेकिन मैं इस रुपये का क्या करूँगा, मेरे तो आगे पीछे कोई है ही नहीं। नहीं नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं तो इसी जगह के एक कोने में पड़ा रहूँगा।
सुबह हुई, हम सब वही पास में मौजूद नदी के किनारे चले, रास्ते में शमशान घाट से अमृत जी की चिता में से राख ली और नदी में जाकर उसे बहा दिया, मेरी आँखों से आंसू बहने लगे। भारद्वाज भी रोने लगे। उनका सबसे पुराना और गहरा मित्र जो चला गया था। लड़का जो कल तक कुछ नहीं बोला, आज रोने लगा, उसकी पत्नी भी रोने लगी और सूरज भी रोने लगा।कुछ देर के शोक के बाद सब वापस आये। गौतम पास केट्रेवल एजेंट के पास गया और वापसी की टिकिट करवा ली। वो अचानक ही बहुत शांत हो गया था, अब उसे समझ आ गया था कि जो उसने खोया था वो कभी भी वापस नहीं आने वाला था।
तेरहवी के भोज के बाद, गौतम, मेरे और भारद्वाज के पास आया, उसने उन्हें एक लिफाफा दिया और कहा। मैं सारी वसीयत, जो पिताजी ने सूरज के नाम कीहै, उसे इस वृ(ाश्रम और ईश्वरको देता हूँ। इसके सही हकदार यही दोनों है। मैं शांत था। मैंने एक बार कहा, गौतम भैय्या, अगर यही रुक जाते तो हम सभी को बहुत खुशी होती। गौतम चुपचाप रहा, कुछ नहीं कहा। शायद कुछ कहने के लिए था ही नहीं।
दुसरे दिन गौतम वापस चला गया। शायद हमेशा के लिए। शायद कभी भी वापस नहीं आने के लिए।
कुछ दिनों बाद मैंने वकील से कहकर सारी जायदाद जो कि मेरे नाम थी, उसे उस वृ(ाश्रम के नाम कर दी। अब चूँकि अमृत जी नहीं रहे तो धीरे धीरे हास्पिटल बंद हो गया और फिर कुछ दिनों के बाद सिर्फ, आज का ये अमृत वृ(ाश्रम ही रह गया। भारद्वाज जी सारा काम काज संभालते और मैं सबकी सेवा करते रहता।
मैंने भारद्वाज से वचन लिया कि वो किसी से इस बारे में नहीं कहेंगे कि इस वृ(ाश्रम में मेरा क्या योगदान है। मैंने कहा कि मैं इसी चैकीदार वाले रूप में खुश हूँ। और मुझे यहीं बने रहने दीजिये। भारद्वाज जी नहीं माने, मैंने फिर उन्हें अपनी कसम दी, वो चुप हो गए। उन्होंने कहा, बेटा, तू सच में ईश्वर है। भगवान हर किसी को तेरे जैसी ही औलाद दे।
वृ(ाश्रम चल पड़ा। यहाँ हर महीने कोई न कोई आ जाता, कोई न कोई गुजर जाता। मैं कई बातो का अभ्यस्त हो चुका था। जिन्दगी चल रही थी, एक दुसरे के सुख दुःख बांटते थे। मिलकर काम करते थे, हमने कुछ नर्से रखी हुई थी। कुछ लोग रखे हुए थे। सब इस आश्रम की देखभाल करते थे। और भारद्वाज जी ने सभी से कह दिया था कि ईश्वर की बात हर कोई माने। बहुत कम लोग मुझे ईश्वर कहकर पुकारते थे। ज्यादातर लोग मुझे सिर्फ चैकीदार ही कहते थे। और मुझे इससे कोई शिकायत भी नहीं थी।
कुछ बरस पहले
एक दिन शान्ति दीदी का फोन आया। शान्ति हमारे पुराने हास्पिटल में नर्स थी, उसके आगे पीछे कोई नहीं था, एक भतीजा था, जो कि उसकी नौकरी पर अपनी जिन्दगी के मजे ले रहा था। फिर शान्ति को एक दिन एक्सीडेंट में पैर में चोट लग गयी। वो अब काम पर नहीं आती थी। फिर भी अमृत जी ने इंतजाम करवाया था कि उसे हर महीने, उसकी तनख्वाह मिल जाए।
उस दिन उसका फोन आया कि उसके भतीजे ने उसका घर ले लिया है और उसे घर से निकल जाने को कह रहा है, अब वो बेसहारा है। मैंने और भारद्वाज जी ने कहा कि वो बेसहारा और बेआसरा नहीं है, वो यहाँ आ जाए और फिर मैं उसे लाने के लिए आश्रम की गाडी लेकर उसके घर पंहुचा। मैं जब उसे लेने गया तो देखा वो घर के बाहर एक छोटी सी पेटी लेकर चुपचाप बैठी है। मुझे देखकर वो उठी, पैर की चोट की वजह से वो लड़खड़ा गयी,मैंने दौड़कर उसे संभाला। मैंने उससे कहा और कोई सामान, जो ले जाना हो? उसने कहा, कुछ नहीं, जो कुछ कमाया, वो ये घर ही था। वो भी छिन गया। अब कहीं कुछ नहीं रहा। लेकिन हाँ वृ(ाश्रम जाने के पहले मुझे तुम कुछ जगह ले जा सकते हो तो मुझे बहुत खुशी होगी।
मैंने कहा कोई बात नहीं आप चलो तो। मैंने उसे गाडी की पिछली सीट पर बिठाकर उससे पुछा, बताओ कहाँ जाना है? उसने कहा, मैं हर जगह एक बार जाना चाहती हूँ जहाँ मैंने अपनी जिन्दगी का कोई हिस्सा जिया है। मैंने धीरे से पुछा, अब इस बात का क्या मतलब है? उसने शायद रोते हुआ कहा था, मुझे पता है, मैं उस वृ(ाश्रम में आखरी दिन बिताने जा रही हूँ जहां से अब कभी भी नहीं लौट पाउंगी। मैं चुप हो गया। मेरे गले में कुछ अटक सा गया था। मुझे भी शायद रुलाई आ रही थी। पर मैंने चुपचाप गाडी आगे बड़ा दी। उसने रास्ते में रूककर कुछ फूल खरीदे।
सबसे पहले वो एक मोहल्ले में, एक बड़े से घर के पास मुझे लेकर गयी, उसे देखते हीउसकी आँखों में बड़ा दर्द सा उमड आया। उसने मुझे बताया कि वो ब्याह कर इसी घर में आई थी, फिर इसी घर में उसके पति का देहांत हो गया। और इसी घरवालो ने उसे उसके बच्ची सहित घर से बाहर निकाल दिया।
फिर वो मुझे एक इसाई हास्पिटल में लेकर आई, जहाँ उसने मुझे बताया कि यहाँ एक सिस्टर मेरी थी, जिसने उसे सहारा दिया और यहाँ पर उसे नर्सिंग सिखाया। फिर वो यहीं पर नर्स बनी और फिर इसके बाद वो हमारे हास्पिटल में नर्स बनी।
फिर वो मुझे एक कब्रिस्तान में लेकर आई, उसने रास्ते में जो फूल खरीदे थे, उन्हें लेकर उतर गयी। मैंने उसे एक प्रश्न भरी निगाह से देखा। उसने आँखों में आंसू भरकर कहा, यहाँ मेरी बच्ची की कब्र है, बचपन में ही कुपोषण की वजह से बीमारियों की शिकार हुई और फिर एक दिन इस दुनिया से चल बसी। उसी की कब्र पर वो फूल चढाकर आना चाहती थी। मेरे मुँह से कोई बोल न फूटे। वो भीतर चली गयी और मैं फूट फूट कर रो पडा।
कुछ देर बाद वो आई तो बहुत संयत दिख रही थी, वो शायद जी भरकर रो चुकी थी और अपना मन हल्का कर चुकी थी। वो गाडी में आकर चुपचाप बैठ गयी और एक गहरी सांस लेकर कहा, चलो, मेरे नए घर में मुझे ले चलो, मैंने गाडी को मोड़ते हुए धीरे से पुछा, एक बार क्या वो अपना घर भी देखना चाहेंगी, जिसे वो छोड़ कर आ रही है। उसने एकआह भरी और थोडा सोचकर कहा, हाँ एक बार दिखा दो, मैंने बड़ी मेहनत से उसे बनाया है। पर उसे भी इस दुनिया के मक्कार लोगों ने छीन लिया।
मैंने चुपचाप उसे उसके घर के पास रोका। वो बहुत देर तक कार में बैठकर उसे देखती रही और रोती रही, फिर उसने धीरे से कहो, चलो चलते है। मैं उसे यहाँ ले आया, तब से वो यही पर है और इसीआश्रम का एक हिस्सा है। और मेरी तरह सबकी सेवा करती है।
अब
इसी तरह की कहानियों और किस्सों से भरा हुआ है ये अमृत वृ(ाश्रम। लेकिन एक बात यहाँ बहुत अच्छी है, लोग यहाँ आकर अपने दुःख भूल जाते है, और सब एक ही परिवार का हिस्सा बनकर रहते है। मेरे परिवार का, हां, ये मेरा ही तो परिवार है एक बड़ा सा भरा हुआ परिवार। मेरा अपना तो कोई है नहीं, लेकिन ये सभी अब मेरे अपनी ही बन गए हैं। ये तो परमात्मा की ही कृपा थी, कि अमृतलाल जी, भारद्वाज जी और मैं, हम सब की सोच एक जैसी थी। और इस सपने को हमने जीवन दिया। यहाँ हर धर्म के लोग रहते है और यहाँ हर त्यौहार भी मनाया जाता है। बस जीवन के अंतिम दिनों में सभी खुश रहे यही हम सबकी एक निरंतर कोशिश रहती है।
बस एक कमी है, और वो है -हास्पिटल की सेवाएं, उसके लिए हमें दूसरो पर, दूसरे हास्पिटल्स पर निर्भर रहना पड़ता था। अब सभी बूढ़े थे। सो हमेशा कोई न कोई बीमार ही रहता था। अक्सर हमें किसी न किसी को हास्पिटल ले जाना पड़ता था। आश्रम के पास एक एम्बुलेंस था और्शंती थोड़ी बहुत प्राथमिक उपचार कर लेती थी, पर हमेशा ही हॉस्पिटल जाना पद जाता था।अक्सर ऐसे मौको पर एक कसक सी दिल में उठती थी कि, काश, उस वक्त,अमृतजी का बेटा, गौतम यहाँ रुक गया होता, या पढाई पूरी करके यही बस गया होता तो वो हास्पिटल कभी भी बंद नहीं होता।
खैर विधि का विधान जो भी हो।
आज
आज सुबह मैं थोडा जल्दी उठ गया हूँ। कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। शायद उम्र का असर था। पता नहीं मेरी उम्र कितनी हो गयी है, आजकल कुछ याद भी नहीं रहता।
भारद्वाज जी ने आकर मुझे देखा और कहा, ईश्वर शायद तुम्हारी तबियत खराब है, तुम आराम कर लो। मैंने कहा जी कुछ नहीं, थोड़ी सी हरारत है शायद उम्र थक रही है।
इतने में एक कार आकर रुकी। हम दोनों ने पलटकर दरवाजे की ओर देखा। कार से अचानक एक आवाज आई, ईश्वर काका! मेरे लिए ये एक नया संबोधन था। सब मुझे चैकीदार ही कहकर पुकारते थे। बाहर की दुनिया में किसी को मेरा असली नाम पता नहीं था। हम दोनों ने गौर से देखा। कार का दरवाजा खुला और एक सुखद आश्चर्य की तरह अमृतलाल जी का बेटा गौतम,एक नौजवान के साथ उतरा। मुझे बहुत अच्छा लगा, मैंने भारद्वाज जी से कहा, आज सूरज हमारे आँगन में उगा है,जरुर ये सूरज होगा।अमृत जी का पोता। पास आकर गौतम ने कहा हाँ, ईश्वर ये सूरज है। हमारा सूरज, आप का सूरज, हम सब का सूरज। सूरज ने मेरे पास आकर मेरे पैर छुए तो मेरी आँखे छलक गयी, पहली बार किसी ने मेरे पैर छुए थे। मेरे हाथ कांपते हुए आशीर्वाद देने के लिए उठ गए। सूरज ने कहा, ईश्वर काका। मैं आज आपसे अपने पिता जी की तरफ से माफी मांगने आया हूँ और दादाजी का सपना पूरा करने आया हूँ। मेरी आँखे खुशी से बह रही थी। सूरज ने आगे कहा, मैंने भी डा0क्टरी की पढाई पूरी कर ली है और अब मैं और पिताजी यहीं रहेंगे और दादाजी का सपना पूरा करेंगे। “मैंने कंपकंपाते स्वर में पुछा, “और माँ ?”गौतम ने कहा, “वो नहीं रही। इसी साल उसका देहांत हो गया और मैंने फैसला कर लिया है कि अब हम यही आकर रहें, आपने और भारद्वाज अंकल ने जो निस्वार्थ सेवा का बीड़ा उठाया है, अब हम भी उसमें अपना योगदान देंगे। यही सच्चे अर्थो में हमारी वापसी होगी, अपने देश के लिए, अपने पिता के लिए, उनके उद्देष्य के लिए और यही हमारा प्रायश्चित होगा। “इतना कहकर गौतम ने अपनी आँखों से आंसू पोंछे।
शान्ति जो इतने देर से पीछे से आकर हमारी बाते सुन रही थी वो अपने आंसू पोंछते हुए वापस मुड़कर आश्रम के भीतर गयी और एक पूजा की थाली ले आई। आरती का दिया जला कर दोनों की आरती उतारते हुए उसने कहा, पधारो आपणे देश बेटा ! हम सबकी आँखे भीग उठी।
गौतम ने एक लिफाफा निकाल कर मेरे और भारद्वाज जी के हाथो में दिया और कहा, इसमें मेरी सारीसंपत्ति के कागजात है, मैंने अपना सबकुछ इस वृ( आश्रम को दे दिया है। और इसकीसारी जिम्मेदारी ईश्वर और भारद्वाज अंकल को सौंपी है, सब कुछ अब इस आश्रम की मिटटी के लिए।
ये सुनकर मैं रो पड़ा, मेरा दर्द और बढ गया और मैं कांप कर गिर पडा। सूरज ने तुरंत मेरी नब्ज को देखा और कहा, अरे आपकी नब्ज डूब रही है। जल्दी इन्हें हास्पिटल ले चलो मैं ने कहा, बस बेटा आज का ही इन्तजार था, तुम्हारी वापसी हो गयी और मुझे अब क्या चाहिए? बस अब चलता हूँ।
सूरज ने कहा, कुछ नहीं होंगा,आपको माइल्ड हार्ट अटैक आया है, सब ठीक हो जायेंगा।
भारद्वाज जी ने जल्दी से आश्रम के एम्बुलेंस का इंतजाम किया और मुझे उसमे लिटाकर, शहर के एक हार्ट हॉस्पिटल की ओर चल पड़े।
एक नयी शुरुवात
हास्पिटल आ गया था, मुझे स्ट्रेचर पर आपरेशन थिएटर के भीतर ले जाया जा रहा था, मैंने चारो तरफ सभी को देखा। मुझे खुशी थी। अमृत वृ(ाश्रम अब बेहतर हाथो में था। अमृतलाल जी का और मेरा सपना सच हो गया था। मैंने सभी को प्रणाम किया और भीतर की ओर चल पड़ा। अब सब ठीक हो गया था।अब कोई दुःख मन में नहीं था।और मुझे यकीन था कि मैं भी ठीक हो ही जाऊँगा, फिर से अपने अमृत वृ(ाश्रम की सेवा करने के लिए।

by विजय कुमार सप्पत्ति

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

माफियाओं का राज

माफियाओं का राज

सरकार किसी की भी हो प्रदेश में अगर किसी का बेखोफ राज चल रहा है तो वह माफिया का है। भले बाहर देखने के लिए कभी भाजपा व कभी कांग्रेस का राज चल रहा हो परन्तु हकीकत यह है कि पूरे प्रदेश के तंत्र में राज केवल माफियाओं का ही चल रहा है। माफिया आज शराब, भू, खनन, बांध, जल, जंगल व टेंडर ही नहीं शासन प्रषासन पर पूरी तरह काबिज है। षासन प्रशासन के अपराधीकरण से पूरे समाज में अनैतिकता व भ्रष्टाचार एक प्रकार का दाग नहीं माना जा रहा है। दागदार लोगों को मिल रहे षासन प्रशासन में सम्मान से अपराधी प्रवृति को भारी बढावा मिल रहा है। अपराधियों में शासन प्रशासन का रत्तीभर भी खौप नहीं रहा। हल्द्वानी में 7 वर्शीय अबोध बच्ची के साथ दुराचार व हत्या से पूरा प्रदेष शर्मसार है । वहीं हद्विार में खनन माफिया द्वारा पुलिस दल पर जानलेवा हमले से पूरा तंत्र सन्न है। राजनैतिक दल घडियाली आंसू बहा रहा है। परन्तु हकीकत में इसकी जडों का पोषण कर रहा है। दुराचार, हत्या, भ्रष्टाचार सहित तमाम गैरकानूनी कार्यो की तरफ मनुश्य को धकेलने वाली शराब पर अंकुश लगाने के बजाय पूरी व्यवस्था शराब व उसके अवैध धंधा करने वालों को शर्मनाक संरक्षण दे रही है। ऐसे में अपराध दिन दुगुना रात चैगुना बढ रहा है। नैतिक मूल्य विहिन षिक्षा का अंध व्यवसायीकरण से समाज में चंगैजी प्रवृति को ही बढावा मिल रहा है। इससे ही समाज अपराधिकरण की गर्त में पूरी तरह से फंस चूका है। कुछ महीने पहले देहरादून जनपद में दिल्ली के सैलानियों की निर्मम हत्या का मामला इसी का स्पश्ट संकेत देता है। प्रायः जिला पंचायत, विकासखण्ड प्रमुख, विधायक, सांसद के चुनावों में पानी की तरह लाखों-करोड़ों रूपया खर्च करने वाले जनप्रतिनिधी हकीकत में इन्हीं माफियाओं के सहयोग से चुनावी वैतरणी को पार करते है। ऐसे में ये लोग अपने सहयोगियों का साथ नहीं देंगे तो क्या करेंगे?प्रदेष में पूरे तंत्र में काबिज माफियाओं का दुशाहस कितना बढ गया है इसका एक छोटा सा नमुना हरिद्वार जनपद में 26 नवम्बर को देखने में मिला। जहां हरिद्वार जनपद में जलालपुर में हो रहे अवैध खनन को दबोचने गये रूडकी के वरिष्ठ अधिकारी एएसपी प्रहलाद नारायण मीणा के साथ दो जवान दीपक भट्ट व सत्यदयाल को खनन माफिया ने पहले टेक्टर-ट्राली से कुचलने का असफल नापाक कृत्य किया। जब पुलिस अधिकारी व उसका दल ने सडक की दूसरी तरफ कूद कर जान बचायी तो माफिया के इस गुर्गे ने पुलिस दल पर गोलियां चला दी। इसके बाद जांबाज पुलिस दल ने इस गुर्गे को पकड़ लिया तो , माफिया का इतना दुसाहस किया की खनन माफिया ने अपने समर्थकों के साथ मिल कर अपने इस गुर्गे को पुलिस के कब्जे से ले उठा गये। हालांकी पुलिस प्रषासन ने खनन माफिया व उसके परिजनों सहित गांव के कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया परन्तु हालत इतनी गंभीर हो गयी है कि माफियाओं को पुलिस प्रशासन को कोई खौंप नहीं रह गया है और वे बेखौफ पूरे प्रदेश में अपना समांतर राज चला रहे है। इसका मुख्य कारण यह है अवैध खनन ही नहीं शराब, भू, जल व बांध माफिया ही नहीं पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाले नौकरशाह व नेताओं के साथ साया की तरह है। प्रदेष की राजनीति का माफियाकरण उस समय उजागर हुआ जिस समय जब शराब के कारोबारी पौंटी चडड्ा व उसके भाई की गोलीबारी में हत्या की गयी और हत्या में पकडा गया प्रदेश का एक दर्जाधारी मंत्री नामधारी नामधारी। यही नहीं ऐसी खबरें भी थी कि उस हत्याकाण्ड के समय वहां उत्तराखण्ड का एक सबसे ताकतवर नौकरशाह भी वहां पर मौजूद था। जो षराब के कारोबारी के जमीन सौदों को और विस्तार देता था। इस नौकरशाह कों संरक्षण दे रहे पक्ष विपक्ष के राजनैतिक आकाओं ने न केवल नौकरशाह को बचा लिया अपितु नेताओं व नौकरशाही के षह पर फल फूल रहे माफियाओं के नापाक गठजोड़ को बेनकाब करने के लिए इस पूरे प्रकरण की जांच न करा कर पर्दा डालने का काम किया। क्योंकि अगर माफियाओं को दबाचा जाय और उनकी निष्पक्ष जांच हो तो प्रदेष के अधिकांश राजनेता ही नहीं तथाकथित समाजसेवी व पूरी नौकरशाही बेनकाब हो जायेगी। इसी लिए सभी ने मिल कर इस प्रकरण को दफन करने का ही काम किया । प्रदेश का दुर्भाग्य यह है कि जब से प्रदेश का गठन हुआ तबसे यहां पर राजनीति का बेषर्मी से अपराधीकरण हुआ। इसका बेशर्म नमुना प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के शपथ ग्रहण के दिन सत्ता में बर्चस्व के लिए भाजपा के दंबग गुट का संगीनों के संग निर्लज्ज प्रदर्शन से ही उजागर हो चूका है कि हमारे नेताओं का असली चेहरा उसी दिन बेनकाब हो गया। ऐसा नहीं ऐसा कि नामधारी को एक ही दल का संरक्षण था। यहां प्रमुख दलों के नेता नामधारी के आका के संरक्षक के लिए कुख्यात रहे। ऐसा नहीं कि अवैध खनन केवल हरिद्वार जनपद में ही हो रहा हैै अवैध खनन चाहे गोला नदी हो या अन्यत्र सभी जगह इस कार्य में अधिकांश जो माफिया लगे हैं उनका सभी दलों से करीब का संरक्षण है। कई नेताओं के क्रेसर लगाये जाने की खबरें भी समाचारों में आये दिन आती रहती।
अवैध खनन हो या अवैध शराब या जंगल माफिया हो या जल व भू माफिया प्रदेष में बिना राजनैतिक संरक्षण के कोई माफियागिरी एक पल के लिए पनप नहीं सकती है। राजनेताओं द्वारा माफियाओं को संरक्षण देने को देख कर नौकरषाही भी राजनेताओं से 100 कदम आगे बढ गयी है। इस प्रकार से माफियाओं के संरक्षणदाता या उनसे चोथ वसूल करने वाले पूरे तंत्र में आसीन है। इसीकारण इनका दुशाहस इतना बढ़ गया है।
हालत इतनी ही नहीं अब तो प्रदेश की राजनीति का बेशर्मी से अपराधीकरण होने के कारण शासन व प्रशासन की एक प्रकार से बागडोर माफिया समर्थकों के हाथों में आ गयी है। कई नेताओ, नौकरशाहों के संरक्षण में ही नहीं अपितु अब ऐसे कुख्यात लोग सीधे चुनाव या नेताओं को अपना मोहरा बना कर पूरे तंत्र पर अपना शिकंजा कसे हुए है। जब आम जनता देखती है कि उनके क्षेत्र का दागदार आदमी राजनीति व समाज में सम्मानजनक स्थानों पर आसीन है तो अन्य अपराधियों का भी हौसला बढ जाता है और लोग जल्द ही सत्ता, सम्मान व दौलत अर्जित करने के लिए अपराध की दुनिया में बेझिझक उतर जाते है। देखा यह भी जाता है कि सत्ताधारी हो या विपक्ष या शासन प्रषासन सभी समाजसेवियों के बजाय दागदार थैलीशाहों को ही गले लगाते है। हालत इतनी शर्मनाक हो गयी कि मुजफरगनर काण्ड के दागदार लोगों को संरक्षण देने वाले आस्तीन के सांपों को उत्तराखण्ड के सभी दलों ने बेशर्मी से न केवल संरक्षण दिया अपितु उन्हें संवैधानिक पदों पर भी आसीन किया। परन्तु किसी ने इस पर चूं तक नहीं की। क्योंकि सबको प्रदेष का नहीं अपितु अपने अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति जो करनी है। जब तक राजनीति व नौकरशाही से ऐसे आस्तीन के सांपों को दूर नहीं किया जायेगा तब तक प्रदेश में अपराधों पर अंकुश लगाने की कल्पना करना भी बेईमानी ही होगी। प्रदेश के अब तक के अधिकांश मुख्यमंत्रियों के आस पास की लोगों की निष्पक्ष जांच की जाय तो इनसे इनके संबध खुद बयान करेंगे।
by देवसिंह रावत 

बलात्कार_की_सजा?

बलात्कार_की_सजा?


बलात्कार’ शब्द का अर्थ केवल किसी की इच्छा के विरु( उससे जबरन यौन संबंध स्थापित करना ही नहीं, बल्कि इसका अर्थ है अपनी मनमर्जी के अनुसार बलपूर्वक कोई भी कार्य करना। इस आलोक में देखा जाए तो क्या मीडिया बलात्कार नहीं कर रहा? कहां गए उसके इथिक्स? कहां गए समाज और राष्ट्र हित? कहां गई समानता? खबर-खबर में भेद है। आदमी-आदमी में भेद है। मरने और बलात्कार की खबरों में भेद। मर कौन रहा है और बलात्कार कौन कर रहा है, खबरें इस बुनियाद पर टिकाई जाती हैं। यह तो देश की वर्तमान सत्यता है। यहां अन्य देशों के बारे में संदर्भ दिया जा रहा है इसको पढने के बाद इस बारे में आप ही सोचिए
1) कुवैत - सात दिनो के अंदर मौत की सजा दे
दी जाती है.
2) ईरान - 24 घंटे के अंदर पत्थरो से मार कर
या फांसी लगा कर मार दिया जाता है.
3) अफ़गिनिस्तान - 4 दिनो भीतर सर मे
गोली मार दिया जाता है.
4) चीन - No Trial, मेडिकल जांच मे प्रमाणित
होने के बाद मृत्यु दंड
5) मलेसिया - मृत्यु दंड Death Penalty
6) मंगोलिया - परिवार द्वारा बदले स्वरुप मृत्यु Death as
revenge by family
7) इराक - पत्थरो से मार कर हत्या .Death by stone
till last breath
8) कतर - हाथ,पैर,यौनांग काट कर पत्थर मार कर हत्या
9) पोलेंड - सुवरो से कटवा कर मौत Death thrown to
Pigs
10) दक्षिण अफ्रीका : 20 साल
की जेल हो सकती है।
11) अमेरिका : पीड़िता की उम्र और
क्रूरता को देखकर उम्रकैद या 30 साल
की सजा दी जाती है।
12) सऊदी अरब : फांसी पर टांगने
या उसके यौनांगों को काटने की सजा
13) रूस :- यहां पीड़िता की उम्र
को ही देखकर दोषी को 20 साल
की कठोर सजा देने का प्रावधान है।
14) नीदरलैंड- : नीदरलैंड के कानून
में यौन अपराधों के लिए अलग-अलग सजा बताई गई है।
15) :- INDIA - प्रदर्शन,धरना, जांच आयोग,समझौता,रिस्वत,लडकी की आलोचना,मिडिया ट्रायल,राजनीतिकरन
जातिकरन,जमनात,सालो बाद चार्जशिट,सालो तक मुकदमा,अपमान एवं जलालत,और अंत मे दोषी का बच निकलना.

बुधवार, 26 नवंबर 2014

‘एजुकेशन स्टेट’ का गोरखधंधा

मानकों को ताक पर रख कर संचालित हो रहे हैं राजधानी में कई इंस्टीट्यूट
‘एजुकेशन स्टेट’ का गोरखधंधा

मानकों की अनदेखी

कालेज के नाम पर खेला जाता है खेल, नाम कालेज और चल रही है कोचिंग
एमडीडी के मानकों का नहीं किया जाता पालन, कोई नहीं पूछनहार
एनआईसीटी की गाईड लाइन का नहीं किया जाता है कभी भी पालन
बच्चों को दिए जा रहे प्रमाण पत्र भी होते हैं फर्जी और नाम दिया जाता है डिप्लोमा
कालेज में क्षमता से अधिक बच्चों को दिया जाता है एडमिशन, जगह की रहती है कमी
एडमिशन के नाम पर ली जाती है मोटी फीस, उसका नहीं रहता कहीं हिसाब
कालेज के नाम पर जो नक्शा पास किया जाता है उस पर बन रही आवासीय इमारत
संचालित हो रहे कोर्स के नाम पर भी किया जा रहा है युवाओं के साथ धोखा
उत्तराखंड राज्य में एजुकेशन स्टेट बनाने के नाम पर प्रदेश के नौकरशाहों और नेताओं ने गोरखधंधा शुरू किया और राज्य बनने से लेकर आज दिन तक चल रहा है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान राज्य के युवाओं का हो रहा है। युवा कालेजों की चकाचैंध में यह भूल जाते हैं कि वह कालेज मानकों पर चल रहा है या फिर बिना मानक के। यही नहीं अपने बच्चों को बिना मानकों के चल रहे कालेजों में भर्ती करने से पहले अभिभावक भी इस बात पर कोई चर्चा नहीं करते हैं कि कालेज मानकों को पूरा करता है या नहीं? वह सिर्फ देखा-देखी और अपने को अपनों के सामने दिखावा करने के चक्कर में रहते हैं और अपने बच्चे के भविष्य के साथ खुद खिलवाड़ करते हैं। प्रदेश के नौकरशाह और नेताओं का तो कालेज चलाने वालो के साथ गठजोड़ है और उसमें वह चाॅदी काट रहे हैं तो वह क्यों कुछ करेंगे। इसी पर केंद्रित स्टोरी...।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कुकुरमुत्तों की तरह खुले इंस्ट्यूट राज्य के युवाओं के भविष्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ कर रहे हैं और प्रदेश की सरकार इन्हें संरक्षण दे रही हैं। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार क्यों इनसे मानक पूरा नहीं करने के लिए कहती है। वह ऐसा इसलिए नहीं कहती है क्योंकि दून में जितने भी शिक्षा की प्राईवेट दुकाने खुली हैं सभी का संबंध सीधे नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी राजनेता से है और वह नहीं चाहते कि बात उन पर आये।
बात की जा रही है उत्तराखंड की राजधानी में खुले इंस्ट्यूटों की। राजधानी में सब चलता  है इस बात की सत्यता कई बार सामने आ गई है। यहां बात करेंगे, राजधानी के नदां की चैकी इलाके में बने एल्पाइन ग्रुप आफ इस्टट्युट की। यह इंस्टयूट तो दून का नामी गिरामी है, लेकिन इसकी बुनियाद तो झूठ के बलबूते रखी गई है और यहां प्रदेश के युवाओं के साथ छलावा किया जा रहा है। इस बात की जानकारी शासन-प्रशासन को भी है, लेकिन कोई भी इस पर कार्यवाहीं नहीं कर पा रहा है। इसके पीछे पहुंच मानी जा रही है। यहां के मानकों पर अगर नजर दौढ़ाए तो यहां शुरूआत में तो सबकुछ सामान्य लगेेगा। लेकिन यहां से जुडे़ सभी दस्तावेज बिना मानकों के हैं और यह दुकान खुलेआम बिना मानकों के चल रही है। इस्टीट्यूट में एक नहीं कई अनियमियता हैं। इसके बाद भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया और न ही किसी ने यहां हो रहे युवाओं के साथ खिलवाड़ पर नजर दौढ़ाई। यह पूरा कालेज तो अनियमितताओं की बुनियाद पर खड़ा किया गया हैं। एल्पाइन इस्टीटयुट के कर्ताभर्ता अनिल सैनी ने मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण से उक्त जमीन पर छात्रावास और कार्यालय के लिए इजाजत ली, लेकिन उन्होंने वहा पुरा कालेज ही खड़ा कर दिया। इस कालेज के लिए स्वीकृत नक्शे में मानकों को दरकिनार करते हुए अपनी मनमर्जी से कार्यालय और छात्रावास के नाम पर कालेज खड़ा कर खुलेआम चुनौति दे डाली। इस चुनौति के बाद देहरादून-मसूरी विकास प्राधिकरण और प्रदेश की सरकार शायद डर गई और चुपचाप बैठ गई। अकेले नक्शे की बात करें तो यहां जाने के बाद स्पष्ट दिखती है कि गैर कानूनी तरीके से यहां सभी निर्माण किए गए हैं। कालेज का भवन और यहां के लिए आवश्यक चीजों को दरकिनार करते हुए अपनी मर्जी से बनाया गया है। कालेज के लिए बनी प्रयोगशाला में कैंटीन चल रही है। इस बात के बाद सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अन्य निर्माण में क्या किया होगा स्पष्ट हो जाएगा। राष्टीय राजमार्ग संख्या 75 एकड भूमि और होटल मैनेजमैट के 01 एकड जमीन की जरूरत मानकों के आधार पर है पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां का पूरा मामला ही गोलमाल का है। जिस जमीन पर कालेज खड़ा किया गया है वह मात्र 1.18 एकड में बना हुआ है।
सिर्फ यही नहीं कालेज से डिप्लोमा या डिग्री ले रहे युवाओं को भी जानवरों की तरह ठूस कर पढाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही हैं। एल्पाइन इस्टीट्यूट के संथापक अनिल सैनी न केवल एआईसीटीई के नियमों का उल्लंघन कर कालेज चला रहें हैं। बल्कि मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के नियमों को भी तार-तार कर रहे हैं। शिक्षा के नाम पर चल रहे सैनी के इस खेल में एआईसीटीई के अधिकारी और एमडीडीए के कर्मचारियों की सदिन्ध भूमिका से इकार नहीं किया जा सकता। यह सब तो जो दिख रहा है वह है। इससे अलग बात यहां प्रवेश के लिए युवाओं को जो लूटा जाता है उसका जिक्र तो कोई नहीं करता। क्योंकि सभी अपने भविष्य को लेकर डरते हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि जिस कालेज में वह पढ़ रहे हैं वहां तो खुलेआम गोरखधंधा चल रहा है। वहीं पूरे मामले में कालेज के संचालक अनिल सैनी का कहना है कि कालेज में पाठ्यक्रमों की स्वीकृति नहीं मिली है। उनकी कालेज में कोचिंग दी जाती है और यह प्रवेश के समय स्पष्ट कर दिया जाता है। उसकी की फीस ली जाती है। इसमें कुछ भी फर्जीवाड़ा नहीं किया जाता है।

शनिवार, 22 नवंबर 2014

udaydinmaan: क्रौंच पर्वत पर तपस्यारत है 33 करोड देवी देवता

udaydinmaan: क्रौंच पर्वत पर तपस्यारत है 33 करोड देवी देवता: 33करोड़ देवी-देवता क्रौंच पर्वत पर आकर पाषण रूप में  है तपस्यारत  कार्तिक स्वामी हैं 360 गांवों के कुल ईष्ट लक्ष्मण सिंह नेगी(udaydi...

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

क्रौंच पर्वत पर तपस्यारत है 33 करोड देवी देवता


33करोड़ देवी-देवता क्रौंच पर्वत पर आकर पाषण रूप में  है तपस्यारत कार्तिक स्वामी हैं 360 गांवों के कुल ईष्ट

लक्ष्मण सिंह नेगी(udaydinmaan)
ऊखीमठ-चमोली जिले के विकासखण्ड़ पोखरी में आयोजित 9वें खादी पर्यटन औघोगिक किसान विकास मेले में प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने क्रौच पर्वत पर विराजमान भगवान कार्तिक स्वामी मंदिर को पर्यटन के मानचित्र पर लाने की घोषणा करते हुए सीएम ने कहा कि इस दिशा में भी भरसक प्रयास किये जाएंगे। इससे पर्यटकों का रूख कार्तिक स्वामी की ओर बढे़गा। जिससे क्षेत्र की आर्थिकी सुदृढ होने के साथ-साथ अन्य तीर्थ व पर्यटक स्थलों का समुचित विकास होने के अलावा स्थानीय बेरोजगारो को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होंगे आठ हजार पांच सौ तीस फीट की ऊंचाई व पट्टी तल्लानागपुर, दशज्यूला, चन्द्रशिला, तल्ला कालीफाट के शीर्ष पर विराजमान भगवान कार्तिक स्वामी 360 गांवों के कुल ईष्ट एवं भूम्याल देवता के रूप में पूजे जाते है।
 इस तीर्थ में प्रतिवर्ष जून माह में महायज्ञ व पुराण वाचन होता है, साथ ही बैकुंठ चतुर्दशी व कार्तिक पुर्णिमां को यहां लगने वाले मेले में सैकड़ों श्र(ालु पहुंचकर पुण्य अर्जित करते हंै। शिवपुराण के केदारखण्ड के कुमार अध्याय में वर्णित है कि जब शिव-पार्वती ने गणेश को प्रथम स्थान दिया था तो भगवान कार्तिकेय माता-पिता से रूष्ट हो गये और अपने शरीर का खून पिता व मांस माता को सौंपकर निर्वाण रूप लेकर क्रौंच पर्वत पर तपस्या में लीन हो गए थे। कई वर्ष व्यतीत होने के बाद पुत्र विरह में पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय से मिलने की बात कहीं। पार्वती को साथ लेकर भगवान शिव कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी को कार्तिकेय से मिलने क्रौंच पर्वत पहुंचे, जब कार्तिक स्वामी ने माता-पिता को क्रौच तीर्थ में आते हुए देखा तो वे हिमालय की ओर कार्तिक स्वामी मंदिर से चार कोस आगे अग्रसर हो गए। पुराणों में वर्णित है कि जब भगवान कार्तिकेय माता-पिता से रूष्ट होकर क्रौच पर्वत आए तो देवताओं के सेनापति होने कारण 33करोड़ देवी-देवता भी क्रौंच पर्वत पर आकर पाषण रूप में तपस्यारत हो गए। क्रौच पर्वत पर 33 करोड़ देवी-देवताओं ने शिव पार्वती की रात भर पूजा-अर्चना की थी।
 कार्तिक पूर्णिमां के पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश के लिए रवाना हुए। उनके कैलाश रवाना होने के बाद भगवान कार्तिकय अपने तीर्थ पर पुनः तपस्यारत हो गए, तब से लेकर वर्तमान समय तक स्थानीय श्र(ालु बैकुंठ चतुर्दशी व कार्तिक पूर्णिमां के दिन दो दिवसीय मेले का आयोजन करते हैं। तीर्थटन व पर्यटन की अपार संभावाओं को अपने आंचल में समेटे कार्तिक स्वामी तीर्थ के दिन निकट भविष्य में बहुर सकते है। इस तीर्थ को पर्यटन मानचित्र पर लाने की कवायद की जा रही है। यदि ऐसा हुआ तो यहां पर्यटन को गति मिलेगी। स्थानीय व्यावसायियों का मानना है कि इस तीर्थ के विकसित होने से क्षेत्र के अन्य तीर्थ एवं पर्यटन स्थालों का समुचित विकास होने के साथ क्षेत्र की आर्थिकी मजबूत होगी और स्थानीय बेरोजगारों को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होगें कार्तिक स्वामी तीर्थ में सबसे पहले 1942 में महायज्ञ व पुराण वाचन का आयोजन किया गया जो कि हर तीसरे वर्ष आयोजित होता था। 1996 में क्षेत्रीय जनता द्वारा मंदिर समिति का गठन कर जून माह में प्रतिवर्ष महायज्ञ व पुराण वाचन का आयोजन किया जाता है। क्रौच पर्वत से निकलने वाली नीलगंगा में 360 कुंड माने जाते हैं। कहा गया है कि जो भी श्र(ालु इन 360 कंुडों का दर्शन करता हैं, उसके जन्म-जन्मांतरों से लेकर कल्प-कल्पांतरों के पापों का हरण होता है। लोक मान्यता है कि कार्तिक स्वामी देवताओं के सेनापति होने के कारण कार्तिक स्वामी निर्वाण रुप लेकर क्रौंच पर्वत पर तपस्यारत हुए तो 33 करोड़ देवी-देवता क्रौच पहुंचे और पाषण रुप में तपस्यारत हो गये, इसलिए क्रौच के हर पत्थर को किसी न किसी आकृति में देखा जा सकता है। यहां से चैखम्बा का विहंगम दृश्य, अखंख्य पर्वत श्रंृखलाएं एवं हिमालय की श्वेत चादर, अलकनंदा-मंदाकिनी नदियों को एक साथ देखा  जा सकता है। स्थानीय जनता का कहना है। कि कार्तिक स्वामी तीर्थ के पर्यटन मानचित्र पर आते ही तल्लानागपुर, दशज्यूला, चन्द्रशिला व तल्ला कालीफाट के पर्यटक एंव तीर्थ स्थलों का भी सर्वांगीण विकास होगा।
udaydinmaan@gmail.com

‘मूल स्वरूप’ से भटका ‘गौचर मेला’

 ‘मूल स्वरूप’ से भटका ‘गौचर मेला’न हुआ उद्योगों का विकास न स्थानीय को मिला विकास योजनाओं का फायदासंस्कृति को छोड़ आधुनिकता की चकाचैंध के रंग में रंगा पौराणिक मेलाहिमालयी क्षेत्र का सबसे पुराना मेला आज हो गया है उपेक्षित


नंदन सिंह विष्ट
हिमालयी क्षेत्र का सबसे पुराना मेला आज अपने स्वरूप को खोने के साथ आधुनिकता के रंग में रंग गया है। इससे जहां हमारी संस्कृति पर विलुप्ति का साया पड़ा है, वहीं आधुनिकता की चकाचैंध ने इसे अब मात्र खानापूर्ति और सरकारी धन के दुरूपयोग के लिए एक संसाधन बनाकर रख दिया है। राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक की सरकारों ने इस दिशा में सकारात्मक सोचने के वजाय राज्य के धन को ठिकाने लगाने के लिए मात्र इस मेले के प्रति अपनी भूमिका दिखाकर इतिश्री करने में लगे हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि पर्वतीय ग्रामीण जीवन में मेलों का विशेष महत्व है। वैसे तो मेलों के पीछे कोई न कोई धार्मिक कारण निहित रहा हैै किन्तु उत्तराखंड का प्रस़ि गौचर मेला सबसे हटकर पर्वतीय क्षेत्र की आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है।
प्रतिवर्ष 14 नवंबर से 20 नवंबर तक जनपद चमोली के गौचर कस्बे में आयोजित होने वाला यह मेला वर्ष 1943 में शुरू हुआ था। वर्ष 1952 में चीन द्वारा तिब्बत का अधिग्रहण किये जाने के पहले तक भारत व तिब्बत के बीच व्यापार चलता था। भारत को तिब्बत से जोडने वाले प्रमुख दर्रा क्षेत्रों में कुमाऊ में जुहार दारमा व्यास चैदास तथा गढ़वाल में नीति माणा स्थित है। बुजुर्ग भोटिया व्यापारियों से पता चलता है कि इन दर्रा क्षेत्रों से तिब्बत की दांपा दोंफूू ज्ञानिम थोलिग मठ नाबरा व गारतोक आदि व्यापारिक मंडियों में पहुंचाया जाता था। तिब्बती मंडियों में भारतीय सामान के बदले ऊन ऊनी वस्त नमक कीमती पत्थर आभूषण शिलाजीत जडी बूटिया आदि यहां आती थ्ज्ञभ्। कुमायूं क्षेत्र के भोटिया व्यापारियों द्वारा अपने माल को बेचने के लिये कुमायूं के विभिन्न स्थानों पर मेलों का आयोजन किया जाता था। इसी बात को मद्देनजर रखते हुये गढवाल के भोटिया व्यापारियों के मन में भी इसी प्रकार का एक मेला आयोजित करने का विचार आया। भोटिया समाज के जागरूक नागरिक बाला सिंह पाल व पान सिंह बंपाल ने पत्रकार गोविन्द प्रसाद नौैटियाल के सहयोग से तत्कालीन गढवाल जिले के डिप्टी कमीश्नर आर0वी0वर्नीड से भेंटकर गौचर के विस्तृत मैदान में शुरू करने की अुनमति प्राप्त की।
द्वितीय विश्व यु़द्व के दौैरान मेला आयोजित करने की अनुमति देने के पीछे डिप्टी कमीश्नर आर0वी0वर्नीड की यह रणनीति भी थी कि इसी बहाने गढवाल युवकों को सेना में शामिल करने के लिये उन्हें एक उपयुक्त स्थान मिल जायेगा। तभी से गौचर मेले में भर्ती का आयोजन भी किया जाता है। शुरू में गौचर मेला भोटिया व्यापारियों द्वाराआयोजित किया जाता रहा है। उनके द्वारा तिब्बत से लाये गये माल से ही दुकानें सजी रहती थी। बाद में अंतराष्र्टीय घटनाक्रमों में परिवर्तन के फलस्वरूप मेले के स्वरूप में भी अंतर आया है। चीन द्वारा तिब्बत का अधिग्रहण किये जाने से तिब्बती व्यापार बंद हो गया। इससे भोटिया व्यापारी गौचर मेले में हटाये गये और उनका स्थान बाहरी व्यापारियों ने ले लिया। मूलतः व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये शुरू हुये मेले कोे प्रारंभ में भोटिया मेला हा जाता था। स्वतंत्रता के पश्चात इसके नाम में परिवर्तन कर इससे आद्वोगिक एवं विकास मेला कहा गया। यह अलग बात है कि आोगिक दृष्टि से चमोली जिला आज भी शून्य है और रिंगाल ऊन शिल्प व अन्य हस्त शिल्प भी इस मेले में नहीं दिखाई पडती है। जिससे यह कहा जा सके कि मेले के आयोजन से आोगिकता को किसी प्रकार का बढावा मिल रहा है।
हालांकि उत्तराखंड राज्य गठन के बाद मेले को वृहद स्वरूप देेने के लिये शासन-प्रशासन के स्तर पर प्रयास तो किये गये, लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि जिन उद्देश्यों को देखते हुये इस मेले का आयोजन किया जाता है उसकी तनिक पूर्ति भी दूर- दूर तक नजर नहीं आ रही है। हालांकि आज मेले में रंगत देखने को मिलती है, लेकिन वह सब कुछ कहीं भी नजर नहीं आता है जिसके लिए इस मेले का आयोजन प्राचीनकाल से किया जाता था। आज मेले में आधुनिकता की चकाचैंध के सिवाय और कुछ दिखता ही नहीं है।
by-udaydinmaan

रविवार, 16 नवंबर 2014

यात्रियों को लुभाते बुग्याल

यात्रियों को लुभाते बुग्याल 


उत्तराखंड आस्था, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य का मिला जुला संगम है। जून 2013 की जलप्रलय के बाद से उत्तराखंड के पर्यटन और तीर्थाटन पर बुरा असर पड़ा है। इसमें चार धामों की यात्रा पर संकट खड़ा हो गया था, लेकिन आगामी वर्ष में बदरीनाथ यात्रा बेहतर चलने के संकेत मिलने लगे हैं। राज्य में सरकार ने खस्ता हाल मार्गों की मरमत पर ध्यान दिया तो अगले साल से उत्तराखंड का पर्यटन-तीर्थाटन पटरी पर दौड़ने लगेगा। आगामी वर्ष में धाम में दर्शनों के बाद रहने के लिए तीर्थयात्रियों की ओर से यहां होटल और लाज मालिकों को एडवांस बुकिंग मिलने लगी हैं। बताया जा रहा है कि अभी तक धाम के होटल, लाज व्यवसायियों को करीब दस हजार तीर्थयात्रियों के ठहरने और खाने की बुकिंग मिल गई हैं। बदरीनाथ में मई २१५ माह में कपाट खुलने के तुरंत बाद दो श्रीमद्देवी भागवत और यज्ञ भी प्रस्तावित हैं। बदरीनाथ में होटल व्यवसायी डा. जमुना प्रसाद रैवानी का कहना है कि आगामी वर्ष की तीर्थयात्रा के लिए दिल्ली के करीब तीन हजार तीर्थयात्रियों के बदरीनाथ धाम आने की बुकिंग मिली हैं। इस वर्ष कुछ तीर्थयात्री बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा पर आए थे, जो होटल में बुकिंग करके चले गए हैं। धाम में जैन धर्मशाला, सरोवर पोर्टिको, स्नो क्रेस्ट, नारायण पैलेस, बदरी बिला और शंकर श्री में तीर्थयात्रियों ने मई से जून माह तक की बुकिंग कराई हैं। बदरीनाथ में होटल व्यवसायी शंकर श्री, अमित त्रिपाठी और सरोवर पोर्टिको के मैनेजर हरि बल्लभ सकलानी का कहना है कि एडवांस बुकिंग मिलने से आगामी वर्ष की तीर्थयात्रा बेहतर चलने की उम्मीद जगी है। कोलकाता के श्र(ालु मनोज सराफ ने बदरीनाथ धाम की आगामी दस साल तक की अभिषेक पूजा और केदारनाथ में रुद्राभिषेक पूजा के लिए एडवांस बुकिंग कर ली है। इसके लिए श्र(ालु ने बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति को दस लाख रुपये नगद भुगतान भी कर दिया है। एक श्र(ालु के सोजन्य से तो आगामी दस वर्ष तक बदरीनाथ की अभिषेक और केदारनाथ की रुद्राभिषेक पूजा संपन्न कराई जाएगी। बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा के आगामी वर्ष बेहतर चलने की उम्मीद है। उम्मीद है कि यात्रा शुरू होने से पहले बदरीनाथ हाईवे भी चाक-चैबंद हो जाएगा। धाम में पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को पूरी सुविधाएं दी जा रही हैं। केदारनाथ धाम की तीर्थयात्रा भी आगामी वर्ष पटरी पर लौट जाएगी।
चलिए अब बात करते हैं उत्तराखंड के चारधामों की। केदारनाथ धाम, जहां स्वयं भगवान शिव स्वयं पंच केदार के रूप में बिराजते हैं। मई माह से ही इन चार धाम यात्रा की शुरुआत हो जाती है। उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जनपद में भगवान केदारनाथ जी का पावन मंदिर स्थित है, जो जनआस्था के साथ ही प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य आस्था और भक्ति के संगम के रूप में सदियों से जाना जाता है। यहां पहुंचने के लिए पर्यटकों एवं तीर्थ यात्रियों को दुर्गम पहाड़ियों सर्पनुमा सड़कों एवं जंगली मार्गों से होकर गुजरना होता है। इसके बाद यात्रियों को 14 किलोमीटर की यात्रा पगडंडियों से गुजर कर धाम तक पहुंचना होता है। धाम मार्ग में जाते समय यात्रियों को पहाड़ों से उतरती मंदाकिनी नदी के दूध सदृश्य जल का अद्भुत दर्शन होता है। मंदाकिनी नदी चैराबारी स्थित हिमनद के कुंड से निकलती है। केदारनाथ धाम की ऊंचाई समुद्र तल से 3562 मीटर है। इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में कत्थूरी शैली में किया गया है, जिसका जीर्णेा(ार आद्यगुरू जगत गुरू शंकराचार्य जी ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में सदाशिव की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। पंच रूपों में शिव की स्थापना के कारण ही पंचकेदार की मान्यता प्राप्त है। केदारनाथ ज्योर्तिलिंग भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में एक है। इसका स्पष्ट उल्लेख महाभारत पुराण में मिलता है। पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि केदारनाथ में भगवान श्री के शिव लिंग, तुंगनाथ में बाहु, रूद्रनाथ में मुंख, श्रीमध्यमहेश्वर में नाभी एवं कल्पेश्वर में जटा की पूजा होती है। केदारनाथ धाम के प्रवेश द्वार पर नंदी जी की जीवंत मूर्ति की स्थापना की गई है। हर वर्ष 6 माह तक मई से अक्टूबर मास तक श्र(ालुओं को धाम में दर्शन-पूजन की सुविधा प्राप्त होती है। इस धाम के निकट ही पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र गांधी सरोवर एवं बासुकी ताल भी स्थित है। इस इलाके के नागनाथ, शरदोत्सव, जोशीमठ का शरदोत्सव, शिवरात्रि का मेला, गोपेश्वर नंदा देवी, नौटी, नवमी जसोली हरियाली, रूपकुंड महोत्सव, बेदनी बुग्याल, कृष्णा मेला जोशीमठ, गोचर मेला, सहित अनसूइया देवी सहित कई मेले जनता में खासे लोकप्रिय हैं।
मंदाकिनी एवं अलकनंदा नदी के मध्य रूद्रनाथ गुहा मंदिर स्थित है। यहां गुहा कि एक भित्ति बनाकर बंद कर दिया गया है, जिसके आंतरिक भाग में एक प्राचीन शिव लिंग स्थित है, जिस पर जल की बूंदे सदैव टपकती रहती हैं। कल्पेश्वर, कल्पगंगा घाटी में स्थित है, जिसके संदर्भ में केदारखंड में ऐसी मान्यता है कि यही दुर्वासा )षि ने कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। यही से कल्प गंगा नाम की नदी भी प्रवाहित होती हैं। जिसका प्राचीन नाम हिरण्यवती था। इसी के दाएं तट पर दुर्वासा भूमि है, जहां ध्यानबद्री का मंदिर स्थित है। जिसके गर्भ में स्वंयभू शिव लिंग के विराजमान होने की मान्यता है। मध्यमहेश्वर जी का धाम इन पंच
केदारों में सर्वाधिक आकर्षक है।
इस मंदिर का शिखर स्वर्णकलश से अंलकृत है। इसके पृष्ठ भाग में हर गौरी की प्रतिमा है। छोटे मंदिर में माता पार्वती जी की मूर्ति भी स्थित है। मंदिर के मध्य भाग में नाभि क्षेत्र के समान एक शिवलिंग भी स्थित है। इस शिव लिंग के संदर्भ में कहावत है कि इसके दर्शन मात्र से मानव को स्वर्ग के वास का अधिकार मिलता है। इस मध्यमहेश्वर से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर मखमली घास सहित फूलों की घाटी के साथ ही बूढ़ा मध्यमहेश्वर नाथ के साथ क्षेत्रपाल देवता के दर्शन होते हैं। इस इलाके में मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर कालीमठ के नाम से विख्यात महाकाली का भव्य मंदिर स्थित है। तुंगनाथ जी चंद्रशिला शिखर के नीचे स्वंय विराजमान हैं। तरासे प्रस्तरों से निर्मित यह मंदिर लगभग ग्यारह मीटर ऊंचा है। इसके शिखर पर 1.6 मीटर ऊंचा स्वर्ण कलश स्थित है। यहां से ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर देवरिया ताल स्थित है, जो एक मनोहारी पर्यटक स्थल के रूप में विख्यात है। इस धाम में पहुंच कर पांडवों को नाना पापों से मुक्ति मिलने की चर्चा इस धाम को पाप मुक्ति धाम के रूप में भी मान्यता दिलाता है। केदारनाथ के साथ पंचकेदार के दर्शन का फल आज भी श्र(ालुओं में मान्यता प्राप्त है। वैसे तो देव भूमि के कण-कण में भगवान के वास होने की मान्यता से हर भारतवासी सनातनी हिंदू श्र(ालु इन धामों में दर्शन के लिए खिंचा आता है। प्रकृति की मनोहरी रमणियता पर्यटकों को भी बरबस खींच लाती है, जिसके कारण उत्तराखंड को विश्व पर्यटन के मानचित्र में भी मान्यता प्राप्त है। पर्यटन राज्य होने के कारण सूबे की सरकार के साथ भारत सरकार भी यहां आने वाले पर्यटकों को अनेक सुविधाएं प्रदान करती है। उत्तराखंड की सरकार की पहल से चार धाम यात्रा के लिए हवाई यात्रा की सुविधा भी आरंभ हो चुकी है, जिससे यात्रियों की संख्या में दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है। उत्तराखंड में चारधाम के साथ यहां पंचबदरी और पंच केदार के साथ पंच प्रयाग बुग्याल और बहुत कुछ और भी है। यहां आकर तीर्थयात्री और पर्यटक बरबस इसी प्राकृतिक सौंदर्य के साथ
यहां से अपने मन कोमोहने में लगा रहताहै।देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महात्म्य है, उतना ही पंच बदरी का भी। असल में ये मंदिर भी बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं। हालांकि, इनमें कुछ स्थल सालभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, लेकिन बाकी में चारधाम सरीखी ही कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा है।
पांच केदारश्री केदारनाथ धाम-गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर अवस्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। कहते हैं कि समुद्रतल से 11746 फीट की ऊंचाई पर केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग ;भागद्ध है। मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है।
तुंगनाथ-तृतीय केदार के रूप में प्रसि( तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्रतल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां भगवान शिव की भुजा के रूप में पूजा-अर्चना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है।  तुंगनाथ मंदिर के विषय में एक प्राचीन पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा महाभारत के मुख्य पात्रों से संबन्धित है।
 कथा के अनुसार जब पांच पांडवों पर अपने परिवार के भाईयों की हत्या का आरोप लगा, तो अपने भाईयों की हत्या करने का उन्होंने जो पाप किया था, उस पाप के श्राप के रुप में उन्हें बैल का रुप दे दिया गया। पांडवों ने इन स्थानों में प्रत्येक मंदिर में पांच केदार का निर्माण किया गया। इस दुनिया में तुंगनाथ मंदिर को चोटियों का स्वामी कहा जाता है।  इस मंदिर के विषय से जुड़ी एक मान्यता प्रसि( है कि यहां पर शिव के हृदय और बाहों की पूजा होती है। इस मंदिर की पूजा का दायित्व यहीं के एक स्थानीय व्यक्ति को दिया गया है। समुद्रतल से इस मंदिर की ऊंचाई 12000 फीट से अधिक है। इसी कारण इस मंदिर के सामने पहाड़ों पर बर्फ जमी रहती है। अन्य चार धामों की तुलना में यहां पर श्र(ालुओं की भीड़ कुछ कम होती है. परन्तु फिर भी यहां अपनी मन्नतें पूरी होने की ख्वाहिश में आने वालों की संख्या कुछ कम नहीं है। इस मंदिर में तीर्थयात्री हजारों की संख्या में प्रत्येक वर्ष पहुंचते है। इस स्थान से एक अन्य कथा जुड़ी हुई है, कि भगवान राम से रावण का वध करने के बद ब्रह्माहत्या शाप से मुक्ति पाने के लिये उन्होंन यहां पर शिव की तपस्या की थी। तभी से इस स्थान का नाम चंद्रशिला भी प्रसि( है. यहां से बद्रीनाथ, नीलकंठ, पंचचूली, सप्तचूली, बंदरपूंछ, हाथी पर्वत, गंगोत्री व यमनोत्री के दर्शन भी होते है। पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के यु( में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंर्तध्यान हो कर केदार में जा बसे।  इस पर भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंर्तध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंर्तध्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
रुद्रनाथ-यह मंदिर समुद्रतल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा होती है। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है। लेकिन, बेहद दुर्गम होने के कारण श्र(ालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए वे गोपेश्वर के निकट सगर गांव होकर ही यहां जाना पसंद करते हैं।
मद्महेश्वर-चैखंभा शिखर की तलहटी में 3289 मीटर की ऊंचाई स्थित मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए मानी जाती हैं।
कल्पेश्वर-यहां भगवान शिव की जटा पूजी जाती हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा )षि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसि( हुआ। श्र(ालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 किमी की पैदल दूरी तय कर उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुंचते हैं। गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर है।
पांच बदरी
श्री बदरी नारायण-समुद्रतल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है भूबैकुंठ बदरीनाथ धाम। माना जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था। वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण भगवान बदरीविशाल की पूजा करते हैं।
आदि बदरी-कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर अवस्थित है। यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर समूह के सम्मुख एक जलधारा, जो उत्तर वाहिनी गंगा के नाम से प्रसि( है, प्रवाहित होती है। माना जाता है कि यह तीर्थ स्थल गुप्तकाल में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया।
वृ(बदरी- बदरीनाथ से आठ किमी पूर्व 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा के सुरम्य धारों में स्थित है वृ( बदरी धाम। इस मंदिर की खासियत इसका सालभर खुले रहना है। इसे पांचवां बदरी कहा गया है।
योग-ध्यान बदरी-जोशीमठ से 20 किमी दूर 1920 मीटर की ऊंचाई दूर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित हैं तृतीय योग-ध्यान बदरी। पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं।
भविष्य बदरी- समुद्रतल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से चार किमी पैदल मार्ग पर स्थित हैं भविष्य बदरी। कहते हैं कि अगस्त्य )षि ने यहां तपस्या की थी। लेकिन, विकट चढ़ाई के कारण शारीरिक रूप से फिट यात्री ही यहां पहुंच पाते हैं।
पंच प्रयाग
नदियों के संगम को पंच प्रयाग कहा जाता हैं। उत्तराखंड के प्रसि( पंच प्रयाग देवप्रयाग रुद्रप्रयाग कर्णप्रयाग नन्दप्रयाग तथा विष्णुप्रयाग मुख्य नदियों के संगम पर स्थित हैं ।
देवप्रयाग-अलकनंदा तथा भगीरथी नदियों के संगम पर देवप्रयाग नामक स्थान स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है । यह समुद्र सतह से १५00 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । देवप्रयाग की )षिकेश से सडक मार्ग दूरी ७0 किमी है । गढवाल क्षेत्र मे भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर है, जो की यहां के मुख्य आकर्षण हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। देवप्रयाग में कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है ।
रुद्रप्रयाग-मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है । संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर दर्शनीय है। रुद्रप्रयाग )षिकेश से १३९ किमी की दूरी पर स्थित है । यह नगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है। यह माना जाता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये रुद्रनाथ महादेव की अराधना की थी।
कर्णप्रयाग-अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है । पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्णप्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है।
नन्दप्रयाग-नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है। यह सागर तल से २८0५ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर गोपाल जी का मंदिर दर्शनीय है।
विष्णुप्रयाग-धौली गंगा तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर विष्णुप्रयाग स्थित है। संगम पर भगवान विष्णु जी प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड दर्शनीय हैं। यह सागर तल से १३७२ मी.की ऊंचाई पर स्थित है।
प्रमख नदियां- गंगा, यमुना, काली, रामगंगा, भागीरथी, अलकनन्दा, कोसी, गोमती, टौंस, मंदाकिनी, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार पिंडर नयार आदि प्रमुख नदियां हैं।
प्रमुख हिमशिखर- नंदा देवी ;7817द्ध,कामेत ;7756द्ध,गंगोत्री ;6614द्ध,माणा ;7273द्ध,चैखंवा ;7138द्ध, त्रिशूल ;7120द्ध, द्रोणगिरि ;7066द्ध,पंचाचूली ;6905द्ध, नंदा कोट ;6861द्ध, केदारनाथ ;6490द्ध, बंदरपूछ ;6315द्ध,नीलकंठ ;5696द्ध, गोरी पर्वत ;6250द्ध, हाथी पर्वत ;6727द्ध, नंदा धुंटी ;6309द्ध, देव वन ;6853द्ध, मृगथनी ;6855द्ध, गुनी ;6179द्ध, यूंगटागट ;6945द्ध।
प्रमुख ग्लेशियर-1. गंगोत्री 2. यमुनोत्री 3. पिण्डर 4. खतलिगं 5. मिलम 6. जौलिंकांग, 7. सुन्दर ढूंगा इत्यादि।
प्रमुख झीलें ;तालद्ध- गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नंदीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल ;कुंमाऊँ क्षेत्रद्ध इत्यादि।
प्रमुख दर्रे- बरास- 5365मी.,;उत्तरकाशीद्ध, माणा- 6608मी. ;चमोलीद्ध, नोती-5300मी. ;चमोलीद्ध, बोल्छाधुरा-5353मी.,;पिथौरागड़द्ध, कुरंगी-वुरंगी-5564 मी.; पिथौरागड़द्ध, लोवेपुरा-5564मी. ;पिथौरागड़द्ध, लमप्याधुरा-5553 मी. ;पिथौरागड़द्ध, लिपुलेश-5129 मी.;पिथौरागड़द्ध, उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा।
वन अभ्यारण्य- 1. गोविन्द वन जीव विहार 2. केदारनाथ वन्य जीव विहार 3. अस्कोट जीव विहार 4. सोना नदी वन्य जीव विहार 5. विनसर वन्य जीव विहार।
बीना बेंजवाल
हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं पर छितराए तीर्थ स्थलों की यात्रा से पैदा थकान छूमंतर करने की क्षमता यहाँ फैले प्राकृतिक मनोरम दृदृश्यों में खूब है। फिर भी यदि आप तीर्थयात्रा को प्रकृति की यात्रा से भी जोड़ना चाहते हैं तो हिमालय पर स्थित विभिन्न बुग्यालों की यात्रा जरूर करें बल्कि वहाँ ठहरें। हिमालय पर स्थित सर्वाधिक सुंदर स्थलों में से एक इन बुग्यालों पर बिताए हर लम्हे आप जीवन भर याद करेंगे। चारधाम की यात्रा पर निकले हजारों तीर्थयात्री इन बुग्यालों की ओर रुख कर रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि कभी यहाँ देवताओं का वास था। पुराणों में वर्णित अनेक कथाओं में यहाँ रहने या कुछ पल बिताने या इस भूमि को किसी अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की यात्रा के दौरान अपना मार्ग बनाने के जिक्र आए हैं।
आखिर ऐसा क्यों न हो? दुर्लभ वनस्पतियों और जंतुओं के इस क्षेत्र की ओर आज भी हजारो सैलानी खिंचे चले आते हैं। उनमें क्या देखें, क्या छोड़े की उत्कट दुविधा रहती है। माजातोली और छिपलाकोट बुग्याल तो दुर्लभ वनस्पतियों के भंडार ही माने गए हैं। लगभग 5000 मीटर की ऊँचाई पर सामान्य वनस्पतियाँ समाप्त होने लगती हैं इसे वृक्षरेखा कह लें। वहीं लगभग 5400-5600 मीटर की ऊँचाई से हिमपात होना शुरू होने लगता है इसे हिमरेखा कह सकते हैं। इसी वृक्षरेखा और हिमरेखा के बीच के भूभाग में वनस्पतियों की अनेकानेक दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से कई रामबाण औषधियाँ भी हैं। नवंबर से मई तक बर्फ से ढके रहने वाले इन बुग्यालों में विपरीत परिस्थितियों में जीवित रहने वाले पौधे अपनी जीवटता का वरदान मनुष्य को भी औषधि के रूप में देते हैं। ये वनस्पतियाँ बर्फ आच्छादित समय में अपनी जड़ों में अपनी ऊर्जा संचित करके रखती हैं। उत्तराखंड के बुग्यालों में 600 प्रजातियों की दुर्लभ वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। बहरहाल, उत्तराखंड के चारधाम यात्रा मार्ग से सटे अनेक बुग्याल श्र(ालुओं को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। फूलों की घाटी बदरीनाथ और हेमकुंट साहिब की यात्रा मार्ग से लगभग लगी ही है। पंचकेदार, जिनमें केदारनाथ, कल्पनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ शामिल हैं, के घेरे में फूलों की दर्जनों घाटियाँ आती हैं। ऊखीमठ से चोपता, फिर तुंगनाथ अनसूया देवी तथा दूसरी ओर देवस्थली-वनस्थली सभी से फूलों से लदे बुग्याल हैं। रुद्रनाथ की ओर जाते हुए गोपेश्वर से 10 किलोमीटर दूर पंथार बुग्याल पित्तीधार और रुद्रनाथ के चारों ही ओर सिर्फ फूल ही फूल नजर आते हैं। यहाँ आ रहे सैलानी ब्रह्मा बुग्याल और वहीं से होते हुए मनपई बुग्याल की ओर जरूर जाते हैं। लगभग तीस किलोमीटर के इस मार्ग में तमाम भू भाग पत्थरों को भेद कर जीवित रहनेवाले गुगुलू, पोलीगोनम तथा लाइकेन शैवालों से ढके रहते हैं। रुद्रनाथ से होते हुए सैलानी कल्पनाथ एवं मदमहेश्वर तक निकलते हैं। ब्रह्मा खर्क, गदेला, वंशनारायण से कल्पनाथ की लगभग 20 किलोमीटर लंबी यात्रा के दौरान भी लोगों को अनेक मनोरम घाटियाँ बांहें फैलाए नजर आती हैं। ब्रह्मा बुग्याल, मनपई, वैतरणी, पंचदयूली, पांडवसेरा से मदमहेश्वर की लगभग 40 किलोमीटर की यात्रा के दौरान अनेक घाटियाँ अपनी मखमली फूलदार चादर की खूबसूरती में सैलानियों को बांध रही हैं। ग्वालदम तपोवन के यात्रा मार्ग पर रूपकुंड तथा सप्तकुंड जाते हुए औली वेदनी बुग्याल भी अपनी अनुपम छटा से लोगों को आकर्षित कर रहा है। जोशीमठ जहाँ से बदरीनाथ क्षेत्र की शुरुआत मानी जाती है, से आठ किलोमीटर दूर औली और गुरसों बुग्याल में भी अच्छे-खासे पर्यटक जुट रहे हैं। जोशीमठ से नीति मार्ग में सुरेत, तोलमरा, हिमतोली, धरासी, भुजगारा होते हुए नंदादेवी बुग्याल पहुंचा जा सकता है। इसमें केवल दुर्लभ वनस्पतियाँ ही नहीं, वरन दुर्लभ जंतु भी मिलते हैं। इसी क्षेत्र में स्थित औली में तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शीतकालीन खेलों की योजना तक राज्य सरकार बना रही है। वहीं गंगोत्री व यमुनोत्री के मार्ग उत्तरकाशी में भी अनेक बुग्याल हैं जो इस क्षेत्र की प्रसि(ि का कारण बने हैं। पंवाली कांठा में अप्रैल से लेकर सितंबर तक भैंस चराने वाले यायावर गुज्जर निवास करते हैं। ऐसे में यहाँ आने वाले ट्रैकर एवं यात्री इन्हीं गुज्जरों के डेरों में भी ठहरते हैं। यहाँ से हिमशिखरों की एक पूरी पंक्ति दिखती है। इनमें द्रौपदी का डांडा, जोगिन, नीलकंठ, बंदरपूंछ, मेरु, सुमेरु, स्फटिक, चैखंबा आदि प्रमुख हैं। इस बुग्याल के निचले भूभाग में दिखते मोरु, खिर्सू, देवदार और भोजवृक्ष आदि पेड़ों के सघन वन और फूलों की सैकड़ों प्रजाति यात्रियों में अद्भुत ऊर्जा भरती है। हिमपथी, मैना और कस्तूरीमृग यहाँ के दुर्लभ जीव हैं। यहाँ पास ही भट्या बुग्याल स्कीइंग करने वालों का सर्वाधिक आकर्षक क्षेत्र है। पंवाली के उत्तर पश्चिम में क्यारी बुग्याल, पूरब में ताली बुग्याल तथा उत्तर में दर्जन भर अन्य खूबसूरत बुग्यालों की श्रृंखलाएं हैं। पंचकेदार के तुंगनाथ मंदिर के दर्शनार्थ आ रहे तीर्थयात्रियों को यहाँ 3200 से 4200 मीटर की ऊँचाई पर फैले बुग्याल आकर्षित करते हैं। यहाँ पाए जाने वाले 200 प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियों में मीठा विष, अतीस, वेनपसा, वज्रदंती, पाषाणभेद, चैरा, बूटकेशी, सरामांसी, कंडारा, विष कंडारा, चिरायता, लिचकुरा, हयाजती आदि महत्वपूर्ण औषधि प्रजातियाँ मिलती हैं। केदारनाथ तथा बदरीनाथ के निकट स्थित बुग्याल खूबसूरत और दुर्लभ वनस्पतियों से लकदक हैं। यहाँ आज भी 250 प्रकार की दुर्लभ प्रजातियाँ मिलती हैं। रुद्रनाथ में लगभग 3400 मीटर की ऊँचाई के बाद जंगल कमोवेश खत्म होने लगता है और पूरा क्षेत्र बुग्यालों में तब्दील दिखता है। यहाँ 150 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ वनस्पति प्रजातियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं। उत्तरकाशी में हर की दून घाटी की प्रसि(ि भी सैलानियों को खूब रिझा रही है। यहाँ के बुग्याल से स्वर्गरोहिणी पर्वत पर आरोहण के लिए रास्ता जाता है। मान्यता है कि जीवन के अंत में द्रौपदी के साथ पांडव इसी पर्वत शिखर से स्वर्ग की ओर गए थे। इसी घाटी की रूपिन व सुपिन नदियाँ आगे जाकर टौंस नदी बन जाती हैं। केदारखंड और मानसखंड के रूप में उत्तराखंड दो भागों में बंटा है। गंगा द्वार यानी हरिद्वार से लेकर महाहिमालय तक तथा तमसा के तट से लेकर बौ(ांचल या नंदा पर्वत बधाण नंदादेवी तक विस्तृत पचास योजन लंबा और तीस योजन चैड़ा क्षेत्र केदारखंड तो प्राचीन समय से साक्षात स्वर्गभूमि ही माना जाता है। कहते हैं कि इस पुनीत भूमि के दर्शन के लिए देवता भी उतावले रहते हैं। कहीं न कहीं यहाँ की खूबसूरती को लेकर ही ऐसी आस्था पैदा हुई हैं।यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही नैसर्गिक सौंदर्य एवं सांस्कृतिक परंपरा का वाहक रहा है। गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर, टोंस, धौली एवं भिलंगना आदि नदियों का उद्गम भी इसी क्षेत्र से होता है। इस क्षेत्र में हिमशैलों सहित तटों एवं नदी के संगमों पर चरक, व्यास, पाणिनि, भृगु, अगस्त्य और भारद्वाज जैसे )षियों ने जप-तप-योग साधना की थी और उनसे जुड़े विभिन्न आख्यान प्रचलित हुए। महामुनि वेदव्यास ने हिमालय के इसी प्रदेश की एक निर्झरणी के तट पर तपोवन के समीप बैठकर महान ग्रंथों की रचना की थी। महाकवि कालीदास का भी तपस्थल यही था। जाहिर है, उन्होंने यहाँ की खूबसूरती पर रीझकर ही इसे स्वप्नपुरी बताया होगा। इस क्षेत्र के उत्तर में गंगा और दक्षिण में छोटी-बड़ी जल धाराएँ असंख्य जलस्रोत से निकलकर अंततः गंगा में समा जाती हैं और इसी भू भाग को मध्य से काटते हुए खूबसूरत यात्रा पथ श्री केदारनाथ, श्री बदरीनाथ, यमुनोत्री व गंगोत्री के लिए जाते हैं। जाहिर है, तीर्थ की थकान उतारने में यहाँ स्थित झोपड़ियों और टेंटों में विश्राम अमृत की तरह काम करता है। खैर, चारधाम प्रदेश की घाटियों में श्सत्यं शिव सुंदर का बजता अनहद नाद सदा से लोगों को आकर्षित करता रहा है और आज भी कर रहा है। यहाँ बड़ी संख्या में ऐसे सैलानी मिल जाते हैं जो यहाँ पुराणों में वर्णित कथाओं के आधार पर विभिन्न मुनियों के तप स्थलों की मूल भूमि तलाशते हैं। उन स्थलों की पूजा की लालसा उनमें देखी जा रही है। 

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शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

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udaydinmaan: देवभूमि में पंच बदरी और पंच केदार हैं आस्था के दस ...: उत्तराखंडःआस्था, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना देवभूमि में पंच बदरी और पंच केदार हैं आस्था के दस द्वार santosh banjwal धरती का स्...

udaydinmaan: हिंदी मासिक उदय दिनमान का नवंबर अंक 2014

udaydinmaan: हिंदी मासिक उदय दिनमान का नवंबर अंक 2014

हिंदी मासिक उदय दिनमान का नवंबर अंक 2014


देवभूमि में पंच बदरी और पंच केदार हैं आस्था के दस द्वार

उत्तराखंडःआस्था, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य का खजानादेवभूमि में पंच बदरी और पंच केदार हैं आस्था के दस द्वार

santosh banjwal
धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला उत्तराखंड आस्था-भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसि( है। यही कारण है कि इसको देवभूमि भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही संपूर्ण राष्ट्र में भावनात्मक एकता तथा ज्ञानवर्धन के क्षेत्र में पर्यटन का महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान रहा है। पर्यटन से ही भिन्न-भिन्न क्षेत्र के लोगों के रहन सहन, संस्कृति, भाषा एवं तौर-तरीकों के संबंध में प्रत्यक्ष रूप से जानकारी प्राप्त हो सकती है। उत्तराखंड पर्यटन के क्षेत्र में अपना एक विशिष्ठ स्थान रखता है। विश्व प्रसि( चारधाम अनादि काल से ही यात्रियों एवं धार्मिक पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। आस्था का केंद्र बिन्दु होने से पर्यटक वर्षभर हेमकुंड साहिब, नानकमत्ता, मीठा-रीठा साहिब, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पिरान कलियर, कैलाश मानसरोवर एवं छोटा कैलाश की यात्राओं पर भी निरंतर आते रहते हैं। देवभूमि में विश्व प्रसि( फूलों की घाटी, सुदूर क्षेत्रों तक फैले हरे-भरे घास के बुग्याल, विशाल हिमालय की श्रृंखलाएं, पतित पावनी गंगा यमुना के उद्गम एवं शीतल जलवायु युक्त मनोरम स्थल, नैनीताल व मसूरी तथा वन्य जंतु प्रेमियों के आकर्षण कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क यहां की विशेषता को चार चांद लगा रहे हैं।  इस बार उत्तराखंड सरकार ने शीतकाल यात्रा को प्रारंभ करने की अपनी घोषणा के बाद यहां तीर्थाटन और पर्यटन से अपना परिवार पालने वाले की उम्मीद को पंख लगे है। इसलिए आइए उत्तराखंड और यहां लीजिए आस्था, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य के संगम आनंद। इसी पर केंद्रित संतोष बेंजवाल का यह विशेष आलेख।                   संपादक
उत्तराखंड आस्था, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य का मिला जुला संगम है। जून 2013 की जलप्रलय के बाद से उत्तराखंड के पर्यटन और तीर्थाटन पर बुरा असर पड़ा है। इसमें चार धामों की यात्रा पर संकट खड़ा हो गया था, लेकिन आगामी वर्ष में बदरीनाथ यात्रा बेहतर चलने के संकेत मिलने लगे हैं। राज्य में सरकार ने खस्ता हाल मार्गों की मरमत पर ध्यान दिया तो अगले साल से उत्तराखंड का पर्यटन-तीर्थाटन पटरी पर दौड़ने लगेगा। आगामी वर्ष में धाम में दर्शनों के बाद रहने के लिए तीर्थयात्रियों की ओर से यहां होटल और लाज मालिकों को एडवांस बुकिंग मिलने लगी हैं। बताया जा रहा है कि अभी तक धाम के होटल, लाज व्यवसायियों को करीब दस हजार तीर्थयात्रियों के ठहरने और खाने की बुकिंग मिल गई हैं। बदरीनाथ में मई २१५ माह में कपाट खुलने के तुरंत बाद दो श्रीमद्देवी भागवत और यज्ञ भी प्रस्तावित हैं। बदरीनाथ में होटल व्यवसायी डा. जमुना प्रसाद रैवानी का कहना है कि आगामी वर्ष की तीर्थयात्रा के लिए दिल्ली के करीब तीन हजार तीर्थयात्रियों के बदरीनाथ धाम आने की बुकिंग मिली हैं। इस वर्ष कुछ तीर्थयात्री बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा पर आए थे, जो होटल में बुकिंग करके चले गए हैं। धाम में जैन धर्मशाला, सरोवर पोर्टिको, स्नो क्रेस्ट, नारायण पैलेस, बदरी बिला और शंकर श्री में तीर्थयात्रियों ने मई से जून माह तक की बुकिंग कराई हैं। बदरीनाथ में होटल व्यवसायी शंकर श्री, अमित त्रिपाठी और सरोवर पोर्टिको के मैनेजर हरि बल्लभ सकलानी का कहना है कि एडवांस बुकिंग मिलने से आगामी वर्ष की तीर्थयात्रा बेहतर चलने की उम्मीद जगी है। कोलकाता के श्र(ालु मनोज सराफ ने बदरीनाथ धाम की आगामी दस साल तक की अभिषेक पूजा और केदारनाथ में रुद्राभिषेक पूजा के लिए एडवांस बुकिंग कर ली है। इसके लिए श्र(ालु ने बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति को दस लाख रुपये नगद भुगतान भी कर दिया है। एक श्र(ालु के सोजन्य से तो आगामी दस वर्ष तक बदरीनाथ की अभिषेक और केदारनाथ की रुद्राभिषेक पूजा संपन्न कराई जाएगी। बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा के आगामी वर्ष बेहतर चलने की उम्मीद है। उम्मीद है कि यात्रा शुरू होने से पहले बदरीनाथ हाईवे भी चाक-चैबंद हो जाएगा। धाम में पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को पूरी सुविधाएं दी जा रही हैं। केदारनाथ धाम की तीर्थयात्रा भी आगामी वर्ष पटरी पर लौट जाएगी।
चलिए अब बात करते हैं उत्तराखंड के चारधामों की। केदारनाथ धाम, जहां स्वयं भगवान शिव स्वयं पंच केदार के रूप में बिराजते हैं। मई माह से ही इन चार धाम यात्रा की शुरुआत हो जाती है। उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जनपद में भगवान केदारनाथ जी का पावन मंदिर स्थित है, जो जनआस्था के साथ ही प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य आस्था और भक्ति के संगम के रूप में सदियों से जाना जाता है। यहां पहुंचने के लिए पर्यटकों एवं तीर्थ यात्रियों को दुर्गम पहाड़ियों सर्पनुमा सड़कों एवं जंगली मार्गों से होकर गुजरना होता है। इसके बाद यात्रियों को 14 किलोमीटर की यात्रा पगडंडियों से गुजर कर धाम तक पहुंचना होता है। धाम मार्ग में जाते समय यात्रियों को पहाड़ों से उतरती मंदाकिनी नदी के दूध सदृश्य जल का अद्भुत दर्शन होता है। मंदाकिनी नदी चैराबारी स्थित हिमनद के कुंड से निकलती है। केदारनाथ धाम की ऊंचाई समुद्र तल से 3562 मीटर है। इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में कत्थूरी शैली में किया गया है, जिसका जीर्णेा(ार आद्यगुरू जगत गुरू शंकराचार्य जी ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में सदाशिव की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। पंच रूपों में शिव की स्थापना के कारण ही पंचकेदार की मान्यता प्राप्त है। केदारनाथ ज्योर्तिलिंग भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में एक है। इसका स्पष्ट उल्लेख महाभारत पुराण में मिलता है। पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि केदारनाथ में भगवान श्री के शिव लिंग, तुंगनाथ में बाहु, रूद्रनाथ में मुंख, श्रीमध्यमहेश्वर में नाभी एवं कल्पेश्वर में जटा की पूजा होती है। केदारनाथ धाम के प्रवेश द्वार पर नंदी जी की जीवंत मूर्ति की स्थापना की गई है। हर वर्ष 6 माह तक मई से अक्टूबर मास तक श्र(ालुओं को धाम में दर्शन-पूजन की सुविधा प्राप्त होती है। इस धाम के निकट ही पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र गांधी सरोवर एवं बासुकी ताल भी स्थित है। इस इलाके के नागनाथ, शरदोत्सव, जोशीमठ का शरदोत्सव, शिवरात्रि का मेला, गोपेश्वर नंदा देवी, नौटी, नवमी जसोली हरियाली, रूपकुंड महोत्सव, बेदनी बुग्याल, कृष्णा मेला जोशीमठ, गोचर मेला, सहित अनसूइया देवी सहित कई मेले जनता में खासे लोकप्रिय हैं।
मंदाकिनी एवं अलकनंदा नदी के मध्य रूद्रनाथ गुहा मंदिर स्थित है। यहां गुहा कि एक भित्ति बनाकर बंद कर दिया गया है, जिसके आंतरिक भाग में एक प्राचीन शिव लिंग स्थित है, जिस पर जल की बूंदे सदैव टपकती रहती हैं। कल्पेश्वर, कल्पगंगा घाटी में स्थित है, जिसके संदर्भ में केदारखंड में ऐसी मान्यता है कि यही दुर्वासा )षि ने कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। यही से कल्प गंगा नाम की नदी भी प्रवाहित होती हैं। जिसका प्राचीन नाम हिरण्यवती था। इसी के दाएं तट पर दुर्वासा भूमि है, जहां ध्यानबद्री का मंदिर स्थित है। जिसके गर्भ में स्वंयभू शिव लिंग के विराजमान होने की मान्यता है। मध्यमहेश्वर जी का धाम इन पंच 
केदारों में सर्वाधिक आकर्षक है। 
इस मंदिर का शिखर स्वर्ण 
कलश से 
अंलकृत है। इसके पृष्ठ भाग में हर गौरी की प्रतिमा है। छोटे मंदिर में माता पार्वती जी की मूर्ति भी स्थित है। मंदिर के मध्य भाग में नाभि क्षेत्र के समान एक शिवलिंग भी स्थित है। इस शिव लिंग के संदर्भ में कहावत है कि इसके दर्शन मात्र से मानव को स्वर्ग के वास का अधिकार मिलता है। इस मध्यमहेश्वर से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर मखमली घास सहित फूलों की घाटी के साथ ही बूढ़ा मध्यमहेश्वर नाथ के साथ क्षेत्रपाल देवता के दर्शन होते हैं। इस इलाके में मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर कालीमठ के नाम से विख्यात महाकाली का भव्य मंदिर स्थित है। तुंगनाथ जी चंद्रशिला शिखर के नीचे स्वंय विराजमान हैं। तरासे प्रस्तरों से निर्मित यह मंदिर लगभग ग्यारह मीटर ऊंचा है। इसके शिखर पर 1.6 मीटर ऊंचा स्वर्ण कलश स्थित है। यहां से ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर देवरिया ताल स्थित है, जो एक मनोहारी पर्यटक स्थल के रूप में विख्यात है। इस धाम में पहुंच कर पांडवों को नाना पापों से मुक्ति मिलने की चर्चा इस धाम को पाप मुक्ति धाम के रूप में भी मान्यता दिलाता है। केदारनाथ के साथ पंचकेदार के दर्शन का फल आज भी श्र(ालुओं में मान्यता प्राप्त है। वैसे तो देव भूमि 
के कण-कण में भगवान के 
वास होने की मान्यता से 
हर भारतवासी 
सनातनी हिंदू 
श्र(ालु इन धामों में दर्शन के लिए खिंचा आता है। प्रकृति की मनोहरी रमणियता पर्यटकों को भी बरबस खींच लाती है, जिसके कारण उत्तराखंड को विश्व पर्यटन के मानचित्र में भी मान्यता प्राप्त है। पर्यटन राज्य होने के कारण सूबे की सरकार के साथ भारत सरकार भी यहां आने वाले पर्यटकों को अनेक सुविधाएं प्रदान करती है। उत्तराखंड की सरकार की पहल से चार धाम यात्रा के लिए हवाई यात्रा की सुविधा भी आरंभ हो चुकी है, जिससे यात्रियों की संख्या में दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है। उत्तराखंड में चारधाम के साथ यहां पंचबदरी और पंच केदार के साथ पंच प्रयाग बुग्याल और बहुत कुछ और भी है। यहां आकर तीर्थयात्री और पर्यटक बरबस इसी प्राकृतिक सौंदर्य के साथ
यहां से अपने मन को
मोहने में लगा 
रहता
है।
देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महात्म्य है, उतना ही पंच बदरी का भी। असल में ये मंदिर भी बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं। हालांकि, इनमें 
कुछ स्थल सालभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, लेकिन बाकी में चारधाम सरीखी ही कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा है।
पांच केदार
श्री केदारनाथ धाम-गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर अवस्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। कहते हैं कि समुद्रतल से 11746 फीट की ऊंचाई पर केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग ;भागद्ध है। मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है।
तुंगनाथ-तृतीय केदार के रूप में प्रसि( तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्रतल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां भगवान शिव की भुजा के रूप में पूजा-अर्चना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है।  तुंगनाथ मंदिर के विषय में एक प्राचीन पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा महाभारत के मुख्य पात्रों से संबन्धित है।
 कथा के अनुसार जब पांच पांडवों पर अपने परिवार के भाईयों की हत्या का आरोप लगा, तो अपने भाईयों की हत्या करने का उन्होंने जो पाप किया था, उस पाप के श्राप के रुप में उन्हें बैल का रुप दे दिया गया। पांडवों ने इन स्थानों में प्रत्येक मंदिर में पांच केदार का निर्माण किया गया। इस दुनिया में तुंगनाथ मंदिर को चोटियों का स्वामी कहा जाता है।  इस मंदिर के विषय से जुड़ी एक मान्यता प्रसि( है कि यहां पर शिव के हृदय और बाहों की पूजा होती है। इस मंदिर की पूजा का दायित्व यहीं के एक स्थानीय व्यक्ति को दिया गया है। समुद्रतल से इस मंदिर की ऊंचाई 12000 फीट से अधिक है। इसी कारण इस मंदिर के सामने पहाड़ों पर बर्फ जमी रहती है। अन्य चार धामों की तुलना में यहां पर श्र(ालुओं की भीड़ कुछ कम होती है. परन्तु फिर भी यहां अपनी मन्नतें पूरी होने की ख्वाहिश में आने वालों की संख्या कुछ कम नहीं है। इस मंदिर में तीर्थयात्री हजारों की संख्या में प्रत्येक वर्ष पहुंचते है। इस स्थान से एक अन्य कथा जुड़ी हुई है, कि भगवान राम से रावण का वध करने के बद ब्रह्माहत्या शाप से मुक्ति पाने के लिये उन्होंन यहां पर शिव की तपस्या की थी। तभी से इस स्थान का नाम चंद्रशिला भी प्रसि( है. यहां से बद्रीनाथ, नीलकंठ, पंचचूली, सप्तचूली, बंदरपूंछ, हाथी पर्वत, गंगोत्री व यमनोत्री के दर्शन भी होते है। पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के यु( में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंर्तध्यान हो कर केदार में जा बसे।  इस पर भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंर्तध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंर्तध्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
रुद्रनाथ-यह मंदिर समुद्रतल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा होती है। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है। लेकिन, बेहद दुर्गम होने के कारण श्र(ालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए वे गोपेश्वर के निकट सगर गांव होकर ही यहां जाना पसंद करते हैं।
मद्महेश्वर-चैखंभा शिखर की तलहटी में 3289 मीटर की ऊंचाई स्थित मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए मानी जाती हैं।
कल्पेश्वर-यहां भगवान शिव की जटा पूजी जाती हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा )षि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसि( हुआ। श्र(ालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 किमी की पैदल दूरी तय कर उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुंचते हैं। गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर है।
पांच बदरी
श्री बदरी नारायण-समुद्रतल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है भूबैकुंठ बदरीनाथ धाम। माना जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था। वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण भगवान बदरीविशाल की पूजा करते हैं।
आदि बदरी-कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर अवस्थित है। यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर समूह के सम्मुख एक जलधारा, जो उत्तर वाहिनी गंगा के नाम से प्रसि( है, प्रवाहित होती है। माना जाता है कि यह तीर्थ स्थल गुप्तकाल में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया।
वृ(बदरी- बदरीनाथ से आठ किमी पूर्व 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा के सुरम्य धारों में स्थित है वृ( बदरी धाम। इस मंदिर की खासियत इसका सालभर खुले रहना है। इसे पांचवां बदरी कहा गया है।
योग-ध्यान बदरी-जोशीमठ से 20 किमी दूर 1920 मीटर की ऊंचाई दूर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित हैं तृतीय योग-ध्यान बदरी। पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं।
भविष्य बदरी- समुद्रतल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से चार किमी पैदल मार्ग पर स्थित हैं भविष्य बदरी। कहते हैं कि अगस्त्य )षि ने यहां तपस्या की थी। लेकिन, विकट चढ़ाई के कारण शारीरिक रूप से फिट यात्री ही यहां पहुंच पाते हैं।
पंच प्रयाग
नदियों के संगम को पंच प्रयाग कहा जाता हैं। उत्तराखंड के प्रसि( पंच प्रयाग देवप्रयाग रुद्रप्रयाग कर्णप्रयाग नन्दप्रयाग तथा विष्णुप्रयाग मुख्य नदियों के संगम पर स्थित हैं ।
देवप्रयाग-अलकनंदा तथा भगीरथी नदियों के संगम पर देवप्रयाग नामक स्थान स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है । यह समुद्र सतह से १५00 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । देवप्रयाग की )षिकेश से सडक मार्ग दूरी ७0 किमी है । गढवाल क्षेत्र मे भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर है, जो की यहां के मुख्य आकर्षण हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। देवप्रयाग में कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है ।
रुद्रप्रयाग-मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है । संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर दर्शनीय है। रुद्रप्रयाग )षिकेश से १३९ किमी की दूरी पर स्थित है । यह नगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है। यह माना जाता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये रुद्रनाथ महादेव की अराधना की थी।
कर्णप्रयाग-अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है । पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्णप्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है।
नन्दप्रयाग-नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है। यह सागर तल से २८0५ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर गोपाल जी का मंदिर दर्शनीय है।
विष्णुप्रयाग-धौली गंगा तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर विष्णुप्रयाग स्थित है। संगम पर भगवान विष्णु जी प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड दर्शनीय हैं। यह सागर तल से १३७२ मी.की ऊंचाई पर स्थित है। 
प्रमख नदियां- गंगा, यमुना, काली, रामगंगा, भागीरथी, अलकनन्दा, कोसी, गोमती, टौंस, मंदाकिनी, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार पिंडर नयार आदि प्रमुख नदियां हैं।
प्रमुख हिमशिखर- नंदा देवी ;7817द्ध,कामेत ;7756द्ध,गंगोत्री ;6614द्ध,माणा ;7273द्ध,चैखंवा ;7138द्ध, त्रिशूल ;7120द्ध, द्रोणगिरि ;7066द्ध,पंचाचूली ;6905द्ध, नंदा कोट ;6861द्ध, केदारनाथ ;6490द्ध, बंदरपूछ ;6315द्ध,नीलकंठ ;5696द्ध, गोरी पर्वत ;6250द्ध, हाथी पर्वत ;6727द्ध, नंदा धुंटी ;6309द्ध, देव वन ;6853द्ध, मृगथनी ;6855द्ध, गुनी ;6179द्ध, यूंगटागट ;6945द्ध।
प्रमुख ग्लेशियर-1. गंगोत्री 2. यमुनोत्री 3. पिण्डर 4. खतलिगं 5. मिलम 6. जौलिंकांग, 7. सुन्दर ढूंगा इत्यादि।
प्रमुख झीलें ;तालद्ध- गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नंदीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल ;कुंमाऊँ क्षेत्रद्ध इत्यादि।
प्रमुख दर्रे- बरास- 5365मी.,;उत्तरकाशीद्ध, माणा- 6608मी. ;चमोलीद्ध, नोती-5300मी. ;चमोलीद्ध, बोल्छाधुरा-5353मी.,;पिथौरागड़द्ध, कुरंगी-वुरंगी-5564 मी.; पिथौरागड़द्ध, लोवेपुरा-5564मी. ;पिथौरागड़द्ध, लमप्याधुरा-5553 मी. ;पिथौरागड़द्ध, लिपुलेश-5129 मी.;पिथौरागड़द्ध, उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा।
वन अभ्यारण्य- 1. गोविन्द वन जीव विहार 2. केदारनाथ वन्य जीव विहार 3. अस्कोट जीव विहार 4. सोना नदी वन्य जीव विहार 5. विनसर वन्य जीव विहार।
बीना बेंजवाल
हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं पर छितराए तीर्थ स्थलों की यात्रा से पैदा थकान छूमंतर करने की क्षमता यहाँ फैले प्राकृतिक मनोरम दृदृश्यों में खूब है। फिर भी यदि आप तीर्थयात्रा को प्रकृति की यात्रा से भी जोड़ना चाहते हैं तो हिमालय पर स्थित विभिन्न बुग्यालों की यात्रा जरूर करें बल्कि वहाँ ठहरें। हिमालय पर स्थित सर्वाधिक सुंदर स्थलों में से एक इन बुग्यालों पर बिताए हर लम्हे आप जीवन भर याद करेंगे। चारधाम की यात्रा पर निकले हजारों तीर्थयात्री इन बुग्यालों की ओर रुख कर रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि कभी यहाँ देवताओं का वास था। पुराणों में वर्णित अनेक कथाओं में यहाँ रहने या कुछ पल बिताने या इस भूमि को किसी अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की यात्रा के दौरान अपना मार्ग बनाने के जिक्र आए हैं। 
आखिर ऐसा क्यों न हो? दुर्लभ वनस्पतियों और जंतुओं के इस क्षेत्र की ओर आज भी हजारो सैलानी खिंचे चले आते हैं। उनमें क्या देखें, क्या छोड़े की उत्कट दुविधा रहती है। माजातोली और छिपलाकोट बुग्याल तो दुर्लभ वनस्पतियों के भंडार ही माने गए हैं। लगभग 5000 मीटर की ऊँचाई पर सामान्य वनस्पतियाँ समाप्त होने लगती हैं इसे वृक्षरेखा कह लें। वहीं लगभग 5400-5600 मीटर की ऊँचाई से हिमपात होना शुरू होने लगता है इसे हिमरेखा कह सकते हैं। इसी वृक्षरेखा और हिमरेखा के बीच के भूभाग में वनस्पतियों की अनेकानेक दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से कई रामबाण औषधियाँ भी हैं। नवंबर से मई तक बर्फ से ढके रहने वाले इन बुग्यालों में विपरीत परिस्थितियों में जीवित रहने वाले पौधे अपनी जीवटता का वरदान मनुष्य को भी औषधि के रूप में देते हैं। ये वनस्पतियाँ बर्फ आच्छादित समय में अपनी जड़ों में अपनी ऊर्जा संचित करके रखती हैं। उत्तराखंड के बुग्यालों में 600 प्रजातियों की दुर्लभ वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। बहरहाल, उत्तराखंड के चारधाम यात्रा मार्ग से सटे अनेक बुग्याल श्र(ालुओं को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। फूलों की घाटी बदरीनाथ और हेमकुंट साहिब की यात्रा मार्ग से लगभग लगी ही है। पंचकेदार, जिनमें केदारनाथ, कल्पनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ शामिल हैं, के घेरे में फूलों की दर्जनों घाटियाँ आती हैं। ऊखीमठ से चोपता, फिर तुंगनाथ अनसूया देवी तथा दूसरी ओर देवस्थली-वनस्थली सभी से फूलों से लदे बुग्याल हैं। रुद्रनाथ की ओर जाते हुए गोपेश्वर से 10 किलोमीटर दूर पंथार बुग्याल पित्तीधार और रुद्रनाथ के चारों ही ओर सिर्फ फूल ही फूल नजर आते हैं। यहाँ आ रहे सैलानी ब्रह्मा बुग्याल और वहीं से होते हुए मनपई बुग्याल की ओर जरूर जाते हैं। लगभग तीस किलोमीटर के इस मार्ग में तमाम भू भाग पत्थरों को भेद कर जीवित रहनेवाले गुगुलू, पोलीगोनम तथा लाइकेन शैवालों से ढके रहते हैं। रुद्रनाथ से होते हुए सैलानी कल्पनाथ एवं मदमहेश्वर तक निकलते हैं। ब्रह्मा खर्क, गदेला, वंशनारायण से कल्पनाथ की लगभग 20 किलोमीटर लंबी यात्रा के दौरान भी लोगों को अनेक मनोरम घाटियाँ बांहें फैलाए नजर आती हैं। ब्रह्मा बुग्याल, मनपई, वैतरणी, पंचदयूली, पांडवसेरा से मदमहेश्वर की लगभग 40 किलोमीटर की यात्रा के दौरान अनेक घाटियाँ अपनी मखमली फूलदार चादर की खूबसूरती में सैलानियों को बांध रही हैं। ग्वालदम तपोवन के यात्रा मार्ग पर रूपकुंड तथा सप्तकुंड जाते हुए औली वेदनी बुग्याल भी अपनी अनुपम छटा से लोगों को आकर्षित कर रहा है। जोशीमठ जहाँ से बदरीनाथ क्षेत्र की शुरुआत मानी जाती है, से आठ किलोमीटर दूर औली और गुरसों बुग्याल में भी अच्छे-खासे पर्यटक जुट रहे हैं। जोशीमठ से नीति मार्ग में सुरेत, तोलमरा, हिमतोली, धरासी, भुजगारा होते हुए नंदादेवी बुग्याल पहुंचा जा सकता है। इसमें केवल दुर्लभ वनस्पतियाँ ही नहीं, वरन दुर्लभ जंतु भी मिलते हैं। इसी क्षेत्र में स्थित औली में तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शीतकालीन खेलों की योजना तक राज्य सरकार बना रही है। वहीं गंगोत्री व यमुनोत्री के मार्ग उत्तरकाशी में भी अनेक बुग्याल हैं जो इस क्षेत्र की प्रसि(ि का कारण बने हैं। पंवाली कांठा में अप्रैल से लेकर सितंबर तक भैंस चराने वाले यायावर गुज्जर निवास करते हैं। ऐसे में यहाँ आने वाले ट्रैकर एवं यात्री इन्हीं गुज्जरों के डेरों में भी ठहरते हैं। यहाँ से हिमशिखरों की एक पूरी पंक्ति दिखती है। इनमें द्रौपदी का डांडा, जोगिन, नीलकंठ, बंदरपूंछ, मेरु, सुमेरु, स्फटिक, चैखंबा आदि प्रमुख हैं। इस बुग्याल के निचले भूभाग में दिखते मोरु, खिर्सू, देवदार और भोजवृक्ष आदि पेड़ों के सघन वन और फूलों की सैकड़ों प्रजाति यात्रियों में अद्भुत ऊर्जा भरती है। हिमपथी, मैना और कस्तूरीमृग यहाँ के दुर्लभ जीव हैं। यहाँ पास ही भट्या बुग्याल स्कीइंग करने वालों का सर्वाधिक आकर्षक क्षेत्र है। पंवाली के उत्तर पश्चिम में क्यारी बुग्याल, पूरब में ताली बुग्याल तथा उत्तर में दर्जन भर अन्य खूबसूरत बुग्यालों की श्रृंखलाएं हैं। पंचकेदार के तुंगनाथ मंदिर के दर्शनार्थ आ रहे तीर्थयात्रियों को यहाँ 3200 से 4200 मीटर की ऊँचाई पर फैले बुग्याल आकर्षित करते हैं। यहाँ पाए जाने वाले 200 प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियों में मीठा विष, अतीस, वेनपसा, वज्रदंती, पाषाणभेद, चैरा, बूटकेशी, सरामांसी, कंडारा, विष कंडारा, चिरायता, लिचकुरा, हयाजती आदि महत्वपूर्ण औषधि प्रजातियाँ मिलती हैं। केदारनाथ तथा बदरीनाथ के निकट स्थित बुग्याल खूबसूरत और दुर्लभ वनस्पतियों से लकदक हैं। यहाँ आज भी 250 प्रकार की दुर्लभ प्रजातियाँ मिलती हैं। रुद्रनाथ में लगभग 3400 मीटर की ऊँचाई के बाद जंगल कमोवेश खत्म होने लगता है और पूरा क्षेत्र बुग्यालों में तब्दील दिखता है। यहाँ 150 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ वनस्पति प्रजातियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं। उत्तरकाशी में हर की दून घाटी की प्रसि(ि भी सैलानियों को खूब रिझा रही है। यहाँ के बुग्याल से स्वर्गरोहिणी पर्वत पर आरोहण के लिए रास्ता जाता है। मान्यता है कि जीवन के अंत में द्रौपदी के साथ पांडव इसी पर्वत शिखर से स्वर्ग की ओर गए थे। इसी घाटी की रूपिन व सुपिन नदियाँ आगे जाकर टौंस नदी बन जाती हैं। केदारखंड और मानसखंड के रूप में उत्तराखंड दो भागों में बंटा है। गंगा द्वार यानी हरिद्वार से लेकर महाहिमालय तक तथा तमसा के तट से लेकर बौ(ांचल या नंदा पर्वत बधाण नंदादेवी तक विस्तृत पचास योजन लंबा और तीस योजन चैड़ा क्षेत्र केदारखंड तो प्राचीन समय से साक्षात स्वर्गभूमि ही माना जाता है। कहते हैं कि इस पुनीत भूमि के दर्शन के लिए देवता भी उतावले रहते हैं। कहीं न कहीं यहाँ की खूबसूरती को लेकर ही ऐसी आस्था पैदा हुई हैं।यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही नैसर्गिक सौंदर्य एवं सांस्कृतिक परंपरा का वाहक रहा है। गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर, टोंस, धौली एवं भिलंगना आदि नदियों का उद्गम भी इसी क्षेत्र से होता है। इस क्षेत्र में हिमशैलों सहित तटों एवं नदी के संगमों पर चरक, व्यास, पाणिनि, भृगु, अगस्त्य और भारद्वाज जैसे )षियों ने जप-तप-योग साधना की थी और उनसे जुड़े विभिन्न आख्यान प्रचलित हुए। महामुनि वेदव्यास ने हिमालय के इसी प्रदेश की एक निर्झरणी के तट पर तपोवन के समीप बैठकर महान ग्रंथों की रचना की थी। महाकवि कालीदास का भी तपस्थल यही था। जाहिर है, उन्होंने यहाँ की खूबसूरती पर रीझकर ही इसे स्वप्नपुरी बताया होगा। इस क्षेत्र के उत्तर में गंगा और दक्षिण में छोटी-बड़ी जल धाराएँ असंख्य जलस्रोत से निकलकर अंततः गंगा में समा जाती हैं और इसी भू भाग को मध्य से काटते हुए खूबसूरत यात्रा पथ श्री केदारनाथ, श्री बदरीनाथ, यमुनोत्री व गंगोत्री के लिए जाते हैं। जाहिर है, तीर्थ की थकान उतारने में यहाँ स्थित झोपड़ियों और टेंटों में विश्राम अमृत की तरह काम करता है। खैर, चारधाम प्रदेश की घाटियों में श्सत्यं शिव सुंदर का बजता अनहद नाद सदा से लोगों को आकर्षित करता रहा है और आज भी कर रहा है। यहाँ बड़ी संख्या में ऐसे सैलानी मिल जाते हैं जो यहाँ पुराणों में वर्णित कथाओं के आधार पर विभिन्न मुनियों के तप स्थलों की मूल भूमि तलाशते हैं। उन स्थलों की पूजा की लालसा उनमें देखी जा रही है।